Monthly Archives: July 2011
The Chamars and Putt Chamaran De द चमार और पुत्त चमाराँ दे
In the recent past a religious head of this community was murdered in Vienna. In the circumstances Ravidasia (Chamar) community went ahead with establishing their own religion named ‘Ravidassia’. Its emblem has ‘Hari’ in it. Some people opine that it should have been ‘Ravi’ instead.
Ravish Kumar of NDTV has covered these developments in three parts. You Tube links are given below. These are important documents.
वर्ष 1920 में एम.जी.डब्ल्यू. ब्रिंग्स द्वारा लिखित ‘दि चमार्स’ नामक पुस्तक में 1156 जातियों के ‘चमार’ होने का उल्लेख किया था. फिर मुहिम चली. ‘चमार’ शब्द के प्रति बड़े पैमाने पर घृणा की लहरचली. इसका प्रयोजन दलित जातियों में भीतरी दरार पैदा करना था. यह प्रचार इतना विषैला था कि इसके कारण अन्य दलित जातियाँ जो पहले ‘चमार’ शब्द से परहेज़ नहीं करती थीं वे स्वयं को चमार शब्द से दूर करने लगीं.
इन घटनाओं को एनडीटीवी के रवीश कुमार ने विशेष रूप से तीन खंडों में कवर किया है. इसके यू-ट्यूब लिंक्स पाठकों की जानकारी के लिए नीचे दिए गए हैं. तीनों खंड महत्वपूर्ण दस्तावेज़ हैं.
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Aarakshan (आरक्षण) – यहाँ दो भारत बसते हैं – लोकल भारत लुट रहा है
कुछ दिन पूर्व एक समाचार-पत्र में यह पढ़ा है-
मैं सोचता हूँ शायद तिलक के ऐसे वक्तव्यों का उनकी लोकप्रियता पर असर पड़ा होगा. गाँधी ने बहुत तो नहीं परंतु जितना किया उसके कारण तेली-तंबोली उनके साथ हो लिए थे. 1930 के डाँडी मार्च में बहुत बड़ी संख्या जुझारू कोलियों (Kolitribals) की थी.
विशेष नोट : यह पोस्ट बड़ी तेज़ी से इस ब्लॉग की टॉप 5 पोस्टस (यथा 10-08-2011 को) में आ गई है. इसका एक कारण यह भी है कि फिल्म का प्रदर्शन अभी मद्रास हाईकोर्ट ने रोका है और फिल्म के बारे में लोगों की जिज्ञासा बढ़ी है. इस बीच NDTV पर रवीश कुमार की फिल्म के निर्माता प्रकाश झा, अमिताभ बच्चन, मनोज वाजपेयी से एक बातचीत यू-ट्यूब पर उपलब्ध है जिसे आप यहाँ देख सकते हैं- आरक्षण
(Key words: Koli, Kori, Kol, Khati, Kunbhat, Teli, Tamboli, Bal Gangadhar Tilak, Dandi March, Gandhi, Film Resevation, Amitabh Bachchan, Big B)
Meghvansh- One direction – मेघवंश – एक दिशा
(From left) S/Sh. Baru Pal, Gopal Denwal and R.P. Singh |
इसके अतिरिक्त विभिन्न राज्यों से पधारे प्रतिनिधियों ने अपने-अपने विचार रखे जिनका सार-संक्षेप यह है कि मेघवंशी और अन्य दलित सामाजिक संगठनों के साझा धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक मंच तैयार करने की आवश्यकता है. इसके लिए शिक्षा और एकता की भावना विकसित करने की तत्काल ज़रूरत है. जातियों के बँटवारे की पूर्वनिर्मित भ्रामक मान्यता को तोड़ना होगा. जानना होगा कि अनुसूचित जातियाँ, जनजातियाँ और अन्य पिछड़ी जातियाँ वास्तव में एक ही हैं. इस नकली विभाजन को मन से निकालना होगा. धार्मिक विभाजन की दीवारों को खंडित करके आत्म सम्मान के भाव को सशक्त करना होगा.
Gopal Denwal addressing the gathering |
अपने अध्यक्षीय भाषण में श्री गोपाल डेनवाल ने कहा कि विभिन्न नामों में बँटा मेघवंशी समाज आपस में नाम पर ही भिड़ जाता है. इस प्रवृत्ति को तोड़ना ज़रूरी है. नाम अलग होने से कुछ नहीं होता बल्कि सभी मेघवंशी समुदायों का आपस में मिल कर शिक्षा और आर्थिक विकास का प्रबंध करना महत्वपूर्ण है. इसके लिए सामाजिक-धार्मिक-राजनीतिक संगठन की कोशिशें तेज़ होनी चाहिएँ.
R.P.Singh’s address to participants. |
विशेष नोट – मेघ भगतों के संगठन ऑल इंडिया मेघ सभा, चंडीगढ़ का प्रतिनिधित्व श्री इंद्रजीत मेघ ने और भगत महासभा, जम्मू का प्रतिनिधित्व श्री भारत भूषण ने किया.
Inderjit Megh (extreem right) with others members |
मेघवंशियों का समाचार-पत्र ‘दर्द की आवाज़’ ने रुचि जगाई |
एक विस्तृत नोट नीचे दिए लिंक पर क्लिक करके पढ़ा जा सकता है.
Believer and non-believer (आस्तिक बनाम नास्तिक)
डॉ दिव्या के ब्लॉग पर नास्तिकता–आस्तिकता के विषय पर लंबी बहस छिड़ गई. टिप्पणी दर टिप्पणी आई. स्वाभाविक कई समूह बन गए. तीन प्रमुख रहे– 1. आस्तिक, 2. नास्तिक और 3. कुछ इधर के कुछ उधर के या न इधर के न उधर के. एक बात फिर स्पष्ट हुई कि लोग नास्तिक होते हैं लेकिन स्वयं पर इसका ठप्पा लगने से डरते हैं. इसे भीरूता कहना अधिक उपयुक्त होगा.