हैदराबाद में मेरे एक पुराने मित्र हैं. वे बौध हैं और बहुत ही प्यारे व्यक्ति हैं. एक दिन फोन पर बात करते हुए मैंने मेघवंश का उल्लेख किया. उन्होंने प्रतिक्रिया की कि मेघवंशी उत्तर भारतीय हैं और नागवंशी (Nagvanshi) नागपुर (Nagpur) (महाराष्ट्र) के हैं. मैं जानता हूँ कि वे अम्बेडकरवादी हैं. उनकी प्रतिक्रिया से मझे धक्का लगा. अधिक पूछने पर पता चला कि उनके एक मित्र ने उन्हें ऐसा बताया था. तब मैंने उन्हें कुछ संदर्भ दिए ताकि वे समझ जाएँ कि दोनों का मूल एक ही है. वृत्र को पहला मेघ माना जाता है और उसे ही ‘वृत्र असुर’ और ‘अहि (नाग) वृत्र’ कहा गया है. ये दोनों ही नाम उसे दिए गए. बाद में उसकी संतानों को भी यही नाम दिए गए जो आज भी प्रचलित हैं.
नाम हमें बाँट देते हैं. पौराणिक कथाओं (Mythical Stories)और भ्रष्ट इतिहास (Corrupted History) के संदर्भ दे कर हमारे सामाजिक समूहों को और बाँट दिया जाता है. उन्हें क्षेत्रीय आधार पर भी बाँटा गया जैसा कि ऊपर दिए उदाहरण में था. इस प्रक्रिया को रोकने आवश्यकता है. इस बात की तुरत आवश्यकता है कि लोगों को शिक्षित करने के प्रयासों में तेज़ी लाई जाए. अलग-अलग राज्यों और धर्मों के हमारे नेताओं को इस गंदी बाँट को समझना चाहिए और एकता की प्रक्रिया को शुरू करना चाहिए. अन्य दायरों और क्षेत्रों के विवेकशील नेताओं को भी विचार-विमर्श में शामिल किया जा सकता है. इस बात का भी बहुत महत्व है कि बँटे हुए समाजिक समूहों को जोड़ने की ग़र्ज़ से धार्मिक नेताओं को एक मंच पर आने के लिए मजबूर किया जाए.
There is a google site link regarding Meghvanshis here –> Megh Rishi and Meghvansh
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