Category Archives: Shudra

BAMCEF-2 – बामसेफ-2



कल 21-10-2012 को बामसेफ चंडीगढ़ यूनिट ने कॉमनवेल्थ यूथ प्रोग्राम, एशिया सेंटर, सैक्टर-12 के हाल में एक दिवसीय इतिहासात्मक और विचारधारात्मक प्रशिक्षण काडर कैंप (Historical and Ideological Training Cadre Camp) का आयोजन किया. इसमें भाग लेने का मौका मिला. इस प्रशिक्षण कैंप में मुख्य प्रशिक्षक और वक्ता मान्यवर अशोक बशोत्रा, सीनियर एडवोकेट (Mr. Ashok Bashotra, Sr. AdvocateHigh Court J&K) थे जो जम्मू से पधारे थे.

उनके अभिभाषण में बहुतसी जानकारी थी. जिसमें से मैं दो बातों का यहाँ विशेष उल्लेख करना चाहता हूँ:-
1. किसी भी मनुष्य के लिए तीन चीज़ें बहुत महत्वपूर्ण होती हैं. ‘ज्ञान’- जिससे मनुष्य अपने समग्र जीवन को बेहतर बनाता है, ‘हथियार’- जिससे वह अपने प्राणों की रक्षा करता है और ‘संपत्ति’- जो उसके जीवन को गुणवत्ता प्रदान करती है. मनुस्मृति के प्रावधानों के द्वारा देश के मूलनिवासियों (SC/ST/OBC) से यह तीनों अधिकार छीन लिए गए.
2. तक्षशिला, नालंदा, उज्जैन और विक्रमशिला उस समय (सम्राट अशोक से लेकर बृहद्रथ तक) के विश्व विख्यात विश्वविद्यालय थे. सोते हुए बृहद्रथ की हत्या पुष्यमित्र शुंग नामक ब्राह्मण ने कर दी और सत्ता संभालने के बाद मूलनिवासियों की महान परंपराओं को समाप्त करने करने के लिए उसने चारों विश्वविद्यालयों और वहाँ सुरक्षित साहित्य को नष्ट करने के आदेश दे दिए. डेढ़ माह तक विश्वविद्यालय जलते रहे. छह माह तक वहाँ के पुस्तकालयों को जलाया गया. साठ हज़ार बौध प्राध्यापकों की हत्या की गई जो वहाँ सुरक्षित विज्ञान, दर्शन, धर्म, इतिहास, साहित्य आदि के परमविद्वान थे.
यही कारण है कि कभी मातृत्वप्रधान समाज रहे भारत की स्त्री जाति, शूद्र और दलित अपने जिस इतिहास को ढूँढते फिरते हैं वह नहीं मिलता.

   

Ravindranath Thakur belonged to Shudra caste – रवींद्रनाथ ठाकुर शूद्र जाति से थे


कुछ दिन पहले ही अपने एक ब्लॉग पर हरिचंद ठाकुर के मतुआ आंदोलन पर एक पोस्ट लिखी थी. हरिचंद ठाकुर की खोज करते हुए एक ऐसी जानकारी मिली जो मेरे लिए नई थी.
कई साल पहले पढ़ा था कि रवींद्रनाथ टैगोर को जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया गया था. लेकिन वहाँ उन्हें पीरल्ली ब्राह्मण लिखा गया था. लगा कि यह ब्राह्मणों का आपसी झगड़ा रहा होगा. रवींद्रनाथ टैगोर (ठाकुर) के परिवार ने आदि धर्म या ब्रह्मो/ब्रह्म समाज की स्थापना की थी. पीरल्ली ठाकुरों के इस परिवार में विवाह करने के लिए वहाँ का ब्राह्मण समाज तैयार नहीं था. अंततः देवेंद्रनाथ को अपने पुत्र रवींद्रनाथ टैगोर का विवाह अपने एक कर्मचारी की बेटी से करना पड़ा.
मुद्राराक्षस जैसे स्थापित हिंदी साहित्यकार ने बहुत स्पष्ट शब्दों में उल्लेख किया है कि रवींद्र नाथ टैगोर दलित जाति से थे. इसे नीचे उल्लिखित उनके आलेख टैगोर साहित्य में जाति के सवाल में देखा जा सकता है. हालाँकि आज के संदर्भ में पीरल्लियों को दलित (आज के SCs/STs) लिखना शायद श्रेणी की दृष्टि से ठीक न हो, तथापि, वे निश्चित ही शूद्र जाति (जिसमें OBCs  आती हैं) से संबंधित थे जिन पर निम्नजाति होने का कलंक (stigma) लगा है और ब्राह्मण इन्हें चांडाल कहा करते हैं. पीरल्ली लोग स्वयं को ब्राह्मणों (विशेषकर बैनर्जी) से निकली शाखा मानते हैं. मतुआ आंदोलन पर जानकारी लेते हुए पढ़ा है कि पिछली बार सत्ता में आने से पूर्व ममता बैनर्जी ने स्वयं को मतुआ धर्म का बताया था जो पीरल्लियों का चलाया हुआ आंदोलन था. यह भी देखने योग्य है कि कुछ निम्नजातियाँ जैसे मेघ, मेघवाल, मेघवार आदि स्वयं को ब्राह्मणों से निकली शाखा मानती रहीं हैं.
रवींद्रनाथ टैगोर साहित्य का नोबल पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय थे जिन्हें बहुत देर तक ब्राह्मण के तौर पर प्रचारित किया जाता रहा. रवींद्रनाथ के कुछ पुरखों ने जातिगत भेदभाव से तंग आकर पंद्रहवीं शताब्दी में इस्लाम अपना लिया था.
(कुछ स्पष्ट हो रहा है कि रवींद्रनाथ ठाकुर रचित जन-गण-मन के साथ बंकिमचंद्र चटर्जी लिखित वंदेमातरम् को नत्थी करने का कारण क्या रहा होगा.)
टैगोर के विषय में Wikipedia पर दिए ये दो आलेख पढ़े जा सकते हैं जो पर्याप्त रूप से स्पष्ट हैं. ये लिंक 20-10-2012 को देखे गए हैं.
निखिल चक्रवर्ती के लिखे एक बढ़िया आलेख का लिंक नीचे दिया गया है जिसके बारे में इतना ही कहना चाहूँगा कि यह एक ब्राह्मणिकल नज़रिए से लिखा गया है. बहुत से तथ्य दे दिए गए हैं लेकिन उनमें निहित जातिगत सच्चाई को स्पष्ट रूप से कह न पाने की मजबूरी-सी नज़र आती है. यह आलेख वास्तविकता के ऊपर मँडराता तो है लेकिन उस पर उतरता नहीं. Wikipedia में साफ़ जानकारी है कि रवींद्रनाथ टैगोर पीरल्ली जाति से थे. यह जाति stigmated थी. इस परिवार ने ऊँची जातियों की घृणा के डंक को सदियों सहन किया. टैगोर ने कहा है कि यदि दूसरा जन्म होता है तो वह बंगाली बन कर पैदा होना नहीं चाहेंगे. उनकी ऐसी कटुता का विश्लेषण करने की हिम्मत शायद कोई करे. यह आलेख कहता है कि टैगोर ने नमोशूद्रा जाति के एक सम्मेलन में भाग लिया था. पीरल्ली और नमोशूद्रा दोनों stigma युक्त जातियाँ हैं. टैगोर की जाति से संबंधित उस समय के इस महत्वपूर्ण घटनाक्रम और तथ्यों को  बंगाली इतिहासकारों ने शायद शर्मिंदगी के कारण अपनी ही बग़ल में छिपाने की गंभीर कोशिश की है.