Category Archives: Politics

The reality of riots – दंगों का सच

दंगों का कारण कभी भी केवल धार्मिक और आर्थिक नहीं रहा. इनका संबंध सत्ता से रहा है और अब लोकतंत्र में सीधे तौर पर वोटों की गिनती के साथ है. कोशिश होती है कि दंगे कर के दलितों और दलितों से धर्मांतरित हुए मुस्लिमों को पहले से गरीब कर दिया जाए और बाद में पुनर्वास के नाम पर उन्हें उनके वोट क्षेत्र से दूर ले जाकर बसाया जाए ताकि उनके वोटों में एकता न हो जाए.


AAP – आम आदमी पार्टी

मुलायम का तीसरा मोर्चा दलितों के समर्थन के बिना अपंग ही रहेगा क्योंकि वहाँ अन्य सहयोगी पार्टियों का नेतृत्व ब्राह्मणों के हाथों में है. जल्द ही मीडिया आम आदमी पार्टी को तीसरा मोर्चा कहने लगेगा जो ब्राह्मणबनिया जुगलबंदी है.
आम आदमी पार्टी कांग्रेस और भाजपा की ऐसी शाखा है जो संविधान के साथ बड़ी छेड़छाड़ के लिए बनाई गई है. सावधान रहने की आवश्यकता होगी. जागो मूलनिवासी.

MEGHnet

Indian Government ji, wake up – भारत सरकार जी, जागो

पोंटी चड्डा के मामले में मेरी नज़र केवल इस तथ्य पर अटक कर रह गई है कि उनके परिवार के कुछ सदस्यों को एक ही दिन में कई हथियारों के लाइसेंस दे दिए गए. उसके साथ ही बुलंदशहर में एक पति की हत्या (जिसे बदतमीज़ मीडिया अभी भी ऑनर किलिंग कहे जा रहा है) में प्रयोग हुए फायर आर्म्ज़ ने मुझे उन सभी घटनाओं की याद दिला दी है जिनमें यहाँ-वहाँ गली-कूचे में पता नहीं कहाँ से तमंचे, पिस्तौलें, राइफलें निकल आती हैं और खून से सनी लाशें छोड़ जाती हैं.

देश में आर्थिक हालात काफी तेज़ी से बदल रहे हैं. लोगों में ज़बरदस्त असंतोष है और सिस्टम के प्रति घृणा व्याप्त हो रही है. केजरीवाल की एक प्रेस कांफ्रेंस में प्रशांत भूषण ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि देश में गृहयुद्ध के हालात बन रहे हैं. पता नहीं सरकार की मंशा क्या है.
मैं सरकार पर कोई व्यंग नहीं करना चाहता हालाँकि प्रशासन हथियार और लाइसेंस देता है. अब समय आ गया है कि सरकार जारी हथियार वापस ले और उनकी संख्या को न्यूनतम करे. माफिया की नकेल कसे.

देश को भयंकर परिणामों से बचाने की सख़्त ज़रूरत है.

Let us play fire – आओ ठायँ-ठायँखेलें


Political ambitions of Meghs – मेघों की राजनीतिक महत्वाकांक्षा


पंजाब में विधान सभा के चुनाव फरवरी 2012 में होने जा रहे हैं. सुना है कि इस बार कम-से-कम 10 मेघ भगत किसी पार्टी की ओर से या स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर चुनाव में खड़े हो सकते हैं. देखना है कि हमारी तैयारी कितनी है.

शुद्धीकरण की प्रक्रिया से गुजरने के बाद सन् 1910 तक मेघों में जैसे ही अत्मविश्वास जगा तुरत ही उनमें राजनीतिक महत्वाकांक्षा जागृत हो गई.  इसे लेकर अन्य समुदाय चौकन्ने हो गए. अपने हाथ में आई सत्ता को कोई किसी दूसरे को थाली में नहीं परोसता कि आइये हुजूर मंत्रालय हाज़िर है‘. तब से लेकर आज तक  वह महत्वाकांक्षा ज्यों की त्यों है लेकिन समुदाय में राजनीतिक एकता का कहीं अता-पता नहीं. 
भारत विभाजन के बाद मेघ भगतों का  कांग्रेस की झोली में गिरना स्वाभाविक था. अन्य कोई पार्टी थी ही नहीं. फिर आपातकाल के बाद जनता पार्टी का बोलबाला हुआ. जालन्धर से श्री रोशन लाल को जनता पार्टी का टिकट मिला. पूरे देश में जनता पार्टी को अभूतपूर्व जीत मिली. लेकिन भार्गव नगर से जनता पार्टी हार गई. देसराज की 75 वर्षीय माँ ने हलधर पर मोहर लगाईविजय के 80 वर्षीय पिता ने हलधर पर ठप्पा लगाया. ये दोनों छोटे दूकानदार थे. लेकिन इस चुनाव क्षेत्र से दर्शन सिंह के.पी. (के.पी. = (शायद) कबीर पंथी) चुनाव जीत गया. राजनीतिक शिक्षा के अभाव में मेघ भगतों के वोट बँट गए.

फिर भगत चूनी लाल (वर्तमान में पंजाब विधान सभा के डिप्टी स्पीकर) यहाँ से दो बार बीजेपी के टिकट से जीते. लेकिन समुदाय के लोगों को हमेशा शिकायत रही कि इन्होंने बिरादरी के लिए उतना कार्य नहीं किया जितना ये कर सकते थे. कहते हैं कि नेता आसानी से समुदाय से ऊपर उठ जाते हैं और फिर अपनों‘ की ओर मुड़ कर नहीं देखते. यहाँ एक विशेष टिप्पणी आवश्यक है कि यदि कोई नेता विधान सभा का सदस्य बन जाता है तो वह किसी समुदाय/बिरादरी विशेष का नहीं रह जाता. वह सारे चुनाव क्षेत्र का होता है. दूसरी वस्तुस्थिति यह है कि हमारे नेताओं की बात संबंधित पार्टी की हाई कमान अधिक सुनती नहीं है. मेघ भगत ज़रा सोचें कि वे कितनी बार अपने नेताओं के साथ सड़कों पर उतरे हैंकितनी बार उन्होंने अपनी माँगों की लड़ाई लड़ते हुए हाईवे को जाम किया है या अपने नेता के पक्ष में शक्ति प्रदर्शन किया है. इसके उत्तर से ही उनके नेता और उसके समर्थकों की शक्ति का अनुमान लगाया जाएगा.

सी.पी.आई. के टिकट से जीते एक मेघ (मेघवाल) चौधरी नत्थूराम मलौट से पंजाब विधान सभा में दो बार चुन कर आए. इन्हीं के पिता श्री दाना राम तीन बार सीपीआई की टिकट से जीत कर विधानसभा में आए हैं. पता नहीं उनके बारे में लोग कितना जानते हैं.
सत्ता में भागीदारी का सपना 1910 में हमारे पुरखों ने देखा था. वे मज़बूत थे. इस बीच क्या हमें अधिक मज़बूत नहीं होना चाहिए थासोचें. एकता ही शक्ति है‘ की समझ जितनी जल्दी आ जाए उतना अच्छा. एकता की कमी और राजनीतिक पिछड़ेपन का हमेशा का साथ है.
राजनीतिक पार्टी कोई भी होइससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता. सब का चेहरा एक जैसा होता है. महत्वपूर्ण है कि मेघ समाज आपस में जुड़ने की आदत डाले. आपस में जुड़ गए तो स्वतंत्र उम्मीदवार को भी जिता सकते हैं. यही बात है जो बड़ी राजनीतिक पार्टियाँ नहीं चाहतीं. इस हालत में आपको क्या करना चाहिए?