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Rajtarangini and Meghs – राजतरंगिनी और मेघ


Rajtarangini and Meghs
कल श्री ताराराम जी ने कल्हण की राजतरंगिणी की पीडीएफ फाइल भेजी थी जिसके वे पृष्ठ पढ़ गया हूँ जो सम्राट मेघवाहन से संबंधित हैं, जो एक बौध राजा थे, और इन विचारों से जूझ रहा हूँ.
1. लेखक एक ब्राह्मण था. पता नहीं उसके लिखे इतिहास पर कितना विश्वास किया जा सकता है.
2, पुस्तक की भाषा बताती है कि लेखन में काफी भावुकता है और कि वह सत्य पर हावी हो सकती है. तब कितना भरोसा किया जाए.
3. ख़ैर, पुस्तक बताती है कि बौध राजा मेघवाहन को गांधार से बुला कर कश्मीर का राजा बनाया गया जिसने अपने सुशासन से प्रजा का हृदय जीत लिया.
4. बाकी बातों को छोड़ यदि केवल मेघवाहन शब्द पर ही विचार किया जाए तो पहला प्रश्न यह है कि क्या हम मेघवाहनसे ही मेघजाति की व्युत्पत्ति (शुरुआत) मान लें. ऐसा नहीं लगता.
5. भाषा विज्ञान की दृष्टि से मेघवाहनशब्द से कई शब्द निकले हो सकते हैं, जैसे– मेदमघ, मेघमेधमेथा, मेधो, मेगल, मेगला, मींघ, मेघवाल, मेंग, मेंघवाल, मेघोवाल, मद्र, मल्ल आदि. अधिक संभावना मींघ, मेंघवाल, मेघवाल की है. ये सभी शब्द दलित समुदायों से संबंधित हैं और इतिहास के अनुसार दलित उन्हें ही बनाया गया जिन का मूल बौधधर्म में था. संभावना इस बात की भी लगती है कि सम्राट मेघवाहन मेघ/मेघवाल रहे हों जो अफ़गानिस्तान में बसे थे. इतिहास में उल्लिखित ‘Dark ages’ में मेघनाम (वंशावली नाम) वाले कई राजा हुए हैं लेकिन उनके बाद उन राजाओं के नाम को सरनेम की तरह अपनाने वाले समुदायों का उल्लेख कहीं नहीं मिलता. हाँ, अलबत्ता मेघनाम वाले मानव समूहों की संख्या काफी बड़ी है और वे सदियों से गुमनामी में हैं.
6. दूसरी ओर यह भी तथ्य है कि दुनिया में कोई ऐसा मानव समूह नहीं है जिसका अपना कोई पूर्वज राजा या शासक न रहा हो. यानि तर्क को सिर के बल खड़ा करके देखें तो भी मेघों के समूह का कोई तो राजा रहा होगा.
7. ‘मेघशब्द के कई अर्थ हो सकते हैं. इस पर भी चर्चा हो सकती है. बुद्ध का एक नाम मेघेंद्रहै जिसका अर्थ हैमेघों का राजा.

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A drop of History of Meghs – मेघ इतिहास की एक बूँद

(Frederic Drew की पुस्तक के पृष्ठ 55-57 तक का अनुवाद)

अंत में वे जातियाँ आती हैं जिन्हें हम अंग्रेज़ सामान्यतः हिंदुओं की निम्न जातियाँकहते हैं लेकिन ऐसा किसी हिंदू के मुँह से नहीं सुना जाता; उन्हें हिंदू के तौर पर कोई मान्यता नहीं दी जाती; उन्हें हिंदुओं में नीचा स्थान भी प्राप्त नहीं है. उनके नाम हैं मेघ और डूम और मेरा विचार है कि इनमें धियार नामक लोगों को भी शामिल करना चाहिए जिनका पेशा लोहा पिघलाना है और जिन्हें आमतौर पर उनके साथ ही वर्गीकृत किया जाता है.


ये कबीले आर्यों से पहले आने वाले कबीलों के वंशज हैं जो पहाड़ों पर रहने वाले थे जो हिंदुओं और आर्यों द्वारा देश पर कब्ज़ा करने के बाद दास बना लिए गए थे; आवश्यक नहीं था कि वे किसी एक व्यक्ति के ही दास हों, वे समुदाय के लिए निम्न (कमीन) और गंदगी का कार्य करते थे. उनकी स्थिति आज भी वैसी है. वे शहरों और गाँवों में सफाई का कार्य करते हैं*. (* मेरा विचार है कि धियारों का रोज़गार ऐसा कम है कि वे जातीय रूप से मेघों और डूमों से जुड़े हैं.) डूमों और मेघों की संख्या जम्मू में अधिक है और वे पूरे देश, जो निचली पहाड़ियों और उससे आगे की ऊँची पहाड़ियों, में बिखरे हैं. वे ईँट बनानें, चारकोल बर्निंग और झाड़ूपोंछा जैसे रोज़गार से थोड़ी कमाई कर लेते हैं. इन्हें प्राधिकारियों द्वारा किसी भी समय ऐसे कार्य के लिए बुलाया जा सकता है जिसमें कोई अन्य हाथ नहीं लगाता.

केवल उनके द्वारा किए जाने वाले ऐसे श्रम की श्रेणी के कारण ही ऐसा है कि उन्हें एकदम अस्वच्छ गिना जाता है; वे जिस चीज़ को छूते हैं वह गंदी प्रदूषित हो जाती है; कोई हिंदू सपने में भी नहीं सोच सकता कि वह उनके द्वारा लाए गए ऐसे बर्तन से पानी पीएगा जिस बर्तन को एक सोंटी के किनारे पर लटका कर ही क्यों न लाया गया हो. जिस गलीचे पर अन्य बैठै हों वहाँ इन्हें कभी आने नहीं दिया जाता है. यदि संयोग से उन्हें कोई कागज़ देना हो तो हिंदू उस कागज़ को ज़मीन पर गिरा देगा और वहाँ से वह उसे ख़ुद ही उठाएगा; वह उन्हें उनके हाथ से नहीं लेगा.

मेघों और डूमों के शारीरिक गुण भी हैं जो उन्हें अन्य जातियों से अलग करते हैं. उनका रंग सामान्यतः अधिक साँवला होता है जबकि इन क्षेत्रों में उनका रंग हल्का गेहुँआ होता है, इनका रंग कभी इतना साँवला भी हो सकता है जितना दिल्ली से नीचे के भारतवासियों में है. मेरा विचार है कि आम तौर पर इनके अंग छोटे होते हैं और कद भी तनिक छोटा होता है. अन्य जातियों की अपेक्षा इनके चेहरे पर कम दाढ़ी होती है और डोगरों के मुकाबले इनका चेहरामोहरा काफी निम्न प्रकार का है, हालाँकि इसके अपवाद हैं जिसका कारण निस्संदेह रक्तमिश्रण है, क्योंकि दिलचस्प है कि अन्य के साधारण दैनिक जीवन से इनका अलगाव उस कभीकभार के अंतर्संबंधों को नहीं रोकता जो अन्य जातियों को आत्मसात करता है.

डूमों के मुकाबले मेघों की स्थिति कुछ वैसी है जैसे हिंदुओं में ब्राह्मणों की, उन्हें न केवल थोड़ा ऊँचा माना जाता है बल्कि उन्हें कुछ विशेष आदर के साथ देखा जाता है.

जम्मूकश्मीर के महाराजा (गुलाब सिंह) ने इन निम्न जातियों की स्थिति में सुधार के लिए कुछ कार्य किया और कुछ सौ लोगों को सिपाही के तौर पर खुदाई और खनन कार्य के लिए भर्ती किया. इन्होंने कुछ नाम कमाया है, वास्तव में युद्ध के समय ऐसा व्यवहार किया है कि उन्हें सम्मान मिला है, उच्चतर जातियों के समान ही अपने साहस का परिचय दिया है और सहनशक्ति में तो उनसे आगे निकले हैं.

इस प्रकार हम देखते हैं कि डूगर के अधिसंख्य लोग हिंदू हैं जिनमें पुराने कबीलों के भी लोग हैं. वे किस धर्म से संबंधित हैं यह नहीं कहा जा सकता……..
(From ‘The Jummoo and Kashmir Territories, A Geographical Account’ by Frederic Drew, 1875)


https://archive.org/stream/jummooandkashmi00drewgoog#page/n308/mode/1up

Megh-Jat struggle – जाटों मेघों का संघर्ष

एक जानकारी फेसबुक के ज़रिए :-


Tararam Gautam:

कुछ इतिहासकारों ने मेघ समाज की उत्पति मेद, मद्र और मल्ल जातीय समूह से होना दर्शाया है। मैं भी इस संभावना को नकारता नहीं हूँ।

मद्र लोगों का उत्कर्ष गांधार क्षेत्र में हुआ। मेव भी इसी क्षेत्र से। मल्लों का राज्य पावा और कुशिनारा में। बौद्ध साहित्य मल्लों का शासन गांधार में भी होने का वर्णन करता है। इस प्रकार से मल्ल और मद्र एक ही ठहरते है।

मुज्मल ए तवारीख (mujmalu-I tawarikh) जिसका परेशियन भाषा में AD 1026 में अनुवाद हुआ। उसमें मेदों (say as Megh) और जाटों के संघर्ष का विवरण उपलब्द्ध होता है। ये मेद और जाट बाद में मुस्लमान हिन्दू और बौद्ध आदि धार्मिक विभागों मे बंट गए। तवारीख के अनुवाद में इलियट लिखते है-“Jats and Meds are… they dwelt Sindh and (on the bank of) the river which is called Rahar. By the Arabs the Hindus are called Jats. The Meds held the ascendancy over the jats; and put them to great distress, which compelled them to take refuge on the other side of the river Pahan, but being accustomed to the use of boats, they used to cross the river and made attracts on Meds (Meghs); who were owners of sheep. It so come to pass that the Jats enfeebled the Meds (meghs), killed many of them, and plundered their country. The Meds (Meghs) then become subject to the jats.”

And discussion goes so on …. if some one have copy of that book it must be looked into for constricting history of Meghs of that region.

Tararam Gautam:

Struggle between Jats and Meds (Meghs) settled and arrival of Brahmans in their territories as told by historians of Sindh-

“One of that Jat chiefs (seeing the sad state to which Meds were reduced) made the people of his tribe understand that success was not constant; that there was a time when the Meds Meghs) attacked Jats and harassed them, and that the jats had in their turn done the same with the Meds. He impressed upon their minds the utility of both tribes living in peace, and then advised the Jats and Meds to send a few chiefs to wait on king Dajushan, son of Dahrat, and beg of him to appoint a king, to whose authority both tribes might submit. The result of this was satisfactory, and his proposition was adopted. After some discussion they agreed to act upon it, and the emperor Dajushan nominated his sister Dassal , wife of king Jandrat, a powerful prince, to rule over the Jats and Meds. Dassal went and took charge of the country and cities, the particulars of which and of the wisdom of the princess, are detailed in the origional work. But for all its greatness and riches and dignity, there was No Brahman or wise man in the country. She therefore wrote a long letter to her brother for assistance, who collected 30000 Brahmans from all Hindustan , and sent them, with all their goods and dependents,to his sister. There are several discussions and stories about these brahmans in original work.

A long time passed before Sindh become flourishing. The origional work gives a long description of country, its rivers and wonders, and mentions foundations of cities. The city which the queen made the capital, is called Askaland. A small portion of country to made over to Jats and appointed one of them as their chief, his name was Judrat. Similar arrangements were also made for the Meds.

(Rattan Gottra and K.k. Singh Genwa like this.)

Tararam Gautam:  Above facts are mentioned in Mujmalu-I Tawarikh. Extracts above are as narrated by Elliot, sir, in the history of India, 1867(Historians of Sindh-volume,1)Pp 4-5. Bharat Bhagat sir is requested to tally with rajatarangini to ascertain dates and

Tararam Gautam:

Know your history- ब्राह्मणों ने दाहिर की पत्नी को कासिम को सौंपा- Chachnama;edited by Sir H M Elliot; pp84-85

“The relations of Dahir are betrayed by the Brahmans”-

“It is revealed that when none of the relations of Dahir were found among the prisoners, the inhabitants of the city were questioned respecting them, But the no one gave any information or hint about them. But the next date nearly one thousand Brahmans, with shaven heads and beards, brought before Kasim.”

The Brahmans come to Muhammad Kasim

When Muhammad Kasim saw them, he asked to what army they belonged, and why they had come in that manner. They replied, O faithful noble, our king was a Brahman. You have killed him, and have taken his country; but some of us have faithfully adhered to his ccouse, and have laid down our lives for him; and the rest, mourning for him; have dressed themselves in yellow clothes, and have shaved their heads and beards. As now the Almighty God has given this country into your possession, we have come submissively to you just Lord, to know what may be your orders for us. Muhammad Kasim began to think, said, “By my soul and head, they are good, faithful people. I give them protection, but on this condition, that they bring hither the dependents of Dahir, wherever they may be”. Thereupon they brought out *Ladi.”

*queen, wife of King Dahir


Tararam Gautam:


अरबी पुस्तकों में भिक्षु के लिए बैकुर या बेकर शब्द भी मिलता है।बौद्ध भिक्षु हेतु बरामका शब्द भी मिलता है। बरामक अभी मुस्लमान है।

अरबी इतिहास पुस्तकों और चचनामा मेबौद्धों के नौविहार मंदिर का बारम्बार उल्लेख है। नौबहार मंदिरका मुख्य पुजारी-भिक्षु बरामक कहा जाता था।

Tararam Gautam:

अरबी इतिहास पुस्तकों और चचनामा मेबौद्धों के नौविहार मंदिर का बारम्बार उल्लेख है। नौबहार मंदिरका मुख्य पुजारी-भिक्षु बरामक कहा जाता था।

Tararam Gautam:

अरबी पुस्तकों में बौद्धों का एक अन्य संबोधन-
“अरबी पुस्तकों में बौद्धों का एक तीसरा नाम मुहम्मिरा भी है, जिसका अर्थ है लाल कपड़े पहनने वाले।(किताबुल हिन्द, बैरूनी,191) इस धर्म के साधु इसी रंग के कपडे पहनते थे। वे इसी से पहचाने जाते थे। मारवाड़ी में इसे मेरुन या मेहरून कहा गया है। या तो इससे गेरुएँ रंग से अभिप्राय हो या केसरिया रंग से।”

 


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Meghs of J&K-2

जम्मू कश्मीर हिमाचल प्रदेश और पजाब के कई भूभाग सन 1900 के आस पास chamba state में शामिल थे। रावी और चंद्रभागा नदियों के कारण यह महतवपूर्ण क्षेत्र था। उन्नीसवी शदी के अंत में अंग्रेजों ने इस भूभाग का विस्तृत सर्वे और अनुसन्धान किया जिसे गजेतिअर ऑफ़ चाम्बा के नाम से 1910 में प्रकाशित किया। सैमुएल टी वेस्टन द्वारा सम्पादित इस गजेटियर में इन इलाको में निवासित लोगों के रहन सहन रीतिरिवाज खानपान व्यवसाय और इतिहास आदि पर महतवपूर्ण सामग्री है। पंजाब जे के आदि क्षेत्रों में निवास करने वाले मेघ समुदाय पर उपलब्द्ध सूचना संक्षेप में निम्न प्रकार है-
To Satish Bhagat.यहाँ पर आपको सैम्युल टी वेस्टन के मेघ इतिहास के बारे में व्यक्त मत का अनुवाद पेश कर रहा हूँ। कृपया संग्रहित करें। जम्मू कश्मीर में ज्यादातर मेघ आबादी पर्वतीय क्षेत्रो में रहती है। ये वर्त्तमान में पर्वतों पर नही बसे है बल्कि जब से पहाड़ी क्षेत्रों में बस्तियां बसने लगी तभी से आबाद है। आज ये एक जाति के रूप में जाने जाते है। सैमुअल टी वेस्टन लिखते है- “पर्वतों पर रहने वाले ये लोग मूलतः कौन थे? इस बारे में अत्यल्प जानकारी भी उपलब्ध नहीं है; जो इस बारे में हमारी मदद कर सके। परम्परागत मान्यता है कि ये लोग मैदानी इलाकों से आकर यहाँ बसे है। जहाँ सब कुछ अनिश्चित है;जहाँ कोई अनुमान की जोखिम उठाता तो यह असम्भाव्य नहीं लगता है कि वर्त्तमान में जो मेघ आदि जातियां है वे लोग ही यहाँ के आदि(मूल) निवासी है।——–इनकी आबादी एक चौथाई है। जो कोली—-मेघ और कुछ अन्य में परिगणित है। यद्यपि वे सामाजिक स्तरीकरण मे अलग अलग है परन्तु हिन्दुओं द्वारा उन्हें बहिस्कृत(जाति बाह्य) ही मन जाता है। इन लोगों के पास अपने मूल निवास की कोई इतिहस-परंपरा भी नहीं है। जो इस अनुमान को पुष्ट करता है कि उनकों यहाँ निवास करते हुए लम्बा काल गुजर चूका है। जनरल कन्निन्घम आश्वस्त है कि किसी समय पश्चिमी हिमालय क्षेत्र मध्य भारत में बसने वाले कोल प्रजाति के समान मानव समुहो द्वारा ही आबाद था। आज भी ये बहुतायत लोग है; जो कोल; मेघ नाम धारण करते है । ये वही लोग है।” पूर्वोक्त पृष्ट58


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Megh Emperors – मेघ सम्राट

प्राचीन मेघ राजाओं के बारे में इतिहासकारों का क्या कहना है इसके बारे में ताराराम जी ने फोटो भेजे थे. इसमें एक पुस्तकभारतवर्ष का अंधकारयुगीन इतिहास‘ (पृष्ठ 161) की फोटोप्रति भी इसमें शामिल थी. यह पुस्तक प्रो. काशी प्रसाद जायसवाल ने लिखी है.इसे पढ़ कर अब गर्व से कहने को दिल करता है किमैं मेघ हूँ. मैं अपना इतिहास जानता हूँ. मेरे पुरखे सम्राट थे. शक्तिशाली और बुद्धिमान थे.
वाकाटकों के समय में कोसला के एक के बाद एक इस प्रकार नौ शासक हुए थे, पर भागवत के अनुसार इनकी संख्या सात ही है. ये लोग मेघ कहलाते थे. संभव है कि ये लोग उड़ीसा तथा कलिंग के उन्हीं चेदियों के वंशज हों जो खारवेल के वंशधर थे और जो अपने साम्राज्यकाल में महामेघ कहलाते थे. अपनी सात या नौ पीढ़ियों के कारण ये लोग मूलतः विंध्यशक्ति के समय तक जब कि आंध्र पर विजय प्राप्त की गई थी, या उससे भी और पहले भारशिवों के समय तक जा पहुँचते हैं. विष्णुपुराण के अनुसार कोसला प्रदेश के सात विभाग थे (सप्त कोसला). पुराणों में कहा गया है कि ये शासक बहुत शक्तिशाली और बहुत बुद्धिमान थे. गुप्तों के समय में मेघ लोग हमें फिर कोशांबी के शासकों और गवर्नरों के रूप में मिलते हैं जहाँ उनके दो शिलालेख मिले हैं.”

Meghvansh – Itihas Aur Sankriti – मेघवंश – इतिहास और संस्कृति

अगर कनिष्क वासुदेव, मिनांडर, भद्र मेघ, शिव मेघ, वासिठ मेघ आदि पुरातात्विक अभिलेखांकन व मुद्राएँ न मिलतीं, तो इतनी अत्यल्प जानकारी भी हम प्राप्त नहीं कर सकते थे. चूँकि बौध धर्म ही उस समय भारत का धर्म था और संपूर्ण राजन्य वर्ग व आम जनता इस धर्म के प्रति श्रद्धावनत थी, तो निश्चित है कि ये राजवंश बौद्ध धर्म की पक्ष ग्राह्ता के कारण ही पुराणादि साहित्य में समुचित स्थान नहीं पा सके……

इस प्रकार मेघवंश क्षत्रिय वंश रहा है न कि क्षत्रियोत्पन्न हिंदू धर्म की एक जाति. उनकी हीनता की जड़ें उनकी हिंदू धर्म में विलीनीकरण की प्रक्रिया में सन्निहित हैं……
….कई समाज सुधारकों ने इस जाति के उत्थान व गौरव बोधहेतु इस जाति की सामाजिक रीति, रिवाज़ों व व्यवस्थाओं को वैदिक आधार प्रदान करने की सफल चेष्टा भी की, परंतु वे इस जाति का गौरव बोधऊपर नहीं उठा पाए…….

(श्री ताराराम कृत “मेघवंश – इतिहास और संस्कृति से”)

(पुस्तक प्रकाशक- सम्यक प्रकाशन, 32/3, पश्चिमपुरी, नई दिल्ली-110063 दूरभाष- 9810249452)

(नीचे दिया गया पंजाबी अनुवाद मशीनी अनुवाद है)
ਜੇਕਰ ਕਨਿਸ਼ਕ ਵਾਸੁਦੇਵ, ਮਿਨਾਂਡਰ, ਸੁੱਖ-ਸਾਂਦ ਮੇਘ, ਸ਼ਿਵ ਮੇਘ, ਵਾਸਿਠ ਮੇਘ ਆਦਿ ਪੁਰਾਸਾਰੀ ਅਭਿਲੇਖਾਂਕਨ ਅਤੇ ਮੁਦਰਾਵਾਂ ਨਹੀਂ ਮਿਲਦੀ, ਤਾਂ ਇੰਨੀ ਬਹੁਤ ਥੋੜਾ ਜਾਣਕਾਰੀ ਵੀ ਅਸੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸੱਕਦੇ ਸਨ. ਹਾਲਾਂਕਿ ਬੋਧ ਧਰਮ ਹੀ ਉਸ ਸਮੇਂ ਭਾਰਤ ਦਾ ਧਰਮ ਸੀ ਅਤੇ ਸੰਪੂਰਣ ਰਾਜੰਨਿ ਵਰਗ ਅਤੇ ਆਮ ਜਨਤਾ ਇਸ ਧਰਮ  ਦੇ ਪ੍ਰਤੀ ਸ਼ਰੱਧਾਵਨਤ ਸੀ, ਤਾਂ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਹੈ ਕਿ ਇਹ ਰਾਜਵੰਸ਼ ਬੋਧੀ ਧਰਮ ਦੀ ਪੱਖ ਗਰਾਹਤਾ ਦੇ ਕਾਰਨ ਹੀ ਪੁਰਾਣਾਦਿ ਸਾਹਿਤ ਵਿੱਚ ਸਮੁਚਿਤ ਸਥਾਨ ਨਹੀਂ ਪਾ ਸਕੇ……

………ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਮੇਘਵੰਸ਼ ਕਸ਼ਤਰਿਅ ਖ਼ਾਨਦਾਨ ਰਿਹਾ ਹੈ ਨਹੀਂ ਕਿ ਕਸ਼ਤਰਯੋਤਪੰਨ ਹਿੰਦੂ ਧਰਮ ਦੀ ਇੱਕ ਜਾਤੀ. ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਛੁਟਿਤਣ ਦੀਆਂ ਜੜੇਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਹਿੰਦੂ ਧਰਮ ਵਿੱਚ ਵਿਲੀਨੀਕਰਣ ਦੀ ਪਰਿਕ੍ਰੀਆ ਵਿੱਚ ਤਿਆਰ-ਬਰਤਿਆਰ ਹਨ………

………ਕਈ ਸਮਾਜ ਸੁਧਾਰਕਾਂ ਨੇ ਇਸ ਜਾਤੀ ਦੇ ਉੱਨਤੀ ਅਤੇ ਗੌਰਵ ਬੋਧ ਹੇਤੁ ਇਸ ਜਾਤੀ ਦੀ ਸਾਮਾਜਕ ਰੀਤੀ, ਰਿਵਾਜਾਂ ਅਤੇ ਵਿਅਵਸਥਾਵਾਂ ਨੂੰ ਵੈਦਿਕ ਆਧਾਰ ਪ੍ਰਦਾਨ ਕਰਣ ਦੀ ਸਫਲ ਕੋਸ਼ਸ਼ ਵੀ ਕੀਤੀ, ਪਰ ਉਹ ਇਸ ਜਾਤੀ ਦਾ ਗੌਰਵ ਬੋਧ ਉੱਤੇ ਨਹੀਂ ਉਠਾ ਪਾਏ…….

 (ਸ਼੍ਰੀ ਤਾਰਾਰਾਮ ਕ੍ਰਿਤ ਮੇਘਵੰਸ਼  –  ‘ਇਤਹਾਸ ਅਤੇ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ’ विच्चों) 

 

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Meghvansh Society in J & K and Punjab – जम्मू-कश्मीर व पंजाब में मेघवंश समाज

पंजाब व जम्मूकश्मीर में भी मेघवंश समाज की बड़ी संख्या है. जो मेघ व भगत कहलाते हैं. जम्मूकश्मीर के पहाड़ी इलाकों में मेघ कबीलों के लोगों के पूर्वज बौद्ध परंपराओं के अनुयायी व कबीरपंथी थे. पहले ये जनजाति में गिने जाते थे तथा घुमंतू जीवन भी जीते थे. कश्मीर बौद्ध सम्राट कनिष्क के शासन का केंद्र था. बौद्ध धम्म के पतन के बाद यहाँ भी वैदिक ब्राह्मणी वर्चस्व कायम हो गया. तुर्कों के हमलों के बाद मुसलमान भी काफी बने. आज़ादी के पूर्व राजपूत सामंतों व पंडितों द्वारा मेघों का भारी सामाजिक व आर्थिक शोषण किया जाता था. इनका जीवन नारकीय था. मुस्लिम प्रभाव में कई मेघ मुसलमान बने तो आर्यसमाज के प्रभाव में कई वैदिक आर्य बन गए. इस प्रकार मेहनतकश व कबीरपंथी मेघों को फिर से आर्यों के ग़ुलाम बना दिया गया.

आज़ादी से पूर्व राजपूत डोगरों का अमानवीय शोषण था. सामंती शोषण से परेशान होकर मेघ भगत जम्मू से पंजाब के स्यालकोट, गुरदासपुर व हिमाचल प्रदेश की ओर पलायन कर गए. कबीर के अनुयायी या भगत होने के कारण मेघ लोग सदियों से भगत कहलाते हैं. यह कौम बहादुर व मेहनतकश रही है. लेकिन जातपात के ज़ुल्मों व धर्म के ठेकेदारों ने इनका बहुत शोषण किया. आर्यसमाजियों के शिकंजे में आने के कारण पंजाब व जम्मू में ये वैदिक ब्राह्मणी धर्म के रक्षक बन गए. अपने को आर्य या भगत मानते थे और ब्राह्मणों से तुलना करते थे. इस कारण 1931 में अनुसूचित जाति की बनी सूची में शुरू में मेघों को शामिल नहीं किया गया लेकिन बाद में समाज व बाबा साहेब के प्रयासों से अनुसूचित जाति में शामिल किया गया. मेघ भगतों का पेशा श्रमिक, पशुपालन व कपड़ा बुनना रहा है लेकिन सवर्ण हिंदू शुरू से ही इन्हें अछूत मानते थे और घोर अमानवीय व क्रूर व्यवहार करते थे.
अंग्रेज़ों के आने के बाद स्यालकोट में कपड़े के बड़े उद्योग स्थापित हुए जिसमें इन कबीरपंथी मेघों को कपड़े के काम में भारी संख्या में लगा कर मुख्यधारा में लाने की कोशिश की गई. भारत पाक विभाजन के समय फिर इन्होंने भाग कर स्यालकोट से हरियाणा, हिमाचल, राजस्थान, पंजाब आदि प्रांतों में शरण ली. इस पलायन से इन्होंने बुरा समय गुज़ारा. आज पंजाब के लुधियाना, जालंधर, चंडीगढ़, अमृतसर, कपूरथला आदि शहरों व इलाकों में मेघों की काफी संख्या है. इक्कीसवीं सदी में पंजाब का कबीरपंथी मेघ अन्य प्रांतों से सामाजिक, आर्थिक व शैक्षणिक रूप से काफी आगे निकल चुका है. वह पंजाब से बाहर विदेशों में भी अपना कारोबार कर रहा है. आज का मेघ रैदास, कबीर, अंबेडकर व बुद्ध की विचारधारा को ज़्यादा महत्व दे रहा है. अब वह वर्णवादी व रूढ़ीवादी धार्मिक विचारों की तिलांजलि दे रहा है और अपना नया रास्ता बना रहा है.

(डॉ. एम. एल. परिहार की पुस्तक- “मेघवाल समाज का गौरवशाली इतिहास” में से)

(यह पंजाबी अनुवाद मशीनकृत है)

ਪੰਜਾਬ ਅਤੇ ਜੰਮੂ-ਕਸ਼ਮੀਰ ਵਿੱਚ ਵੀ ਮੇਘਵੰਸ਼ ਸਮਾਜ ਦੀ ਵੱਡੀ ਗਿਣਤੀ ਹੈ. ਜੋ ਮੇਘ ਅਤੇ ਭਗਤ ਕਹਾਂਦੇ ਹਨ. ਜੰਮੂ-ਕਸ਼ਮੀਰ ਦੇ ਪਹਾੜੀ ਇਲਾਕੀਆਂ ਵਿੱਚ ਮੇਘ ਕਬੀਲੋਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਪੂਰਵਜ ਬੋਧੀ ਪਰੰਪਰਾਵਾਂ ਦੇ ਸਾਥੀ ਅਤੇ ਕਬੀਰਪੰਥੀ ਸਨ. ਪਹਿਲਾਂ ਇਹ ਜਨਜਾਤੀ ਵਿੱਚ ਗਿਣੇ ਜਾਂਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਘੁਮੰਤੂ ਜੀਵਨ ਵੀ ਜਿੱਤੇ ਸਨ. ਕਸ਼ਮੀਰ ਬੋਧੀ ਸਮਰਾਟ ਕਨਿਸ਼ਕ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨ ਦਾ ਕੇਂਦਰ ਸੀ. ਬੋਧੀ ਧੰਮ ਦੇ ਪਤਨ ਦੇ ਬਾਅਦ ਇੱਥੇ ਵੀ ਵੈਦਿਕ ਬਰਾਹਮਣੀ ਵਰਚਸਵ ਕਾਇਮ ਹੋ ਗਿਆ. ਤੁਰਕਾਂ ਦੇ ਹਮਲੀਆਂ ਦੇ ਬਾਅਦ ਮੁਸਲਮਾਨ ਵੀ ਕਾਫ਼ੀ ਬਣੇ. ਆਜ਼ਾਦੀ ਦੇ ਪੂਰਵ ਰਾਜਪੂਤ ਸਾਮੰਤਾਂ ਅਤੇ ਪੰਡਤਾਂ ਦੁਆਰਾ ਮੇਘਾਂ ਦਾ ਭਾਰੀ ਸਾਮਾਜਕ ਅਤੇ ਆਰਥਕ ਸ਼ੋਸ਼ਣ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ. ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਜੀਵਨ ਨਾਰਕੀਏ ਸੀ. ਮੁਸਲਮਾਨ ਪ੍ਰਭਾਵ ਵਿੱਚ ਕਈ ਮੇਘ ਮੁਸਲਮਾਨ ਬਣੇ ਤਾਂ ਆਰੀਆ ਸਮਾਜ ਦੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਵਿੱਚ ਕਈ ਵੈਦਿਕ ਆਰਿਆ ਬੰਨ ਗਏ. ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਮੇਹਨਤਕਸ਼ ਅਤੇ ਕਬੀਰਪੰਥੀ ਮੇਘਾਂ ਨੂੰ ਫਿਰ ਆਰਿਆੋਂ ਦੇ ਗ਼ੁਲਾਮ ਬਣਾ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ.
 

ਆਜ਼ਾਦੀ ਵਲੋਂ ਪੂਰਵ ਰਾਜਪੂਤ ਡੋਗਰਾਂ ਦਾ ਅਮਾਨਵੀਏ ਸ਼ੋਸ਼ਣ ਸੀ. ਸਾਮੰਤੀ ਸ਼ੋਸ਼ਣ ਵਲੋਂ ਵਿਆਕੁਲ ਹੋਕੇ ਮੇਘ ਭਗਤ ਜੰਮੂ ਵਲੋਂ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਸਿਆਲਕੋਟ, ਗੁਰਦਾਸਪੁਰ ਅਤੇ ਹਿਮਾਚਲ ਪ੍ਰਦੇਸ਼ ਦੇ ਵੱਲ ਪਲਾਇਨ ਕਰ ਗਏ. ਕਬੀਰ ਦੇ ਸਾਥੀ ਜਾਂ ਭਗਤ ਹੋਣ  ਦੇ ਕਾਰਨ ਮੇਘ ਲੋਕ ਸਦੀਆਂ ਵਲੋਂ ਭਗਤ ਕਹਾਂਦੇ ਹਨ. ਇਹ ਕੌਮ ਬਹਾਦੁਰ ਅਤੇ ਮੇਹਨਤਕਸ਼ ਰਹੀ ਹੈ. ਲੇਕਿਨ ਜਾਤਪਾਤ ਦੇ ਜੁਲਮਾਂ ਅਤੇ ਧਰਮ ਦੇ ਠੇਕੇਦਾਰਾਂ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਬਹੁਤ ਸ਼ੋਸ਼ਣ ਕੀਤਾ. ਆਰਿਆਸਮਾਜੀਆਂ ਦੇ ਸ਼ਕੰਜੇ ਵਿੱਚ ਆਉਣ ਦੇ ਕਾਰਨ ਪੰਜਾਬ ਅਤੇ ਜੰਮੂ ਵਿੱਚ ਇਹ ਵੈਦਿਕ ਬਰਾਹਮਣੀ ਧਰਮ ਦੇ ਰਖਿਅਕ ਬੰਨ ਗਏ. ਆਪਣੇ ਨੂੰ ਆਰਿਆ ਜਾਂ ਭਗਤ ਮੰਣਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਬ੍ਰਾਹਮਣਾਂ ਵਲੋਂ ਤੁਲਣਾ ਕਰਦੇ ਸਨ. ਇਸ ਕਾਰਨ 1931 ਵਿੱਚ ਅਨੁਸੂਚੀਤ ਜਾਤੀ ਦੀ ਬਣੀ ਸੂਚੀ ਵਿੱਚ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਮੇਘਾਂ ਨੂੰ ਸ਼ਾਮਿਲ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਲੇਕਿਨ ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਅਤੇ ਬਾਬਾ ਸਾਹੇਬ ਦੀਆਂ ਕੋਸ਼ਸ਼ਾਂ ਵਲੋਂ ਅਨੁਸੂਚੀਤ ਜਾਤੀ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਿਲ ਕੀਤਾ ਗਿਆ. ਮੇਘ ਭਗਤਾਂ ਦਾ ਪੇਸ਼ਾ ਸ਼ਰਮਿਕ, ਪਸ਼ੁਪਾਲਨ ਅਤੇ ਕੱਪੜਾ ਬੁਣਨਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ਲੇਕਿਨ ਸਵਰਣ ਹਿੰਦੂ ਸ਼ੁਰੂ ਵਲੋਂ ਹੀ ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਅਛੂਤ ਮੰਣਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਘੋਰ ਅਮਾਨਵੀਏ ਅਤੇ ਕਰੂਰ ਸੁਭਾਅ ਕਰਦੇ ਸਨ.

ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਆਉਣ ਦੇ ਬਾਅਦ ਸਿਆਲਕੋਟ ਵਿੱਚ ਕੱਪੜੇ ਦੇ ਵੱਡੇ ਉਦਯੋਗ ਸਥਾਪਤ ਹੋਏ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਇਸ ਕਬੀਰਪੰਥੀ ਮੇਘਾਂ ਨੂੰ ਕੱਪੜੇ ਦੇ ਕੰਮ ਵਿੱਚ ਭਾਰੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਲਗਾ ਕਰ ਮੁੱਖਧਾਰਾ ਵਿੱਚ ਲਿਆਉਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕੀਤੀ ਗਈ. ਭਾਰਤ ਪਾਕ ਵਿਭਾਜਨ ਦੇ ਸਮੇਂ ਫਿਰ ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਭਾਗ ਕਰ ਸਿਆਲਕੋਟ ਵਲੋਂ ਹਰਿਆਣਾ, ਹਿਮਾਚਲ, ਰਾਜਸਥਾਨ, ਪੰਜਾਬ ਆਦਿ ਪ੍ਰਾਂਤਾਂ ਵਿੱਚ ਸ਼ਰਨ ਲਈ. ਇਸ ਪਲਾਇਨ ਵਲੋਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਭੈੜਾ ਸਮਾਂ ਗੁਜ਼ਾਰਾ. ਅੱਜ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੁਧਿਆਨਾ, ਜਲੰਧਰ, ਚੰਡੀਗੜ, ਅਮ੍ਰਿਤਸਰ, ਕਪੂਰਥਲਾ ਆਦਿ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਅਤੇ ਇਲਾਕੀਆਂ ਵਿੱਚ ਮੇਘਾਂ ਦੀ ਕਾਫ਼ੀ ਗਿਣਤੀ ਹੈ. ਇੱਕੀਸਵੀਂ ਸਦੀ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਕਬੀਰਪੰਥੀ ਮੇਘ ਹੋਰ ਪ੍ਰਾਂਤਾਂ ਵਲੋਂ ਸਾਮਾਜਕ, ਆਰਥਕ ਅਤੇ ਸਿੱਖਿਅਕ ਰੂਪ ਵਲੋਂ ਕਾਫ਼ੀ ਅੱਗੇ ਨਿਕਲ ਚੁੱਕਿਆ ਹੈ. ਉਹ ਪੰਜਾਬ ਵਲੋਂ ਬਾਹਰ ਵਿਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਵੀ ਆਪਣਾ ਕੰਮ-ਕਾਜ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹੈ. ਅਜੋਕਾ ਮੇਘ ਰੈਦਾਸ, ਕਬੀਰ, ਅੰਬੇਡਕਰ ਅਤੇ ਬੁੱਧ ਦੀ ਵਿਚਾਰਧਾਰਾ ਨੂੰ ਜ਼ਿਆਦਾ ਮਹੱਤਵ ਦੇ ਰਿਹੇ ਹੈ. ਹੁਣ ਉਹ ਵਡਿਆਉਣ ਵਾਲਾ ਅਤੇ ਰੂੜੀਵਾਦੀ ਧਾਰਮਿਕ ਵਿਚਾਰਾਂ ਦੀ ਤੀਲਾਂਜਲਿ ਦੇ ਰਿਹੇ ਹੈ ਅਤੇ ਆਪਣਾ ਨਵਾਂ ਰਸਤਾ ਬਣਾ ਰਿਹਾ ਹੈ.

 ( ਡਾ. ਏਮ. ਏਲ. ਤਿਆਗਣਾ ਦੀ ਕਿਤਾਬ –  ‘ਮੇਘਵਾਲ ਸਮਾਜ ਦਾ ਗੌਰਵਸ਼ਾਲੀ ਇਤਹਾਸ’ से)

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History of Meghs is being consolidated – हो रहा है मेघ इतिहास का समेकन

राजस्थान के मेघ(वाल) लेखक इस सवाल के जवाबों के साथ उपस्थित हो गए हैं कि हमारे शासक पुरखे कौन थे. इतिहासकारों की खोज को उन्होंने अन्य लोगों तक छोटी और संक्षिप्त पुस्तकों के रूप में पहुँचाया है.

मेघों का इतिहास जानने के सिलसिले में मैंने पहली पुस्तक पढ़ी थी मेघमालाजिसे मेरे पिता भगत मुंशीराम ने लिखा था. फिर जानकारी में आया कि कई वर्ष पूर्व राजस्थान के स्वामी गोकुलदास ने इस विषय पर पुस्तक लिखी थी. फिर मैंने विकिपीडिया पर एक आलेख मेघवाल (”Meghwal”)पाया जो स्टब (stub) रूप में था. उसे विस्तार देते हुए कुछ खोजबीन की तो कई नई जानकारियाँ मिलीं जो उक्त आलेख में उपलब्ध हैं और संदर्भों सहित उपलब्ध हैं. विश्वास हो गया (विशेषकर जोशुआ प्रोजेक्ट की रिपोर्ट से) कि जम्मूकश्मीर के मेघ, राजस्थान के मेघवाल और गुजरात के मेघवार मूलतः एक ही हैं और मेघवंशी ही हैं और कि वे कर्नाटक तक फैले हैं. एक संदर्भ को मैं बचा कर नहीं रख सका कि उड़ीसा में मेघ ऋषि को अपना पुरखा मानने वाले लोग हैं.

इसके बाद राजस्थान के श्री आर.पी. सिंह, आईपीएस की पुस्तक मेघवंश : एक सिंहावलोकनमिली जिसे श्री सिंह को निवेदन करके मैंने मँगवाया था. कुछ माह पूर्व राजस्थान के ही श्री ताराराम की पुस्तक– ‘मेघवंश – इतिहास और संस्कृतिमुझे जेएनयू के प्रोफेसर डॉ.मूलाराम जी से प्राप्त हुई जिसे खराब स्वास्थ्य के कारण तब नहीं पढ़ पाया. आजकल देख रहा हूँ.

ऊपर जिन महानुभावों की पुस्तकों का ज़िक्र किया गया है उनमें से कोई भी इतिहासकार नहीं है लेकिन इन्होंने बहुत उपयोगी सामग्री दी है जो इतिहास में सम्मिलित है.

(अभी हाल ही में डॉ. एम.एल. परिहार ने ईमेल के ज़रिए से सूचित किया कि उनकी पुस्तक – ‘मेघवाल समाज का गौरवशाली इतिहासप्रकाशित हो चुकी है. इसकी समीक्षा पढ़ने का मौका मिला है. श्री परिहार ने फोन पर बताया कि उन्हें जम्मू में बसे मेघों की जानकारी MEGHnet से मिली थी. देखते हैं वह जानकारी पुस्तक में कैसी बन पड़ी है.)

इस बात का उल्लेख इसलिए किया है ताकि पाठकों को मालूम हो जाए कि राजस्थान में मेघ समाज, इतिहास और संस्कृति पर कार्य हो रहा है. पंजाब और जम्मू में भी कार्य हुआ है लेकिन उसकी मात्रा बहुत कम है. तथापि यह प्रमाणित होता है कि जानकार मेघजन गंभीरतापूर्वक इस दिशा में कार्य कर रहे हैं. पंजाब के डॉ. ध्यान सिंह का शोधग्रंथ ‘पंजाब में कबीरपंथ का उद्भव और विकास‘ के बहाने से जम्मू और पंजाब के मेघों का पिछले 200 वर्षों का इतिहास भी प्रस्तुत करता है. यह पढ़ने योग्य है.

प्राप्त जानकारी से यह भी पता चलता है कि जम्मू और पंजाब के मेघों के इतिहास की कड़ियाँ अभी जोड़ने की आवश्यकता है.
कई मेघ स्वयं को मेघऋषि की संतान मानते हैं और अपने अतीत को सूर्यवंश से जोड़ते हुए अपने उद्भव को राजपूतों से जोड़ते हैं. लेकिन अब यह निर्विवाद रूप से स्थापित हो चुका है कि राजपूतों के आविर्भाव से बहुत पहले ये मेघ भारत में शासक रह चुके हैं.


Dr. Dhian Singh – Known history of Megh Bhagats – मेघ भगतों का इतिहास

Emergence and Evolution of Kabir Panth in Punjab
पंजाब में कबीर पंथ का उद्भव और विकास
Are you searching for history/known history of Megh Bhagats? 
Yes, this thesis of Dr Dhian Singh can
guide you through

An enthusiastic young man Mr. Dhian Singh from Kapurthala (Punjab), pioneered research on history of Megh Bhagat community in the backdrop of emergence and evolution of Kabir Panth in Punjab. This was very important from the point of view that his work helps in reconstruction of history of Dalit communities which has been destroyed and corrupted. Researcher Dr. Dhian Singh and director of this research work Dr. Seva Singh have, within the limitations, put in tireless efforts using research methodologies while pursuing intensive study, visits and interviews. Use of libraries for research work is a common thing. Dr. Dhian Singh undertook intensive touring of Jammu-Kashmir, Punjab, Haryana and Rajasthan at his own expense. His hard work together with diligence of his Director helped his thesis through for Ph.D degree in the year 2008.

For the past two years I had been requesting Dr. Singh to help  make his thesis on line for the benefit of others. Now on 08-02-2011 he gave me his thesis which was scanned and blogged. It is in the form of PDF file. To make it easy to read please press ‘ctrl’ and +.

I hope that, now, the desire of Meghs will be satiated with regard to their eternal questions as to who they are, who were their ancestors and what they used to do.

This thesis will help change the conventional thinking of Megh community which has been divided in so many names and religions that their social and political integration seems to be a distant dream. This thesis will help the community grow a sense of unity.

Finally big thanks to you Dr. Seva Singhji and Dr. Dhian Singhji. You have done a work of great importance. 

कपूरथला (पंजाब) के एक उत्साही युवक ध्यान सिंह ने पंजाब ने कबीर पंथ के उद्भव और विकास की पृष्ठभूमि में मेघ भगत समुदाय के इतिहास पर शोध करने का बीड़ा उठाया था. यह कार्य बहुत महत्वपूर्ण इसलिए था कि जिन दलित समुदायों का इतिहास नष्ट-भ्रष्ट किया जा चुका हो उनका इतिहास कैसे लिखा जाए. शोध के लिए पुस्तकालयों का उपयोग करना एक सामान्य बात है. शोधछात्र के तौर पर ध्यान सिंह ने और उनके निर्देशक डॉ सेवा सिंहडी.लिट्. ने शोध सामग्री को देखते हुए विचार-विमर्ष के बाद मान्य पद्धतियों (methodologies) की सीमाओं में रहते हुए गहन अध्ययन के अतिरिक्त यात्रा और साक्षात्कार का सहारा लेने का निर्णय लिया. ध्यान सिंह जी ने इसके लिए जम्मू-कश्मीर, पंजाबहरियाणा और राजस्थान के दौरे किए. उनके परिश्रम और निर्देशक के मार्गदर्शन से कार्य बखूबी हुआ और शोधग्रंथ वर्ष 2008 में पी.एच.डी. की डिग्री के लिए स्वीकार कर लिया गया. यह अपनी तरह का पहला कार्य है.

मैं दो-एक वर्ष से डॉ ध्यान सिंह से आग्रह कर रहा था कि वे अपने शोधग्रंथ को अन्य के लाभ के लिए ऑन-लाइन करें. अब 08-02-2011 को उन्होंने यह शोधग्रंथ मुझे सौंपा और मैंने उसकी स्कैनिंग कराने के बाद उसे एक ब्लॉग का रूप दे दिया.

मुझे आशा है कि अब हमारे मेघ भाइयों की यह जिज्ञासा शांत हो जाएगी कि हम कौन हैंकहाँ से आए हैं और हमारे पुरखे क्या करते थे.

सब से बढ़ कर यह शोधग्रंथ मेघ भगत समुदाय की पारंपरिक सोच को बदलने में सहायक होगा जिसे इतने नामों और धर्मों में बाँट दिया गया है कि उनमें सामाजिक और राजनीतिक एकता दूर का सपना लगती है. इसे पढ़ने के बाद इस समुदाय में एकता की भावना बढ़ेगी.

अंत में डॉ ध्यान सिंह और डॉ सेवा सिंह जी को कोटिशः धन्यवाद. आपने बहुत महत् कार्य को संपन्न किया है. यह शोधग्रंथ सात पीडीएफ फाइलों के रूप में नीचे दिया गया है. इन पर क्लिक करें और पढ़ें. फाइल खोलने के बाद स्क्रीन पर बड़ा पढ़ने के लिए ctrl और + को दबाएँ. पीडीएफ फाइल पर भी ऊपर दाएँ हाथ (+) और (-) के चिह्न हैं उनका भी प्रयोग किया जा सकता है. यह पीडीएफ़ फाइल एक बार खोलने से न खुले तो दूसरी बार क्लिक कर के खोलें. 
पंजाब में कबीरपंथ का उद्भव और विकास

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Key words: History of Meghs, History of Megh Bhagats, History of Kabir Panthis, Pujnabi Kabir Panthis, Megh Bhagat, Thesis, मेघ भगत, शोधग्रंथ,  

Megh churn-2 – मेघ मथनी-2

अखरोट में बंद इतिहास उर्फ़ मेघ मथनी

(एक सुझाव है कि इस प्रहसन के बीच में दिए लिंक्स को आप अवश्य देखें लेकिन पोस्ट पढ़ने के बाद)
दो मेघ मिल कर बाते करें और मेघ मधाणी (मथनी) न चले ऐसा कम होता है. मेघ मधाणी से मैं बहुत डरता हूँ. लेकिन जब मिस्टर मेघ (तनिक तुनक मिज़ाज) के माथे पर प्रज्ञा की सभी सात रेखाएँ मौजूद हैं तो डर काहे का. हमने चाटी उठा कर सिर पर रख ली.मथनी चली मिस्टर मेघ के घर…कुछ यों-
मैं मि. मेघ, सुना है आप मेघों के प्राचीन इतिहास के बारे में बहुत जानते हैं.
मिस्टर मेघ वाक़ई जानना चाहते हो या चाय पीने आए हो? आज मेघणी घर नहीं सो चाय नहीं मिलेगी.
मैं नहीं…नहीं…नहीं, मैं वाक़ई जानने के लिए आया हूँ….
मिस्टर मेघ ख़ुद भी पढ़ा करो कभी. लेकिन पूछते हो तो बताता हूँ.
मैं   जी मेहरबानी.
मिस्टर मेघ (लंबी साँस लेकर) हमारा इतिहास वेदों में लिखा है…
मैं लेकिन सर जी, वेदों में तो कोई इतिहास है ही नहीं.
मिस्टर मेघ इतिहास न सही, संकेत तो हैं.
मैं जी.
मिस्टर मेघ फिर टोकोगे?
मैं सॉरी.
मिस्टर मेघ मैं जो इतिहास बताता हूँ वह गंभीर बात है. हा..हा..ही..ही.. की गुंजाइश नहीं इसमें….तो कुछ विद्वानों के अनुसार वेद में कहे गए वृत्र उर्फ़ प्रथम मेघ उर्फ़ अहि (नाग) मेघ से शुरू होता है हमारा इतिहास और आगे चल कर सिंधुघाटीपता नहीं किस ने बीच में डाल दी है. कहते हैं कि इस सभ्यता का विकास अफ्रीकी मूलके लोगों ने किया था. तो समझ लो उनका रंग कैसा रहा होगा. और पता है प्रचीन काल में कभी भारत को पूर्वी इथियोपिया कहा जाता था?
मैं   क्या कह रहे हैं आप?
मिस्टर मेघ मैं बिना सबूत के बात नहीं करता. क्योंकि इस सभ्यता के लोग काले थेऔर ईश बुद्ध भी इसी सभ्यता के थे और भगवान महावीर भी. इसी लिए मध्य एशिया से आए काले-भूरोंको इनके नाम से चिढ़ मचती थी.
मैं पता नहीं आप नई-नई बातें कहाँ से लाते हैं. परंतु यह तो बताइये कि सिंधु घाटी के लोग वेदा-वादी करने वालों से हारे कैसे?
मिस्टर मेघ बेवकूफ़!वेदा-वादी तो उन्होंने यहाँ आकर सीखी. तुम उनसे इसलिए हारे क्योंकि तुम पालते थे भैंसे, हिरन और बकरियाँ और हमलावर कबीलों के पास थे पालतू घोड़े. और हाँ….यदि वेद गोरों ने लिखे, तो फैसला करना होगा कि सिंधुघाटी पहले थी या गोरे यहाँ पहले आए.
मैं वे तो कहते हैं कि वे काले लोगों की सभ्यता सिंधुघाटी की पैदाइश हैं न कि मध्य एशिया की.
मिस्टर मेघ तो फिर ऐसे समझने की कोशिश करो कि भारत में रहने वाले सभी गोरे कौन हैं और कि भारत के हैं या नहीं. ज़रा इस बात को जान लो कि वे अपने साथ वहाँ की अपनी औरतों को नहीं लाए होंगे. सिंधुघाटी सभ्यता सोने की चिड़िया थी और यहाँ की औरतें दूध से नहाती थीं. भारत भर की औरतें यह आशीर्वाद देती हैं कि दूधों नहाओ और पूतों फलो. यह इशारा है कि सिंधुघाटी की औरतें अपना इतिहास नहीं भूली हैं.
मैं लेकिन प्रभु, अब तो सभी भारत के हो चुके हैं. कालों और गोरों का ख़ून हज़ारों साल से एक-दूसरे में खूब मिक्स हुआ है हा…हा…हा…हा. ज़्यादातर तो भूरे हो चुके हैं. उसमें भी बहुत सी शेड्स हैं हा…हा…हा…हा.
मिस्टर मेघ (आँखें तरेर कर) इंटेलिजेंट हो क्योंकि नागवंशीहो, लेकिन बात करने की तमीज़ नहीं. भारत में गोरे कहाँ हैं? गरमी के कारण काले-भूरे हो गए हैं और अंग्रेज़ भी उन्हें भूरा कहते हैं और इनसे दूर रहने में भलाई समझते हैं. तुमने मुझे रंगों में उलझा दिया है, कौवे ! मैं इतिहास की बात कर रहा था और तू मेरे मुँह से नस्लभेदी, रंगभेदीटिप्पणियाँ निकलवा रहा है.
मैं जी…जी…जी, आप इतिहास की बात कर रहे थे.
मिस्टर मेघ तो मध्य एशिया से आए लोग हुए भूरे, और आदिवासीया असली मूलनिवासी हुए काले…..हाँ तो मैं कहाँ था.
मैं   इतिहास में….इतिहास में हम कहाँ हैं?
मिस्टर मेघ हाँ..हाँ..हाँ..वह इतिहास ही है और यह भी इतिहास है. हमारी पहली लड़ाई क्या थी यार, समझ लो कि बहुत बड़ा पंगा था सिकंदर दि ग्रेटके साथ. खोता था लेकिन वह भी घोड़े लाया था अपने साथ. बौध धर्म की लोकप्रियता उसे यहाँ खींच लाई थी.
मैं (मैं बिफरा) मुझे शक है.
मिस्टर मेघ अरे ओ अनपढ़! सिकंदर के रास्ते में जो एरिया था वहाँ कौन था? सिंधुघाटी के लोग. मतलब मेघवंशियों का गढ़. झेलम और चिनाब के बीच में पुरुया पोरस का ही तो राज था न? राजा पुरु हमारा आदमी था. उसका असली नाम पौरुष मेघ था. ससुरों ने उसका नाम बिगाड़ कर पुरु कर दिया. ग़ैर बिरादरियाँ उस पर अपना कब्ज़ा जमाती हैं जबकि उस एरिया में एक ही लड़ाकी कौम थी और उसका नाम था मेघ, वृत्र की संताने. बाद में बड़ी मार पड़ी उनको.
मैं   आपकी बात पर विश्वास कौन करेगा?
मिस्टर मेघ न करे. रानी रूठेगी अपना सुहाग लेगी.
मैं   मुहावरा ग़लत हो गया.
मिस्टर मेघ फ़िक्र नहीं….सच्चाई अटल है.
मैं आगे बताएँ सर जी, यह असुर-वसुरक्या चीज़ है?
मिस्टर मेघ पहले जो लोग वेदा-वादीकर रहे थे उन्होंने हमारा इतिहास नष्ट किया. यार इतिहास तो जीतने वाला ही लिखवाता है न? हमें बेवकूफ बनाने के लिए पुराणा-पुराणीभी शुरू कर दी और कामयाब हुए. पहले हमारी रोटी और शिक्षा छीनीऔर बाद में रोटी के साथ हमें जो पुराणों की कहानियाँ परोसीं,हमें खानी पड़ीं. हम ने मान लिया कि हम बुरे हैं, असुर हैं, राक्षस हैं. थाने में थानेदार का कहा सत वचन होता है. मानना पड़ता है न. लेकिन दूसरी ओर रावण हमारा आदमी था. लंका सिंधुघाटी के लोगों ने बनाई थी. लंका राक्षसों की हो गईऔर रावण प्रतापी राजा था सो पुराणा-पुराणी करने वाले उसे अपना बताने लगे कि जी वो तो हमारा आदमी है. ओए, बता राम का रंग क्या था?
मैं जी काला.
मिस्टर मेघ और कृष्ण का?
मैं जी काला.
मिस्टर मेघ तो कुछ समझा क्या?
मैं जी नहीं.
मिस्टर मेघ अरे ओ कम अक़्ल, उन्होंने कालों को कालों के हाथों मरवाया. कालों में एकता की बुद्धि नहीं थी.  
मैं   भूल जाइये न पुराणों को. अब तक तो गंगा, यमुना, ब्यास, सतलुज में बहुत-सा पानी बह चुका है. और कहीं हम हैं इतिहास में सर जी?
मिस्टर मेघ बिल्कुल हैं, और बहुत हैं. लोमड़ी इतिहासकारों ने जिस-जिस काल को अंधकार काल’,डार्क पीरियड/डार्क एजया क्लासिकल एज कहा है, उस-उस काल में मेघवंशी सत्ता में थे और यहाँ खूब प्रगति हुई. हमारे बहुत से राजे-महाराजे हो ग़ुज़रे हैं. महाराजा महाबली, सम्राट अशोक, चंद्रगुप्त मौर्य…और क्या-क्या नाम गिनाऊँ.
मैं हाँ, उस बारे में मैं थोड़ा जानता हूँ. परंतु अंधकार कालका क्या मतलब?
मिस्टर मेघ सीधी सी बात है कि गोरों-भूरों के हाथों से जब-जब सत्ता का गुड़ छिना उनके जीवन में अंधकार छा गया था.
मैं   लेकिन हमारे जीवन में जो प्रकाश हुआ उसका क्या?
मिस्टर मेघ उनसे बर्दाश्त नहीं हुआ. उसे भूल जाओ.
मैं  (मैं फिर बिफरा) क्यों भूल जाओ?
मिस्टर मेघ क्यों कि तुम्हें प्रकाश को संभाल कर रखने की आदत नहीं….एकता रखते ही नहीं.
मैं  यह प्रकाश और एकता कहाँ से आ गए? आप विषय से भटक गए हैं.
मिस्टर मेघ तू निरा भगत है,पृथ्वी पर जीने का सुंदर तरीका कुदरत ने बनाया है एकता का. इतिहास उसी से बनता है. बुरा मत मानना, देश भर के मेघवंशियों ने अलग-अलग मरने का रास्ता पकड़ा.
मैं हाय..हाय..कैसे कह लेते हैं आप ऐसी दिल दुखाने वाली बातें?यह बताइये कि मेघों में काले-गोरे-भूरे सभी हैं. कोई-कोई तो यूनानी लगते हैं,एकदम सिकंदर के फौजी. उनका क्या? वे सभी दलित कैसे हो गए.
मिस्टर मेघ बात यूँ है मोहन प्यारे कि सिंधुघाटी सभ्यता के लोग अमन पसंद थे और प्राइवेसी उन्हें बड़ी पंसद थी. पड़ोसी कहीं आवाज़ न सुन ले इसलिए घर भी एक दूसरे से दूर बनाते थे. गाँव भी दूर-दूर बसाए. इकट्ठे न रहने की पुरानी आदत….घर पक्के बनाते थे और समझ लो कि सोते थे खुले आसमान के नीचे, अपने बड़े-बड़े खेत-खलिहानों में. यही बात है कि दले गए.
मैं   क्या मतलब है आपका?
मिस्टर मेघ (मिस्टर मेघ को यह सवाल बहुत नागवार ग़ुज़रा. खीझ कर बोले) कई रंगों के हमलावर आए….कई कलर मिक्स हो गए. बेवकूफ़!! वह समय ही ऐसा था. कलर मिक्स, तकदीर फ़िक्स. तुम देश के काले-भूरेतो समझते हो, मेघों के काले-गोरेनहीं समझते क्या?अब दफ़ा हो जाओ.
मैं   बस..बस..आख़िरी सवाल. हमें मेघ क्यों कहा जाता है.
मिस्टर मेघ (अब मिस्टर मेघ ने लंबे इतिहास जैसी साँस ली. कुछ रुक कर दार्शनिक अंदाज़ में बोले) क्योंकि हम आज भी आसमानी हैं और सारी दुनिया के हैं. इंद्र से ऊँचा आसन है हमारा. हमारी मर्ज़ी,जब चाहे बरसें, और दुनिया पर छाए रहते हैं. सूर्यवंशी और अग्निवंशी हैं. यही है मेघ इतिहासइन नटशेल. और तुम्हारा आने वाला कल बहुत चमकदार है. हुण..तूँ..भई..जा.
इतना कह कर मिस्टर मेघ ने बातचीत में दिए घावों पर अच्छी खासी मरहम लगा दी. मेरा आने वाला कल उज्जवल है, इतिहास प्रकाशमय है. मेरे पास उनकी बातों पर विश्वास करने के कई कारण हैं.
यह तय है कि मेघवंशियों का चमकता इतिहास नष्ट हो चुका है लेकिन मैं उसे ढूँढता हूँ. मेरी जानने की इच्छा प्रबल है तो अखरोट खाने वाले मिस्टर मेघ की बताने की क्षमता कमाल है. वे मेघ इतिहासकी खोज में अपने दिमाग़ पर ज़रूरत से अधिक ज़ोर दे चुके हैं. कोई इतिहासकार उनकी बात माने या न माने उन्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ता. इतिहास को जहाँ शून्य कहा गया है वहाँ वे 10 लिखते हैं. इसमें ग़लत क्या है? अगर इतिहास का पन्ना मिट चुका है तो उस पर लिखने का हक़ उन्हें है. आप मेघ हैं तो अपना हाथ आज़माएँ. आपको खाली स्थान भरोका अभ्यास है, तो समझ लीजिए आप स्वयंसिद्ध इतिहासकार हैं. संभव है आपके लिखे पर कल ऐतिहासिक शोध की मोहर लग जाए.
  
(इस रचना में प्रयुक्त अधिकतर संदर्भ पुस्तकों और इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्री पर आधारित हैं. सभी लिंक्स दिनांक 02-01-2012 को देखे गए हैं.)