Category Archives: भगत मुंशीराम

Ancient History of Meghs – मेघों का पुराना इतिहास

पुराना इतिहास

मेरे प्यारे मेघ भाईबहनों और बच्चो! अब तक जो बातें मैंने लिखी हैंजिसके पढ़ने मेंजानने में और सोचने में आपका पर्याप्त समय लग गयाइसलिए लिखी हैं कि आपको विश्वास हो जाए कि आपके अन्दर जो यह इच्छा है कि हम कौन हैंमेघ जाति कब और कैसे बनीठीक है. आप यह सोचने का अधिकार रखते हैं.
इस बात को जानने के लिए पुराने साहित्य का सहारा लेना पड़ता है. मगर अनुभव में आया है कि पुराने साहित्य में जो कुछ लिखा हैउसमें स्वार्थवश तब्दीली की गई है और अब भी करते हैं. अन्य पुस्तकों की बात छोडिये सभी धर्मोंपंथों के पवित्र ग्रथों में कुछ ऐसी बातें लिखी हुई थीं जो समय आने पर यथार्थ सिद्ध न हुईं. उनको या तो निकाल दिया गया या उसका अर्थ बदल दिया गया. दूसरे ये जितनी पुस्तकें हैं सब स्वरों और वर्णों के मेल से लिखी जाती हैं. समय के मुताबिक लोगों के भावोंविचारों में तब्दीली आने के बादवो स्वर वर्ण तब्दील करने पड़ते हैं. ये वर्ण आदमी के बनाए हुए हैं. आदमी की अक्ल से बनी हुई कोई भी चीज़ सदा ठीक नहीं रहती. उसमें समय के मुताबिक तब्दीली लानी पड़ती है. ये पुरानी किताबें समय के मुताबिक लिखी हुई हैं जो देश और समाज के लिए इस समय हानिकारक सिद्ध हो रही हैंउनको बदला जाए. जो बातें अच्छी हैंदेश और समाज के लिए लाभप्रद हैंएकता और प्रेम सिखाती हैंउनको आम लोगों तक पहुँचाया जाए.
सत्ता प्राप्त होने पर कुछ लोगों ने पुराने साहित्य में तब्दीलियाँ  कीं. ऐसा स्वयं को ऊँचा और दूसरों को नीच बनाने के लिए किया गया. जिसकी लाठी उसकी भैंस. बलवान अपने बल के कारण जो चाहे कर सकता है. कमजोर को उसकी माननी पड़ती है. इसी असूल पर यह जातिवाद लिखा गया. ताकि उनकी सत्ता बनी रहे. भारत का इतिहास सिद्ध करता है कि समय-समय पर बाहर से लोग आएआक्रमण किएयहाँ की धरती पर कब्जा कर लिया और यहाँ के प्राचीन या आदिकाल से चलते आए निवासी दबा दिए गए. इसका उदाहरण अपने जीवन में मैंने देखा है. अब तो पाकिस्तान बन गया मगर इससे पहले जिला स्यालकोट में मेरे जन्मस्थान सुन्दरपुर गाँव के पास चिनाब दरिया के किनारे पर एक गांव था जिसका नाम कुल्लूवाल था. वहाँ पर काफी समय से मुसलमान जुलाहे रहते थे. गाँव की ज़मीन को भी वही संभालते थे. कुछ समय के बाद वहाँ हिंदू जाट आ गए और गाँव की जमीन में खेती का काम करना शुरू कर दिया. जुलाहों ने उनके आने पर खुशी मनाई क्योंकि जमीन फालतू पड़ी थी. उन्होंने समझा कि ये भी यहाँ रह करके अपना पेट पालेंगे. मगर जब महकमा माल का बन्दोबस्त आया तो भूमि और गाँव की मिल्कियत का सवाल आया. जुलाहों ने उस वक्त की सरकार के अधिकारियों को कहा कि इस गाँव में पर्याप्त समय से हम रह रहे हैं. हमारा एक पूर्वज जो पहले यहाँ आयाउसका नाम कुल्लु था और जुलाहा था. इसलिए यह गाँव भूमि समेत हमारा है. ये लोग किसान हैंअपना काम करें मगर भूमि के मालिक नहीं हो सकते. उन हिंदू जाटों ने कहा कि महाराज इस गाँव में जो हमारा पूर्वज पहले आया था उस समय यहाँ कोई नहीं था. हमारे पूर्वज ने एक झोंपड़ी या कुल्ली बनाई और फिर उस कुल्ली पर दो-तीन कुल्लियाँ और बना लीं और उस जगह का नाम कुल्लु मशहूर हो गया और गाँव का नाम कुल्लूवाल रखा गया. हम इस गाँव व ज़मीन के मालिक हैं. क्योंकि उनके हाथ में सत्ता थीगिनती में अधिक थेइसलिए बन्दोबस्त में गाँव और ज़मीन के मालिक बन गए. अब उस गाँव का इतिहास कहता है कि वहाँ के मालिक जाट थे जोकि ग़लत था और ज़बरदस्ती बनाया गया था.
इसी तरह हम मेघ जाति का कोई इतिहास किताबों से देखना चाहेंमाल के बन्दोबस्त या और जाति कोषों से पता करना चाहें तो उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता. किताबों में लिखा ग़लत भी हो सकता है और खास तौर पर जो लोग यह जानना चाहते हैं कि हम कौन हैंउनके लिए पुराने पुस्तकीय इतिहास काम नहीं देते. सन्त कबीर जो महान सन्त हुए हैं उन्होंने एक शब्द लिखा हैः-
मेरा तेरा मनुआ कैसे इक होई रे।।
मैं कहता हौं आँखन देखीतू कहता कागद की लेखी ।।
इसमें कबीर साहिब फरमाते हैं कि जो किताबों में लिखा हुआ है उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता.
मैं कहता सुरझावनहारीतू राख्यो उरझाई रे ।।
मैं वो बात कहता हूँ जिसे साक्षात्‌ देखकर पूरी शांति प्राप्त कर सकें और तुम किताबों में पढ़ कर वो बातें करते हो जिससे व्यर्थ उलझन पैदा हो जाए. किताबों में पढ़ कर कोई भी पूरे तौर पर शांति हासिल नहीं कर सकता.
मैं कहता तू जागत रहियोतू रहता है सोई रे।
मैं कहता निर्मोही रहियोतू जाता है मोही रे ।।
जुगन जुगन समझावत हाराकही न मानत कोई रे।
तू तो रण्डी फिरे बिहण्डीसब धन डारे खोई रे ।।
जो लोग किताबों में सच्ची बात या असलीयत की खोज करते हैंवो अपना सब कुछ खो बैठते हैं. ऐसे लोगों को कबीर साहिब रण्डी और बिहण्डी कहते हैं:-
सतगुरु धारा निर्मल बाहैवा में काया धोई रे।
कहत कबीर सुनो भाई साधोतब ही वैसा होई रे ।।
जिस वर्ण को तू जानने का इच्छुक हैउसका पता तो तब लगेगा जब जो शक्ल और वर्ण अपना समझ रखा है उसको धो डालेगा. हमें ये तरह-तरह के वर्ण मिलते हैंइनको धारण करकेधर्म की राह पर चल करहम इन वर्णों को धो सकते हैं और असली वर्ण जान सकते हैं और सच्चा सुख और शांति प्राप्त कर सकते हैं.
कबीर साहिब के इस शब्द से साबित हो गया है कि पुस्तकों में लिखे गए पुराने साहित्य हमारा पता नहीं दे सकते. इसी तरह मेघ वर्ण की बाबत जो कुछ किताबों में लिखा हुआ है उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता. इसलिए मैं आपको मेघ का वो वर्ण या रूप बताना चाहता हूँ जो हम आंखों से देखकर इन जाति-पाति के झगड़ों से निकल सकें.
(From Megh Mala written by Bhagat Munshi Ram)

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The first Megh – आदि मेघ

आदि मेघ

जिन भाई बहनों ने इस पुस्तक का पहला प्रकरण पढ़ लियासम्भव है उनके अन्दर आश्चर्य उत्पन्न हो कि बात क्या थी और मेघ शब्द की परिभाषा क्या की गई. प्रश्न तो यह है कि आदि मेघ अर्थात्‌ जो आदमी पहले मेघ बनाकहलाया या रूप में आया वो कौन थाक्या वो पहले किसी और जाति का था उसने किसी की सन्तान होते हुए अपना नाम मेघ रख दिया. यह प्रश्न आदि मेघ के शारीरिक रूप से संबंध रखता है.
यह ठीक है कि शारीरिक रूप में आदि मेघ की खोज करनी है ताकि वर्तमान मेघ जाति के भाई-बहनों को अपने आदि का पता लग जाए. यदि किताबों से पढ़ा जाए तब भी हमारी समस्या का हल पूर्ण रूप से समझ नहीं आता. एक जातिकोष नामी पुस्तक है. वह पुस्तक इस समय भी साधु आश्रमहोशियारपुरपंजाब की लाईब्रेरी से पढ़ी जा सकती है. इसके पृष्ठ 77 पर लिखा है कि इनका पूर्वज ब्राह्मण की सन्तान था. वह काशी में रहा करता था. उसके दो पुत्र थे एक विद्वान और दूसरा अनपढ़. पिता ने विद्वान पुत्र को पढ़ाने के लिए कहापर उसने पढ़ाने से इन्कार कर दिया. इस पर विद्वान पुत्र को अलग कर दिया. उसी की सन्तान मेघ है.
अगर यह ठीक है तो ब्राह्मण के विद्वान लड़के की सन्तान का नाम मेघ क्यों रखाक्या यह मेघ नाम बुरा या घृणासूचक है क्योंकि उसने अपने पिता की आज्ञा नहीं मानीक्या आज्ञा न मानने वाले को मेघ कहते हैंदूसरे क्या उस समय पहले से चली आ रही कोई मेघ जाति थी जिससे लोग घृणा करते थे. तो उस जाति के आधार पर घृणा सूचक नाम द्वारा पुकार कर उसका नाम मेघ रख दिया. जिस तरह अगर कोई उच्च जाति का आदमी कोई बुरा काम करे तो उसे नीच या चोर या डाकू या कोई और घृणित नाम से पुकारा जाता है. इस विचार से उस आदमी की जाति नहीं बदली जाती. केवल एक बुरे ख्याल या गाली के तौर पर ऐसा कहा. यदि काशी के ब्राह्मण ने अपने विद्वान पुत्र को इस तरह घृणित समझ कर उसकी सन्तान का नाम मेघ रख दिया और यह मेघ जाति पहले भी थीतो वो ब्राह्मण का विद्वान लड़का आदि मेघ नहीं हो सकता. इसलिए इस किताब में जो कुछ लिखा है उसे बुद्धि नहीं मानती. सम्भव है उसमें मनमानी की गई हो.
इस पुस्तक के शब्दों को ध्यानपूर्वक पढ़ें. इसमें लिखा हुआ है कि इस जाति का पूर्वज ब्राह्मण जाति का था. वह काशी में रहा करता था. उसके दो पुत्र थे. एक विद्वान और एक अनपढ़. जब विद्वान लड़के ने अनपढ़ भाई को पढ़ाने से इन्कार कर दिया तो पिता ने उसको अलग कर दिया. उसी की सन्तान मेघ है. इस जाति का पूर्वज तो ब्राह्मण था और वो विद्वान लड़का भी ब्राह्मण का पुत्र था. उसकी सन्तान मेघ नाम से कैसे मशहूर हो गई. इस समस्या का समाधान मेघ जाति के समझदार आदमी करें.
एक बात और भी है. उस पुस्तक में यह नहीं लिखा कि काशी के ब्राह्मण का विद्वान लड़का जम्मू में आकर बसा या किसी और प्रान्त में चला गया. वहाँ पर उसने किस जाति की स्त्री से विवाह किया. अगर मेघ जाति की स्त्री से शादी की और सन्तान पैदा की तो इसका स्पष्ट अर्थ है कि मेघ जाति पहले भी वहाँ पर थी. इसलिए वो आदमी आदि मेघ नहीं हो सकता है.
हाँएक बात समझ में आती है कि काशी के ब्राह्मण का एक लड़का विद्वान था. जब विचारों को किसी भाषा में लिखा जाता है तो एक-एक बात के कई अर्थ निकलते हैं. विशेषकर जो महापुरुष आध्यात्मिकता का ज्ञान रखते हैंउनकी आध्यात्मिकता की बातों को समझना कठिन है. वो काशी के ब्राह्मण का विद्वान लड़का कौन सी विद्या जानता थायदि वो विद्या इन कग द्वारा अक्षरों से लिखी हुई होती तो उसको दूसरों को पढ़ाना कोई कठिन नहीं था. वो यह बाहर की विद्या तो पढ़ा सकता था. ब्राह्मण दो प्रकार के होते हैं. पहला वह जो ब्राह्मण जाति में उत्पन्न हुआ है और आगे उसने अपनी पत्नी ब्राह्मणी के पेट से सन्तान उत्पन्न की. दूसरा ब्राह्मण वो होता है जो ब्रह्म में रमण करता हैवो किसी भी जाति का हो सकता है.
जाति पांति पूछे नहिं कोय, हर को भजे सो हर का होय।
वो काशी का जो ब्राह्मण थावो ऐसा ब्राह्मण नहीं था जो ब्रह्म में रमण करता हो अगर उसके विद्वान लड़के को सच्चा ब्राह्मण मान लिया जाए तो वह ब्रह्म में रमण करता था और ब्रह्म में रमण करने के कारण उसकी सन्तान वास्तव में ब्रह्म की ही उत्पत्ति कहलाती. जितने भी भाव-विचार ऐसे महापुरुषों के अन्दर उठते हैंवो भी उनकी उत्पत्ति ही होती है या सन्तान ही होती है. हम सब संतान पैदा करते हैंकिसी ख्याल के अधीन ही करते हैं. इस दृष्टि से मेघ जाति के लोग ब्रह्म की ही सन्तान हैं. जैसा कि ऊपर लिख आए हैं कि सारी सृष्टि ब्रह्म से ही पैदा होती है. उस विद्वान लड़के को आत्मज्ञान हो चुका था. आत्मविद्या हर एक को नहीं पढ़ाई जा सकतीचाहे अपने कितने भी निकट संबंधी हों. प्राचीन काल से आप देख सकते हैं कि जो आत्मज्ञान रखते थे वे केवल एकाध को आत्मविद्या पढ़ा सके. ऋषियोंमुनियोंसाधु-सन्तों के इतिहास में यह बात देखी गई है.
आत्मज्ञान की विद्या ग्रहण करने के लिए एक तो अधिकार और संस्कार चाहिए. दूसरेअपनो को यह विद्या पढ़ाने में निज स्वार्थ काम करता है. आत्मज्ञान को निज स्वार्थ के लिए नहीं दिया जा सकता. तीसरेयदि आत्मज्ञान अपनी सन्तानअपने भाई आदि को पढ़ाया जाए तो उनको विश्वास भी नहीं आताक्योंकि वो उसे शारीरिक रूप में संबंधी समझते हैं. ऋषि वेद व्यास जी महाराज ने अपने लड़के शुक देव को स्वयं यह विद्या नहीं पढ़ाईबल्कि उसे इस काम के लिए राजा जनक के पास भेजा. जिसको आत्मज्ञान हो जाता हैउसकी रहनी क्या हो जाती हैगीता के अनुसार वो समझ जाता है कि मेरी आत्मा अजर-अमर है.
न जायते म्रियते वा कदाचिन, न अयं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतः अयं पुराणो, न हन्यते हन्यमाने शरीरे ।।
वो जान जाता है कि आत्मा न जन्मती हैन मरती है. न ही कभी उत्पन्न हुईन हैन होगी. वो अजर हैनित्य है और शरीर के मरने पर भी नहीं मरती. अब आप समझ सकते हैं कि यह विद्या हर एक को पढ़ानी कठिन है. इसी तरह काशी के ब्राह्मण का विद्वान लड़का आत्मज्ञानी होने के कारण अपने अनपढ़ भाई को विद्या न पढ़ा सका. ऐसे लोग अपने आप अलग हो जाते हैं. अलग होने का अर्थ लड़ाई झगड़ा करके घर छोड़ना नहीं है बल्कि इस जाति पांति से अलग होना है. यदि उसने सन्तान पैदा कीतो वो अपनी सन्तान को बुरा संस्कार नहीं देता. अगर उसकी सन्तानें आत्मविद्या की अधिकारी न भी हों तो वो उनका नाम ऐसा रखता है जिससे उनको अच्छा संस्कार मिले. यदि उसने अपनी सन्तान का नाम मेघ रखा तो मेघ नाम कोई बुरा संस्कार देने वाला नहीं है. हर एक नाम अपने-अपने गुणदोष रखता है. मैंने इसलिए मेघ जाति की मेघ से तुलना की कि वह आकाश से वर्षा करता है. यदि उस विद्वान लड़के ने अपनी सन्तान को उन मेघों का संस्कार दिया तो इससे यह समझा जा सकता है कि मेघ आते हैंबरसते हैं और चले जाते हैं. इसी तरह सब मानव जाति के लोग इस संसार में आते हैं अपना काम करते हैं और चले जाते हैं. इसलिए विश्वास हो गया कि जो कुछ मैंने पहले प्रकरण में लिखावह ठीक है.
जम्मू प्रान्त के रहने वाले लोग इस प्रकार की और बातें भी करते हैं. मैं जम्मू में रहा. दो वर्ष वहाँ पढ़ता रहा. वहाँ लोग सुनाया करते थे कि यह मेघ जाति ब्राह्मण की सन्तान है. प्राचीन काल में कोई ब्राह्मण वहाँ गया. उस समय यह मशहूर था कि ब्राह्मण यज्ञों में गौ की बलि देते हैं और बाद में गौ को जीवित कर देते हैं. एक बात समझ में आई कि गौ इन्द्रियों को कहते हैं. सन्त तुलसीदास ने भी लिखा है :-
गो गोचर जहँ लग मन जाई। माया कृत सब जानियों भाई ।।
जहाँ तक ये इन्द्रियाँ और मन काम करता हैसब माया है. माया कहते हैं जो है तो नहींमगर भासती है. जब योग अभ्यास करने वाले महापुरुष सब इन्द्रियों और मन के ख्यालों को समेट कर आत्मिक अवस्था में जाते हैं तो इन्द्रियों को एकाग्र करने का अर्थ गौ की बलि लिया जाता है और जब समाधि से उत्थान होता है इन्द्रियाँ अपनी अपनी जगह काम करने लग जाती हैतो उसको गौ जीवित कर देना कहा गया है यह यज्ञ क्या है. एक तो बाहर में अग्नि जलाकर उसमें सामग्री और घी की आहुति डालते हैं. मगर वास्तविक यज्ञ वो होता है जिसमें अपने अन्दर ज्योति प्रकट करके उसमें अपने मन के विचारों और भावों की आहुति दी जाती है. इसलिए ये कहानियाँ विश्वास योग्य नहीं है. हो सकता है कि अपनी जाति को ब्राह्मणों से जोड़ने के लिए यह कहानियाँ बताई गई हों या जिस तरह मैंने लिखा हैसत्य हो.
मेघ जाति के विषय में एक और भी कथा सुनाई जाती है. पहले इन राजाओं के पास जम्मू रियासत ही थी. यह कश्मीर का इलाका बाद में उन्होंने ख़रीदा था. जम्मू के प्रथम राजा के विषय में सुनाया जाता है कि उसके अंगरक्षक बड़े बहादुर नौजवान थे. जब भी राजा को उनकी सेवा की आवश्यकता होतीआदेश मिलने पर वो एकदम रक्षा करते थे और जिन आदमियों से ख़तरा होता उनको झटपट पकड़ लेते थेसज़ा देते थे. उनसे उधर के लोग बहुत डरा करते थे और उनको कहा करते थे कि ये मेघ हैं मेघ. जिस तरह आकाश से ऊँचे पहाड़ों की तरफ़ से अकस्मात मेघ बरसने शुरू हो जाते हैंऊपर छाये रहते हैंइसी तरह ये अंग रक्षक भी अकस्मात बरसने लग जाते हैं. अपराधी को पकड़ लेते हैं क्योंकि वो लोग भी ऊँचे पहाड़ों पर रहने वाले थे वहाँ की स्थिति के अनुसार और संस्कारों की वजह से उन अंगरक्षकों को मेघ जाति का कहते थे. उसके बाद उन अंगरक्षकों की जो सन्तान हुई वो भी बहादुरी का संस्कार प्रचलित रखने के लिए मेघ कहलाए. ये जातियाँ और उपजातियाँ इसी तरह बनीं. दूसरी सवर्ण जातियों में भी देखा जाता है कि अपने पूर्वजों के नाम प्रचलित हुए. ब्राह्मणों में जिसने एक वेद पढ़ा वो वेदीजिसने दो वेद पढ़े वो द्विवेदीजिसने तीन वेद पढ़े वे त्रिवेदी और जिसने चार वेद पढ़े वो चतुर्वेदी. इसी तरह हर एक जाति और उपजाति के पीछे कोई न कोई घटना हैकोई काम है जिससे उनके नाम मशहूर हो गये. इसलिए इन घटनाओं या कहावत को हम ग़लत नहीं कह सकते. प्राकृतिक संस्कारों के अनुसार भी यह ठीक है.
अब इस प्रश्न को कि मेघ जाति के लोग शारीरिक रूप में कब से बनेआदि मेघ कौन थामैं अपने जीवन के अनुभव के आधार पर लिखूँगा. मेरा जन्म पंजाब में तहसील और जिला स्यालकोट के सुन्दरपुर गांव में 1906 में हुआ. मेरे पिता का नाम श्री मँहगा राम और दादा का नाम श्री नत्थूराम था. ज़मीन अपनी थी. खेती का काम करते थे. कोई समय के बाद मेरे पिता जी ने ठेकेदारी का काम शुरू किया और 40 वर्ष यह काम करते रहे. आर्थिक दशा अच्छी थी. मेरे दादा साधु थे. वे कई तीर्थ स्थानों पर गए और एक दफा सरहन्द में जहाँ गुरु गोविन्द सिंह जी महाराज के दो लड़के दीवार में चिनवाए गए थे वहाँ लगातार एक महीना उस दीवार को तोड़ते रहे. सुबह ईँटें उखाड़ कर सिर पर रख लेते थे और चल देते थे. जहाँ शाम पड़ती थी ईंटें फेंक देते थेऔर दूसरे दिन वापिस सरहन्द आ जाते थे. उस समय हिन्दु और सिख में नाम मात्र को भी भेद नहीं था. हमारी जाति के निकट गाँव के रहने वाले लोग मेरे दादा जी को गुरु मानते थे. यह सुन्दरपुर गाँव नहरअपर चिनाब और चिनाब नदी के किनारे पर था. वहाँ से थोड़ी दूर त्रिवेणी थी अर्थात्‌ तीन नदियाँ चिनाब दरयाजम्मू तवी और मनावर तवी मिलते थे. वहाँ पर कई साधुसन्त-महात्मा आया करते थे और तप किया करते थे. हमें मेघ जाति के और साकोलिया उपजाति का कहा करते थे. जम्मू की तरफ से हमारा ब्राह्मण पुरोहित हर साल आता था और एक मुसलमान मिरासी भी आया करता था. वे हमारी वंशावली पढ़ कर सुनाया करते थे और आखिर में हमारी जाति को सूर्यवंश से मिलाते थे. यह सूर्यवंशी खानदान श्री रामचन्द्र जी के वंश से संबंध रखता है. उस समय मैं नहीं समझ सकता थामगर अब अपने जीवन के अनुभव के आधार पर यकीन होता जा रहा है कि हम मेघ जाति के लोग सब सूरजवंशी हैं.
भगत मुंशीराम 

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From Megh -Mala – मेघ-माला से

पाकिस्तान में हमारे गाँव के पास एक ढल्लेवाली गाँव था. वहाँ के ब्राह्मणोंहिन्दु जाटों और महाजनों ने चमारों और हरिजनों या सफाई करने वालों को तंग कियाऔर गाँव से निकल जाने के लिए कहा. उन्होंने स्यालकोट शहर में जाकर जिला के डिप्टी कमिश्नर को निवेदन किया. उसने अंग्रेज़ एस. पी. और पुलिस भेजी. वे गाँव से न निकले मगर अपना काम बन्द कर दिया. विवश होकर उन बड़ी जाति वालों को अपने मरे हुए पशु स्वयं उठाने पड़े और अपने घरों की सफाई आप ही करनी पड़ीं. यह काम करने पर भी वे बड़ी जातियों के बने रहे. कोई नीच या अछूत नहीं बन गए. ये सब स्वार्थ के झगड़े हैं. दूसरों को, दूसरी जातियों को आर्थिक या सामाजिक दशा का संस्कार दे देना और उनको दबाए रखनाअपने काम निकालना यह समय के मुताबिक रीति-रिवाज़ बना रहा. अब अपना राज्य हैप्रजातन्त्र है. हर एक व्यक्ति जातिसमाज या देशवासी को यथासम्भव उन्नति करने का अधिकार है. रहने का अच्छा स्तररोटीकपड़ा और मकान प्राप्त करना सब के लिए ज़रूरी है. अभिप्राय यह है कि अपना जीवन अच्छा बनाने के लिए रोटीकपड़े और मकान के लिएआर्थिक दशा सुधारने के लिएअनुसूचित जाति में आने के लिए कई जातियाँ मजबूर थीं. जो लोग उनको नीच या अछूत कहते हैं यह उनकी अज्ञानता है. सबको प्रेमभाव से रहना चाहिए.

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Meghs and Cause of Caste differentiation – जाति भेद का मूल कारण और मेघ

जाति भेद का मूल कारण

इस संसार में जो भी जीव-जन्तु हैंकई रूपरंगवर्ण रखते हैं. उनके समूह को ही जाति कहा गया है. जलथलआकाश के जीव अपनी-अपनी जातियाँ रखते हैं. पशु-पक्षियों और जल में रहने वाले मच्छकच्छव्हेल मछली जैसी जातियाँ पाई जाती हैं. मनुष्य जाति में अनेक जातियाँ बन गई हैं. अलग-अलग देश और प्रांत होने के कारणकर्मभाषावेशभूषा के कारण कई जातियाँ बन गईं जिनकी गणना सरकार का काम है. अलग-अलग और नाना जातियाँ बनने का मूल कारण यह है कि ये जितने रंगरूप और शरीर वाले जीव हैंये स्थूल तत्त्वों से बने हैं. इनके मनबुद्धिचित्तअहंकारविचारभाव सूक्ष्म तत्त्वों से बने हैं. इनकी आत्माएँ कारण तत्त्वों से बनी हैं और प्रत्येक जीव जन्तु में ये जो पाँच तत्त्व हैंपृथ्वीजलअग्निवायु और आकाश. इनका अनुपात एक जैसा नहीं होता. सबका अलग-अलग है. किसी में वायु तत्त्व और किसी में आकाश तत्त्व अधिक है. इन्हीं के अनुसार हमारे गुणकर्मस्वभाव अलग-अलग होते हैं. गुण तीन हैं. सतोगुणरजो गुण और तमोगुण. किसी के अन्दर आत्मिक शक्तिकिसी में मानसिक शक्तिकिसी में शारीरिक शक्ति अधिक होती है. इसी तरह कर्म भी कई प्रकार के होते हैं. अच्छेबुरेचोरडाकूकामक्रोधलोभमोहअहंकार भी किसी में अधिक, किसी में कम. किसी में प्रेम और सहानुभूति कम है किसी में अधिक. इस वक़्त संसार में कई देश चाहते हैं कि हम दूसरों पर विजय पा लें. तरह-तरह के ख़तरनाक हथियार बन रहे हैं. इन सब चीजों का यही मूल कारण है. यह प्राकृतिक भेद है. कहा जाता है कि जो जैसा बना है वैसा करने पर मजबूर है. जिस महापुरुष का शरीरमन और आत्मा इन तत्त्वों से इस प्रकार बने हैंजो समता या सन्तुलित रूप में हैं, उस महापुरुष को संत कहते हैं. प्रत्येक व्यक्ति के अन्दर वासना उठती है और उसी वासना (कॉस्मिक रेज़) से सकारात्मक व नकारात्मक शक्तियाँ पैदा होती हैं जो स्थूल पदार्थों की रचना करती रहती हैं. वासना एक जैसी नहीं होती. इसलिए भिन्न-भिन्न प्रकृति के लोग उत्पन्न हो जाते हैं और नाना जातियाँ बन जाती हैं.
अब प्रश्न पैदा होता है कि क्या इसका कोई उपाय हो सकता है कि संसार में (पशुपक्षीऔर मच्छकच्छ को छोड़ दें) मनुष्य जाति में प्रेमभाव पैदा हो जाए और सब एक-दूसरे की धार्मिकसामाजिकजातीय और घरेलू भावनाओं का सत्कार करते हुए आप भी सुखपूर्वक जीएँ और दूसरों को सुखपूर्वक जीने दें. मेरी आत्मा कहती है कि हाँइसका हल है और वह है मेघ जाति को समझना कि यह जाति कब और कैसे और किस लिए बनीजिसको मैं इस लेख में विस्तारपूर्वक वर्णन करने का यत्न अपनी योग्यता अनुसार करूँगा. दावा कोई नहीं.
मेघ जाति
आप इस लेख को अब तक पढ़ने से समझ गए होंगे कि जातियों के नाम कहीं देशकहीं प्रान्तकहीं आश्रमकहीं वेशभूषाकहीं भाषा और कहीं रंग से हैं. जैसे आजकल दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद को लेकर गोरे और काले रंग के लोगों की जाति वालों में लड़ाई झगड़े हो रहे हैं. अभिप्राय यह है कि जातियों के नाम किसी न किसी कारणवश रखे गए और कोई नाम देना पड़ा. अब सोचना यह है कि मेघ जाति का मेघ नाम क्यों रखा गयाक्या यह कर्म पर या किसी और कारण से रखा गया? मनुष्य द्वारा बनाई गई भाषा के अनुसार मेघ एक गायन विद्या का राग भी हैजिसे मेघ राग कहते हैं. मेघ बादल को भी कहते हैं. जिससे वर्षा होती है और पृथ्वी पर अन्नवनस्पतियाँवृक्षफलफूल पैदा होते हैं. नदी नाले बनते हैं. जब सूखा पड़ता हैअन्न का अभाव हो जाता है तो धरती पर रहने वाले बड़ी उत्सुकता से मेघों की तरफ देखते हैं कि कब वो अपना जल बरसाएँ. जब मेघ आकाश में आते हैं और गरजते हैं तो लोग खुश हो जाते हैं और प्रार्थना करते हैं कि जल्दी वर्षा हो जाए. जब वर्षा होती है तो उसकी गर्जना भी होती है. योगी लोग जब योग अभ्यास करते हैं वो योग अभ्यास चाहे किसी प्रकार का भी हो उन्हें अपने अन्दर मेघ की गर्जना सुनाई देती है. उस जगह को त्रिकुटी का स्थान कहते हैं. गायत्री मंत्र के अनुसार यही सावित्री का स्थान हैः-
ओं भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
इसका अर्थ यह है कि जागृत, स्वप्न, सुषुप्ति से परे जो सूरज का प्रकाश है उसको नमस्कार करते हैं. वही हमारी बुद्धियों का प्रेरक है. उस स्थान पर लाल रंग का सूरज दिखाई देता है और मेघ की गर्जना जैसा शब्द सुनाई देता है. सुनने वाले आनन्द मगन हो जाते हैं क्योंकि वो  सूक्ष्म सृष्टि के आकाश में सूक्ष्म मेघों की सूक्ष्म गर्जना होती है सुनने से मन एकत्रित हो जाता है. यह गर्जना हमारे मस्तिष्क में या सिर में सुनाई देती है. तीसरे, हर एक आदमी हर वस्तु को ध्यानपूर्वक देख कर उसका ज्ञान प्राप्त करना चाहता है कि यह कैसे और किन-किन तत्त्वों से बनी है. जिस तरह हिमालय पर बर्फ होती है ऊपर जाने पर या वहाँ रहने वालों को बर्फ का ज्ञान होता हैउससे लाभ उठाते हैं. बर्फ पिघल करपानी की शक्ल में बह करनीचे आकर भूमि में सिंचाई के काम आती है. इसी तरह मेघालय हमारे भारत देश का प्रांत है जो बहुत ऊँचे पहाड़ों से घिरा हुआ है. वहाँ के रहने वाले लोगों को मेघ का ज्ञान होता हैवहाँ मेघ छाए रहते हैंगरजते हैंवर्षा करते हैं इत्यादि. इसी के नाम पर मेघालय उसका नाम है. सम्भव है वहाँ के वासी भी मेघ के नाम से पुकारे जाते हों.
तो मेघ शब्द क्यों और कैसे बनाजितना हो सका लिख दिया. प्राचीन काल से हिन्दू जाति में यह नाम बहुत लोकप्रिय है. अपने नाम मेघ रखा करते थे. अब भी मेघ नाम के कई आदमी मिले. रामायण काल में भी यह नाम प्रचलित था. रावण उच्च कोटि के ब्राह्मण थेउन्होंने अपने लड़के का नाम मेघनाद रखा. उन्होंने अपने लड़के को बजाए मेघ के मेघनाद का संस्कार दिया. वो बहुत ऊंचे स्वर से बोलता था. जब लंका पर वानर और रीछों ने आक्रमण किया तो मेघनाद गरजे और रीछों और वानरों को मूर्छित कर दिया. पूरा हाल आप राम चरित मानस से पढ़ लें. नाद का अभिप्राय यह भी है कि ऊँचे स्वर से बोलकर या कड़क कर हम दूसरों को परास्त कर सकते हैं जैसे मेघ जब कड़क कर गर्जन करते हैं तो हृदय में कम्पन पैदा होता हैघबराहट आ जाती है. कई सन्तों ने मेघों के बारे में लिखा है. इनकी आवश्यकता और प्रधानता दर्शाई हैः-
सुमरिन कर ले मेरे मनातेरी बीती उमर हरिनाम बिना।
देह नैन बिनरैन चन्द्र बिनधरती मेघ बिना ।
जैसे तरुवर फल बिन होनावैसा जन हरिनाम बिना।
कूप नीर बिनधेनु क्षीर बिनमन्दिर दीप बिना।
जैसे पंडित वेद विहीनावैसा जन हरिनाम बिना ।।
काम क्रोध मद लोभ निवारोछोड़ विरोध तुम संशय गुमाना।
नानक कहे सुनों भगवंताइस जग में नहीं कोऊ अपना ।।
इन शब्दों में गुरु नानक देव जी ने मेघ की महिमा गाई है. धरती मेघ के बिना ऐसे ही है जैसे हमारा जीवन हरिनाम बिना निष्फल और अकारथ हो जाता है. इसमें और भी उदाहरण दिए हैं ताकि मेघ की महानता का पता लग सके. कबीर सहिब का भी कथन हैः-
तरुवरसरवरसन्तजनचौथे बरसे मेंह।
परमारथ के कारणेचारों धारें देह ।।
साध बड़े परमारथीघन ज्यों बरसे आय,
तपन बुझावे और कीअपना पौरुष लाय ।।
मेघ जाति का नामकरण संस्कार
प्राचीन काल में मनुष्य जाति के कुछ लोग जम्मू प्रदेश में ऊँचे पहाड़ी भागों में निवास करते थे. उस समय दूसरे गाँव या दूसरे पहाड़ी प्रदेश के लोगों से मिलना नहीं होता था. जहाँ जिसका जन्म हो गयाउसने वहीं रहकर आयु व्यतीत कर दी. हमने आपनी आयु में देखा हैलोग पैदल चलते थेदूर जाने के कोई साधन नहीं थे. बच्चों को पढ़ाया भी नहीं जाता था. कोई स्कूल नहीं थे. रिश्ते नाते छह-सात मील के अन्दर हो जाते थेजहाँ पैदल चलने की सुविधा होती थी. उस समय जो लोग ऊँचे पहाड़ी प्रदेशों में थेउनको भी वहीं पर ज्ञान हो जाता था. दूर की बातें नहीं जानते थे. इन ऊँचे पहाड़ी इलाकों में मेघ छाए रहते थे और बरसते रहते थे. वहाँ के वासियों के जीवन मेघों का संस्कार ग्रहण करते थे. उनको केवल यही समझ होती थी कि ये मेघ कैसे और किन-किन तत्त्वों के मेल से बनकर आकाश में आ जाते हैं और इनके काम से क्या-क्या लाभ होते हैं और क्या-क्या हानि होती है. जैसी वासी वैसी घासी. मेघों के संस्कार उन लोगों के हृदय और अन्तःकरण में घर कर जाते थे. जो मेघों का स्वभावपरोपकार का भावठंडकआप भी ठंडे रहना और दूसरों को भी ठंडक पहुँचानाउन लोगों की वैसी ही रहनी हो जाती थी क्योंकि दूसरे लोग जो उनके सम्पर्क में आ जाते थे उनको शांतिखुशीठंडक मिलती थी. इसलिए वो उन ऊँचे पहाड़ों पर रहने वाले लोग स्वाभाविक तौर पर मेघ के नाम से पुकारे जाते थे. यह नाम किसी व्यवसाय या कर्म के ख्याल से नहीं है. यह मेघ नाम मेघों से लिया गया और वहाँ के वासियों को भी मेघ कहा गया. ज्यों-ज्यों उनकी संतान की वृद्धि होती गईवे नीचे आकर अपनी जीवन की यात्रा चलाने के लिए रोटीकपड़ा और मकान की ज़रूरत के अधीन कई प्रकार के काम करने लगे. किसी ने खेतीकिसी ने कपड़ाकिसी ने मज़दूरीऔर वो अब नक्शा ही बदल गया. अब इस जाति के लोग धीरे-धीरे उन्नति कर रहे हैं. पुराने काम काज छोड़ कर समय के मुताबिक नए-नए काम कर रहे हैं और मालिक की दया से और भी उन्नति करेंगेक्योंकि इनको मेघों से ऊँचा संस्कार मिला. ऊपर जो कुछ लिखा है उससे यही सिद्ध होता है कि समय-समय पर हर जाति के लोग अपना काम भी बदल लेते हैं. मेघ जाति का यह नाम प्राकृतिक हैस्वाभाविक ही पड़ा. यह किसी विशेष कार्य से संबंध नहीं रखता.
मेघ कैसे बनते हैं
इस धरती पर सूरज की गरमी से जब धरती में तपन पैदा हो जाती है तो स्वाभाविक ही वो ठंडक चाहती है और ठंडक जल में होती है. वह गर्मी समुद्र की तरफ स्वाभाविक ही जाती है और वहाँ की ठंडक गर्मी की तरफ जाने लग जाती है और इससे वायु की गति बन जाती है और वह चलने लग जाती है. हवा तेज़ होने पर अपने साथ जल को लाती है या वह अपने गर्भ में जल भर लेती है और उड़ कर धरती की तपन बुझाने के लिए उसका वेग बढ़ जाता है. मगर उन हवाओं में भरा जल तब तक धरती पर नहीं गिर सकता जब तक कि जाकर वो ऊँचे पर्वतों से न टकराएँ. उसका वेग बंद हो जाता है. आकाश में छा जाता है. जब यह दशा होती है कि अग्निवायु और जल इकट्‌ठे हो जाते हैंइनकी सम्मिलित दशा को मेघ कहते हैं. मेघ केवल अग्नि नहीं हैकेवल वायु नहींकेवल जल नहींबल्कि इन सबके मेल से मेघ बनते हैं. जब ऊपर मेघ छाए रहते हैंतो हवा को हम देख सकते हैंअग्नि को भी देख सकते हैंइन सबके मेल से जो मेघ बना था उसे भी देख सकते हैं. जब वर्षा खत्म हो गईमेघ जल बरसा लेता हैतो न मेघ नज़र आता हैन वायुन अग्नि. आकाश साफ़ हो जाता है. वो मेघ कहाँ गयाइसका वर्णन आगे किया जायेगा कि वे कहाँ गए. मेघ ने अपना वर्ण खोकर पृथ्वी की तपन बुझाई. पृथ्वी पर रहने वाले जीवों की आवश्यकताओं को पूरा किया और उनको सुखी बनाया. आकाश से वायु बनीआकाश और वायु से अग्नि बनीआकाश और वायु और अग्नि से जल बनाआकाशवायु अग्नि और जल से पृथ्वी बनी. जब सृष्टि को प्रलय होती है तो पहले धरती जल मेंफिर धरती और जल अग्नि मेंधरतीजल और अग्नि वायु मेंधरतीजलअग्नि और वायु आकाश में सिमट जाते हैं. आकाश का गुण शब्द हैवायु का गुण स्पर्श हैअग्नि का गुण रूप हैजल का गुण रस है और पृथ्वी का गुण गंध है. इन्हीं गुणों को सूक्ष्म भूत भी कहते हैं. ये गुण ब्रह्म की चेतन शक्ति से बनते हैं. ब्रह्म प्रकाश को ही कहते हैं. ब्रह्म का काम है बढ़नाजैसे प्रकाश फैलता है. वो प्रकाश या ब्रह्म शब्द से बनता है. यह सारी रचना शब्द और प्रकाश से बनती है. शब्द से ही प्रकाश और शब्द-प्रकाश से ही आकाशवायु, अग्निजल और पृथ्वी बन जाते हैं. तो इस सृष्टि या त्रिलोकी के बनाने वाला शब्द है :-
शब्द ने रची त्रिलोकी सारी
आकाश का यही गुण अर्थात शब्द इन सब तत्त्वों में काम करता है. जो त्रिकुटी में मेघ की गर्जना सुनाई देती हैवो भी उसी शब्द के कारण है. मेघ नाम या मेघ राग या दुनिया के प्राणी जो भी बोल सकते हैंवो आवाज़ उसी शब्द के कारण है. विज्ञानियों ने भी सिद्ध किया है कि यह सृष्टि आवाज़ और प्रकाश से बनी है.
जिस व्यक्ति को इस शब्द का और ब्रह्म का और इस सारे काम का जो ऊपर लिखा हैपता लग जाता हैज्ञान हो जाता हैअन्तःकरण में यह बात गहरी घर कर जाती हैउस व्यक्ति को इन्सान कहते हैं. इन्सानियत की इस दशा को प्राप्त करने के लिए या तो योग अभ्यास करके आकाश के गुण को जाना जाता है या जिस महापुरुष के शरीरमन और आत्मा इन सब तत्त्वों की सम्मिलित संतुलित दशा से बने हैंउसे संत भी कहा गया हैउसकी संगत से हम इन्सानियत को प्राप्त कर सकते हैं. जो इन्सान बन गया उसके लिए न कोई जातिन कोई पाति और न कोई भेदभाव रह जाता है. उसके लिए सब एक हो जाते हैं. उसमें एकता आ जाती है. वो किसी भी धर्म-पंथ का नहीं रहता. उसके लिए इन्सानियत ही सब कुछ है. हम सब इन्सान हैं. मानव जाति एक है. तो वो शब्द और प्रकाश जिससे यह सृष्टि पैदा हुईतरह-तरह के वर्ण बन गएमेघ वर्ण भी उसी से बना है. जब इन्सान में मानवता आ जाती है तो उसके लक्षण संतों ने बहुत बताए हैं. परोपकारसबको शांतिवाणी ठंडक देने वाली बन जाती है. धरती पर रहने वाले प्राणियों की तपन बुझ जाती है. इस विषय पर कबीर साहिब का एक शब्द है :-
अव्वल अल्लाह नूर उपायाकुदरत के सब बन्दे।
एक नूर से सब जग उपज्याकौन भले को मंदे।
सबसे पहले शब्द ने ही प्रकाश अर्थात ब्रह्म को उत्पन्न किया और शब्द ब्रह्म की चेतन शक्ति से ये पाँचों तत्त्व बन जाते हैं और वो चेतन शक्ति ही इन सब तत्त्वों में विद्यमान हैतभी यह तत्त्व रचना कर सकते हैं.
लोगा भरम न भूलो भाई,
खालिकख़लकख़लक में खालिकपूर रहयौ सब ठाई।
भ्रम में आकर यह नहीं भूलना चाहिए कि वो स्रष्टा और सृष्टि उत्पन्न करने वाला और उत्पत्ति सब एक ही वस्तु है. वेदों में भी लिखा है :-
एको ब्रह्म द्वितीय नास्ति
शास्त्रों में भी कहा है कि ब्रह्म एक चेतन शक्ति हैवो आप तो नज़र नहीं आती मगर उसके कारण यह दृश्यमान जगत बना है. इन सब में वही है. इस मेघ वर्ण का निर्माण भी उसी चेतन शक्ति से हुआ.
माटी एक अनेक भाँति कर साजी साजनहारे।
न कछु पोच माटी के भांडेन कछु पोच कुम्हारे ।।
कुम्हार एक ही मिट्‌टी से कई प्रकार के बर्तन बना लेता हैहै वो मिट्‌टीमगर मिट्‌टी की शक़्लें बदल जाती हैं. मिट्‌टी कई नामोंरूपों में आ जाती है :-
सबमें सच्चा एको सोईतिस का किया सब कुछ होई।
हुकम पछाने सो एको जाने बन्दा कहिये सोई ।।
सबमें वो शब्द ही काम कर रहा है उसी से सब कुछ बना है और वही सब कुछ करता है. जो उसको जान जाता है वही इन्सान है. हुक्म भी प्रकाश का ही नाम है क्योंकि परम तत्त्व से ही पहले शब्द पैदा होता है और शब्द से आगे फिर रचना शुरू हो जाती है इसी को हुक्म कहा गया है.
अल्लाह अलख नहीं जाई लखिया गुर गुड़ दीना मीठा।
कहि कबीर मेरी संका नासी सर्व निरंजन डीठा ।।
कबीर साहिब फरमाते हैं कि गुरु की दया से सब भ्रम और शंकाएँ समाप्त होते हैं और वो जो अलख था (शब्द को देखा नहीं जा सकता इसलिए उसे अलख कहा है)उसे कोई सत्गुरु ही लखा सकता है और फिर वो न नज़र आने वाला नजर आने लग जाता है.
आइये अब कुछ विख्यात शब्दकोषों के अनुसार मेघ शब्द का विचार करें.
हिन्दी शब्द सागर
1. मेघ–घनी भाप को कहते हैं जो आकाश में जाकर वर्षा करती है (भाप ठोस या तरल पदार्थ की वह अवस्था है जो उनके बहुत ताप पाने पर विलीन होने पर होती है–भौतिक शास्त्र)
2. मेघद्वार–आकाश
4. मेघनाथ–स्वर्ग का राजा इन्द्र
5. मेघवर्तक–प्रलय काल के मेघों में से एक मेघ का नाम
6. मेघश्याम–राम और कृष्ण को कहते हैं
7. मेघदूत–कालीदास महान कवि हुए हैं. उन्होंने अपने काव्य में मेघदूत का वर्णन किया है. इसमें कर्तव्यच्युति के कारण स्वामी के शाप से प्रिया वियुक्त एक विरही यक्ष ने मेघ को दूत बनाकर अपनी प्रिया के पास मेघों द्वारा संदेश भेजा है.
हिन्दी पर्याय कोष
1. मेघ और जगजीवन दोनों एक ही अर्थ के दो शब्द हैं.
हिन्दी राष्ट्रभाषा कोष
1. जगजीवन–जगत का आधारजगत का प्राणईश्वरजलमेघ.

यदि आप ध्यान से पढ़ें तो इन शब्द कोषों में मेघ का अर्थ जो लिखा गया है वो ईश्वर और नाना ईश्वरीय शक्तियों के मेल से रसायनिक प्रतिक्रिया होने पर जो हालतें या वस्तुएँ उत्पन्न होती है उनमें से एक को मेघ कहा गया है. इसलिए जो कुछ ऊपर लिखा गया है कि मेघ ब्रह्म से ही उत्पन्न होते हैं और उसी में समा जाते हैंठीक है. इससे सिद्ध हुआ कि मेघ शब्द कोई बुरा नहीं है और इसी के नाम पर उन्हीं के संस्कारों को ग्रहण करते हुए मेघ जाति बनी.

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