इसे आम तौर पर ‘पूँजीवाद’ कहा जाता है. इसकी ‘अति’ ही संपत्ति का पूर्णाधिकार (absolute right to property) है. भारत में इसका नाम ‘मनुस्मृतिवाद (मानव धर्म)’, ‘ब्राह्मण-बनियावाद’ या ‘सामंतवाद’ है. अब यह इस बात पर निर्भर करता है कि जनता इस व्यवस्था के विरुद्ध कितनी असरदार आवाज़ उठाती है और आने वाली सरकारों से नीतियाँ बदलवाती है.
Category Archives: Religion
Hesitation of a religious and believer – धार्मिक अथवा आस्तिक व्यक्ति की हिचकिचाहट
Hindutva and Manusmriti – हिंदुत्व और मनुस्मृति
जहाँ तक ‘हिंदू’ शब्द का सवाल है यह शब्द दलितों के लिए जात-पात का बुरा संकेत है और ब्राह्मणों के लिए ‘मनुस्मृति’ को जारी रखने का खुशी भरा एक संकेत. एक मान्य-सी परिभाषा के अनुसार ‘हिंदू वह है जो वेदों में आस्था रखता है’ – यहाँ तक तो चलेगा (हालाँकि मैं इसे नहीं मानता) लेकिन मनुस्मृति को हिंदुओं का धर्मग्रंथ मानने में दलितों और शूद्रों को केवल आपत्ति ही हो सकती है. आजकल भारत में जिस ‘हिंदूराष्ट्र’ को बनाने की कवायद हो रही है उसमें ‘मनुस्मृति’ का अहि-नाग पहले ही कुंडली मारे बैठा है.
Faith is eventually lost – विश्वास अंततः टूटता है
Religion of Meghs – A deliberation – मेघों का धर्म- एक चिंतन
2. हालाँकि व्यक्ति के धर्म और लोक धर्म में कई बातें समान हो सकती हैं. उनके बारीक ताने–बाने को बुद्धिजीवी क्रमवार समझने का प्रयास करते हैं. कबीर, महात्मा ज्योतिराव फुले और डॉ. अंबेडकर की परंपरा में कइयों ने यह कार्य किया है लेकिन हम उनकी वाणी पढ़–सुना कर धन्य हो जाते हैं. उनकी कही बातों में छिपे इतिहास और परंपरा को समझने का प्रयास नहीं करते.
Baba Ramdev |
Dhani Matang Dev |
4. पंजाब के जो मेघ भारत विभाजन के बाद भारत में आ गए वे आर्यसमाज के एजेंडा से बाहर हो गए. राजनीतिक रूप से यहाँ हिंदुओं के रूप में उनकी कोई ज़रूरत नहीं रह गई थी. साथ ही वे कई अन्य धर्मों/पंथों में बँट गए जैसे राधास्वामी, निरंकारी, ब्राह्मणीकल सनातन धर्म, सिख धर्म, ईसाई धर्म, विभिन्न गुरुओं के डेरे–गद्दियाँ आदि. सच्चाई यह है कि जिसने भी उन्हें ‘मानवता और समानता‘का बोर्ड दिखाया वे उसकी ओर पाँच रुपया और हार लेकर दौड़ पड़े. इससे उनका सामाजिक स्तर तो क्या बदलना था, धार्मिक दृष्टि से उनकी अलग पहचान की संभावना भी पतली पड़ गई. राजनीतिक पार्टियाँ अपने वोटों की गिनती करते समय हिंदुओं, सिखों, मुसलमानों और ईसाइयों के वोट गिनने के बाद “बाकियों के वोटो” में मेघों को गिन भर लेती हैं. विशेष महत्व नहीं देतीं. कारण यह कि मेघों ने सामूहिक निर्णय कम ही लिए हैं.
कला और धर्म के मेल से असीमित कृतियाँ बन सकती हैं. उससे कहीं धर्म तो गायब नहीं हो जाता? |
6. वे मंदिरों में जाना चाहते हैं लेकिन ब्राह्मणीकल धर्म के प्रति आशंकित भी हैं. गुलामी के दौर में अत्यधिक जातीय हिंसा झेलने और अशिक्षा के कारण वे जात–पात को भुलाने की प्रबल इच्छा रखते हैं लेकिन यह कैसे हो. जातिवाद को खत्म करने की इच्छा दलितों में है क्योंकि वे इससे पीड़ित हैं. गैर दलित जातियाँ इस बारे में गंभीर नहीं हैं.
8. युवा मेघ पूछते हैं कि शूद्र ‘खास अपने’ मंदिर क्यों नहीं बनाते? शायद वे नहीं जानते कि वे देवी–देवताओं की मूर्तियों वाले अपने खास मंदिर बना लेंगे (कबीर मंदिर को छोड़) तो अन्य जातियों के लोग विशेषकर ब्राह्मण उन पर कब्ज़ा जमाने के लिए आ जाएँगे क्योंकि मंदरों में धन लगातार टपकता है. यह एक भरा–पूरा व्यवसाय है. अपने समुदाय द्वारा बनाए गए कबीर मंदिरों में चढ़ा पैसा मेघ अपने उत्थान के लिए प्रयोग में ला सकते हैं. वैसे उन मेघों की संख्या काफी है जो इष्ट के रूप में कबीर को सब कुछ देने वाला मानते हैं और उससे शक्ति ग्रहण करते हैं.
9. कुछ मेघ इस अनुभव से गुज़रे हैं कि कई मंदिरों और धार्मिक स्थलों का प्रयोग जातीय भेदभाव फैलाने के लिए होने दिया जाता है. अतः वे भगवान को तो मानते हैं लेकिन इसके लिए किसी मंदिर में जाने की अनिवार्यता महसूस नहीं करते न ही वे ऐसे मंदिरों में दान देना चाहते हैं. वे समुदाय के लिए या कबीर मंदिर के लिए दान देने में विश्वास रखते हैं. तथाकथित हिंदू धर्म ग्रंथों (जो ब्राह्मणों द्वारा लिखे हैं) पर उनका विश्वास समाप्त हो रहा है क्योंकि ये ग्रंथ जातिवाद बढ़ाने में सहायक सिद्ध हो रहे हैं.
10. अंत में यह कहना पर्याप्त होगा कि मेघों में संशयवादी विचारधारा के लोग भी हैं जो भगवान, मंदिर, धर्मग्रंथों, धार्मिक प्रतीकों आदि की आवश्यकता महसूस नहीं करते बल्कि देश के संविधान पर भरोसा रखते हैं.
(श्री सतीश भगत द्वारा फेसबुक पर 24-10-2013 को आयोजित बहस इसका मुख्य आधार है)
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Talk from a distance Your Holiness! – दूर से बात करो महात्मा जी !
टीवी पर आसाराम का केस सुनते–सुनते कान पक गए हैं. इसे कबीर के दो शब्दों में समेटा जा सकता है–
Interesting and dreadful images take away your money – रोचक और भयानक तस्वीरें आपका धन ले जाती हैं
बस में कार्यालय जाते समय रास्ते में एक हवेली आती थी जिसके बाहर बहुत बड़े बोर्ड पर लिखा था- ‘बालब्रह्मचारिणी विषकन्या योगिनी’. इसकी ओर ध्यान खिंचता था. एक दिन अपने सहकर्मी मूर्ति (एक ब्रह्मण) को कहा, “देखिए भाई साहब, यह नाम कितना रोचक और भयानक लगता है.” उन्होंने तुरत कहा, “जी हाँ, और आकर्षित भी करता है.”
एक विज्ञापन की वास्तविक सफलता 25-30 वर्ष बाद दिखती है जब उसे देखने वाले बच्चे विज्ञापन से मिले विचारों को लेकर बड़े हो चुके होते हैं और उस उत्पाद या विज्ञापनदाता को धन देने की हालत में आ जाते हैं.
धर्म के क्षेत्र में विज्ञापन का विचार नया नहीं है. इसका प्रयोग सदियों से होता आया है. धार्मिक विज्ञापनों के माध्यम से धन कमाने वालों की संताने आज अरबपति हैं. विज्ञापनों के ज़रिए धन चढ़ाने का भाव स्वयं में पैदा कर चुके लोग करोड़ों में हैं. रिटेल में पैसा चढ़ाने वाले ये लोग उन लोगों को इतना अमीर बनाते हैं कि आगे चल कर ख़ुद उनकी अमीरी का मुकाबला नहीं कर पाते. यह ठीक उसी प्रकार होता है जैसे फिल्में बनाने वाले अमीर हो जाते हैं और फिल्में देखने वाले केवल टिकट पर खर्च करते हैं. कहने का मतलब है कमाऊ और बड़ा कमाऊ होना अधिक ज़रूरी है.
Mother Goddess is here – देवी माँ आई हैं
कई वर्ष हो गए चंडीगढ़ जैसे आधुनिक शहर में कहीं किसी महिला में ‘देवी माँ’ के आने की ख़बर नहीं सुनी थी. मेरे सर्कल में पिछले दिनों ‘देवी माँ’ के पधारने की ख़बर आ गई.
इसके और कारण भी हो सकते हैं. मेरे एक मित्र की पत्नी एक अन्य महिला के चंगुल में है जिसमें ‘देवी माँ’ आती है और उस महिला ने अपने घर में ही एक मंदिर भी बना रखा है. उसके पति ने इसे किसी कारण से छोड़ दिया था और अब उस महिला पर तीन पुत्रियों का उत्तरदायित्व है. मित्र की पत्नी उसके मंदिर में नियमित रूप से जाती है और खूब चढ़ावा चढ़ाती है.
इस बिज़नेस में आपकी रुचि है क्या? 😉
Megh Churn-3 – मेघ मथनी (मधाणी)-3
Megh churn-1 – मेघ मथनी-1
Megh churn-2 – मेघ मथनी-2
Dr. Dhian Singh – Known history of Megh Bhagats – मेघ भगतों का इतिहास
पंजाब में कबीर पंथ का उद्भव और विकास
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