Category Archives: Religion

Capitalism and Brahmanism – पूँजीवाद और ब्राह्मणवाद

भूखे व्यक्ति का खाने की चीज़ चुराना कानून के विरुद्ध है लेकिन सारे गोदाम खाने की चीज़ों से भरे होने पर भी किसी को भूखे मरने देना पूरी तरह से कानूनी है.

इसे आम तौर पर ‘पूँजीवाद’ कहा जाता है. इसकी ‘अति’ ही संपत्ति का पूर्णाधिकार (absolute right to property) है. भारत में इसका नाम ‘मनुस्मृतिवाद (मानव धर्म)’, ‘ब्राह्मण-बनियावाद’ या ‘सामंतवाद’ है. अब यह इस बात पर निर्भर करता है कि जनता इस व्यवस्था के विरुद्ध कितनी असरदार आवाज़ उठाती है और आने वाली सरकारों से नीतियाँ बदलवाती है.

Hesitation of a religious and believer – धार्मिक अथवा आस्तिक व्यक्ति की हिचकिचाहट

(फेसबुक पर बालेंदु स्वामी का यह नोट बहुत अच्छा लगा. इस लिए इसे यहाँ रख लिया है)
अधिकांश लोग धर्म, अन्धविश्वास और निरर्थक मान्यताओं से केवल इसलिए चिपके रहते हैं और उन आस्थाओं पर शंका होते हुए भी उन्हें इसलिए रिफ्यूज नहीं कर पाते क्योंकि उन्हें लगता है कि पुराने समय से चली आ रहीं यह रूढ़ परम्पराएँ तथा विश्वास उनके बाप दादाओं की देन हैं और उन्हें ठुकराकर वो अपने पूर्वजों को भला कैसे मूर्ख व गलत साबित कर दें! 
यदि गौर करेंगे तो पाएंगे कि वस्तुतः यही धर्म है जो कि बदलाव और विकास नहीं चाहता! आप गीता और कुरान को बदल नहीं सकते! इसीलिये धर्म लोकतांत्रिक नहीं बल्कि तानाशाही और सामन्तवादी है! इसीलिये धर्म ग्राह्य नहीं त्याज्य है और इसीलिए वह शोषण का साधन भी है! धर्म के साथ दिक्कत यही है कि जो उसकी किताबों में लिखा है वही अंतिम सत्य है और उसे चुनौती नहीं दी जा सकती और यही बात विज्ञान से पूर्णतः विपरीत है, इसीलिये धर्म और विज्ञान कभी एक साथ नहीं चल सकते! हालाँकि धार्मिक लोगों के पास धर्म, ईश्वर, आस्था, अन्धविश्वास और शास्त्रों को वैज्ञानिक बताने के अलावा और कोई चारा नहीं होता, जब कि ईश्वर सबसे बड़ी अवैज्ञानिक अवधारणा तथा अन्धविश्वास है! कई बार तो कुछ थोड़ा बहुत विचारवान आस्तिक अन्दर अपने दिल में जानते हैं कि यह गलत, मूर्खतापूर्ण और अविश्वसनीय है परन्तु उनमें इतना साहस नहीं होता (या फिर संकोच होता है) कि वो जिन्हें प्रेम और सम्मान करते हैं (उनके पूर्वज) या स्वयं को मूर्ख अथवा गलत कैसे साबित सकें! और वो फिर भेड़ की तरह लकीर पीटते चले जाते हैं!
यह निष्कर्ष न जाने कितने लोगों से हुयी मेरी बातचीत और मानव मनोविज्ञान पर आधारित है! मैं कहना यह चाहता हूँ कि विज्ञान की हर नयी खोज कुछ पुरानी आस्थाओं, सिद्धांतों और नजरियों को ख़ारिज कर देती है और एक नए प्रकाश के साथ आगे बढ़ने के लिए विकास के नए रास्ते खोलती है जबकि धर्म इसके विपरीत आपकी आस्था को पुराने के साथ ही चिपके रहने का दुराग्रह करता है! 
मैं भी उसी रास्ते से चलकर आया हूँ, उसी गंदगी से निकल कर आया हूँ! मैं स्वीकार करता हूँ कि मैं गलत था यह भी मानता हूँ कि मैं मूर्ख था! मैं भी अपने पूर्वजों को प्रेम और सम्मान करता हूँ परन्तु मुझे यह भी स्वीकार करना होगा कि या तो उन्हें सत्य का ज्ञान नहीं था या फिर वो मूर्ख बन गए अथवा मूर्ख बना रहे थे! यह तो ठीक है कि वो मेरे बड़े थे, अपने थे, पूर्वज थे तो मैं उन्हें प्रेम करूँ परन्तु इसका यह मतलब नहीं है कि मैं उनकी हर उलजुलूल (शास्त्रों में लिखी) बात का अनुमोदन या अनुगमन भी करूँ!
Balendu Swami

Hindutva and Manusmriti – हिंदुत्व और मनुस्मृति

जहाँ तक ‘हिंदू’ शब्द का सवाल है यह शब्द दलितों के लिए जात-पात का बुरा संकेत है और ब्राह्मणों के लिए ‘मनुस्मृति’ को जारी रखने का खुशी भरा एक संकेत. एक मान्य-सी परिभाषा के अनुसार ‘हिंदू वह है जो वेदों में आस्था रखता है’ – यहाँ तक तो चलेगा (हालाँकि मैं इसे नहीं मानता) लेकिन मनुस्मृति को हिंदुओं का धर्मग्रंथ मानने में दलितों और शूद्रों को केवल आपत्ति ही हो सकती है. आजकल भारत में जिस ‘हिंदूराष्ट्र’ को बनाने की कवायद हो रही है उसमें ‘मनुस्मृति’ का अहि-नाग पहले ही कुंडली मारे बैठा है.

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Faith is eventually lost – विश्वास अंततः टूटता है

मैंने विश्वास की शक्ति को महसूस किया है. वह ‘भगवान’ की है या नहीं मैं नहीं जानता. मैं कई बार ऐसे लोगों के बारे में सोचता हूँ जिन्होंने कभी ‘भगवान’ (God) शब्द नहीं सुना. कई देश ऐसे हैं जहाँ गॉड शब्द का महत्व नहीं है. वहाँ के लोगों की इच्छाएँ भी पूरी होती हैं. वे भी प्रगति करते हैं. मज़बूत हैं. कई तो ईश्वर को मानने वालों से अधिक मज़बूत हैं और सुखी हैं. यह आत्मविश्वास और सही सोच की वजह से है.
एक और तथ्य भी है कि जब कोई व्यक्ति शारीरिक या मानसिक रूप से कमज़ोर या बीमार हो जाता है तो उसे एक सहारा दरकार होता है जिसे वह भगवान, डॉक्टर, दवाई, नज़दीकी रिश्तेदार, गुरु, आदि में ढूँढता है और उसे पाता हुआ महसूस करता है. इसे विश्वास की शक्ति भी कह सकते हैं.
कुछ लोग एक के बाद एक देवता पर विश्वास करते हैं या कई देवताओं को पूजते हैं. इसका कारण मैं यह समझता हूँ कि उनका विश्वास एक जगह से हट कर दूसरी जगह आरोपित होता है. इससे भी प्रमाणित होता है कि विश्वास (चाहे वह ईश्वर पर ही क्यों न हो) अंततः टूटने वाली चीज़ है.

Religion of Meghs – A deliberation – मेघों का धर्म- एक चिंतन


मेघ समुदाय में मेघों के धर्म के विषय पर कुछ कहना टेढ़ी खीर है. यदि किसी को अपने धर्म के बारे में ठीक-ठीक नहीं मालूम तो आप उससे क्या अपेक्षा रखेंगे.

यह विषय गहन गंभीर है क्योंकि- (1) धर्म व्यक्ति की नितांत व्यक्तिगत चीज़ है, इसे वह सब के सामने नहीं भी रखना चाहता. (2) भय के कारण वह सबके सामने वही रखता है जो लोक में प्रचलित है या कमोबेश स्वीकृत है.

विभिन्न लोगों की आपसी बातचीत से कुछ तथ्य सामने आए जिन्हें नीचे संजोया गया है.

1. मेघ अपने धर्म का इतिहास तो दूर वे अपना इतिहास तक नहीं जानते. जो थोड़ेबहुत जानते हैं वे टुकड़ों में जानते हैं. उलझन में पड़े हैं. बहुत से पढ़ेलिखे (literate) हैं लेकिन शिक्षित (educated)कम हैं. वे इस विषय में तर्क नहीं कर पाते और भावनाओं की मदद लेते हैं. ऐसा भी नहीं है कि तर्क योग्य बिंदुओं का अभाव है परंतु यह सत्य है कि शिक्षा और आर्थिक स्रोतों की कमी के कारण उनमें से अधिकतर उन तर्क बिंदुओं तक पहुँच नहीं पाते. दोष किसका है?

2. हालाँकि व्यक्ति के धर्म और लोक धर्म में कई बातें समान हो सकती हैं. उनके बारीक तानेबाने को बुद्धिजीवी क्रमवार समझने का प्रयास करते हैं. कबीर, महात्मा ज्योतिराव फुले और डॉ. अंबेडकर की परंपरा में कइयों ने यह कार्य किया है लेकिन हम उनकी वाणी पढ़सुना कर धन्य हो जाते हैं. उनकी कही बातों में छिपे इतिहास और परंपरा को समझने का प्रयास नहीं करते.


3. एक विशेष उल्लेख यहाँ कर रहा हूँ. मार्च, 1903 में आर्यसमाज ने 200 मेघों का शुद्धीकरण (?) करके उन्हें हिंदू दायरे में लाने का पहला प्रयास किया. बाद में बहुत से मेघों का शुद्धीकरणकिया गया. मेघों की गणना हिंदुओं में करने से स्यालकोट के उस क्षेत्र में मुस्लिमों की संख्या 50 प्रतिशत से कम हो गई इससे हिंदुओं के नाम पर आर्यसमाज/हिंदुओं को अंग्रेज़ों से काफी लाभ मिले थे. लेकिन यह सवाल स्वाभाविक उठ खड़ा होता है कि आज की तारीख में कितने मेघ आर्यसमाजी हैं और कि आर्यसमाज के एजेंडा में मेघ कहाँ हैं. जो मेघ पाकिस्तान में रह गए थे उनमें से काफ़ी इस्लाम को अपना चुके हैं. जो अभी भी हिंदू हैं वे अपना हाल बताना चाहें भी तो सीमा पार से उनकी आवाज़ कम ही आती है. वे अल्पसंख्यक हैं और अन्य अल्पसंख्यकों की भाँति अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं. पाकिस्तान में रह गए मेघवालों और मेघवारों का भी यही हाल है. राजस्थान में रह रहे मेघवाल अपने एक पूर्वज बाबा रामदेव के मंदिरों में जाते हैं. गुजरात के मेघवारों ने अपने पूर्वज मातंग ऋषि के बारमतिपंथ को धर्म के रूप में सहेज कर रखा है और उनके अपने मंदिर हैं, पाकिस्तान में भी.

Baba Ramdev

Dhani Matang Dev












4. पंजाब के जो मेघ भारत विभाजन के बाद भारत में आ गए वे आर्यसमाज के एजेंडा से बाहर हो गए. राजनीतिक रूप से यहाँ हिंदुओं के रूप में उनकी कोई ज़रूरत नहीं रह गई थी. साथ ही वे कई अन्य धर्मों/पंथों में बँट गए जैसे राधास्वामी, निरंकारी, ब्राह्मणीकल सनातन धर्म, सिख धर्म, ईसाई धर्म, विभिन्न गुरुओं के डेरेगद्दियाँ आदि. सच्चाई यह है कि जिसने भी उन्हें मानवता और समानताका बोर्ड दिखाया वे उसकी ओर पाँच रुपया और हार लेकर दौड़ पड़े. इससे उनका सामाजिक स्तर तो क्या बदलना था, धार्मिक दृष्टि से उनकी अलग पहचान की संभावना भी पतली पड़ गई. राजनीतिक पार्टियाँ अपने वोटों की गिनती करते समय हिंदुओं, सिखों, मुसलमानों और ईसाइयों के वोट गिनने के बाद बाकियों के वोटोमें मेघों को गिन भर लेती हैं. विशेष महत्व नहीं देतीं. कारण यह कि मेघों ने सामूहिक निर्णय कम ही लिए हैं.


5. मेघ जानतेबूझते हैं कि मंदिरों में उनके पुरखों के जाने पर मनाही थी. वे आज भी धर्म के भय से उबर नहीं पाते. इस स्थिति पर उन्हें ख़ुद पर क्रोध तो आता है लेकिन वे तर्कहीन पौराणिक कथाओं से प्रभावित हैं. वे देवीदेवताओं के मंदिरों की ओर आकर्षित हैं.
कला और धर्म के मेल से असीमित कृतियाँ बन सकती हैं. उससे कहीं धर्म तो गायब नहीं हो जाता?

6. वे मंदिरों में जाना चाहते हैं लेकिन ब्राह्मणीकल धर्म के प्रति आशंकित भी हैं. गुलामी के दौर में अत्यधिक जातीय हिंसा झेलने और अशिक्षा के कारण वे जातपात को भुलाने की प्रबल इच्छा रखते हैं लेकिन यह कैसे हो. जातिवाद को खत्म करने की इच्छा दलितों में है क्योंकि वे इससे पीड़ित हैं. गैर दलित जातियाँ इस बारे में गंभीर नहीं हैं.


7. मेघों की नई पीढ़ी कबीर की ओर झुकने लगी है और बुद्धिज़्म को एक विकल्प के रूप में जानने लगी है बिना जाने कि कबीर और बुद्ध की शिक्षाओं में ग़ज़ब की समानता है. देखने में आया है कि यह पीढ़ी अगर मंदिरों में जाने लगी है तो साथ ही वहाँ के कर्मकांडों और वहाँ से फैलाए जा रहे अंधविश्वासों के प्रति जागरूक है. वह मूर्तियों को दूधदही चढ़ाने, दूध पिलाने आदि के आडंबर के विरोध में है.

8. युवा मेघ पूछते हैं कि शूद्र ‘खास अपने’ मंदिर क्यों नहीं बनाते? शायद वे नहीं जानते कि वे देवीदेवताओं की मूर्तियों वाले अपने खास मंदिर बना लेंगे (कबीर मंदिर को छोड़) तो अन्य जातियों के लोग विशेषकर ब्राह्मण उन पर कब्ज़ा जमाने के लिए आ जाएँगे क्योंकि मंदरों में धन लगातार टपकता है. यह एक भरापूरा व्यवसाय है. अपने समुदाय द्वारा बनाए गए कबीर मंदिरों में चढ़ा पैसा मेघ अपने उत्थान के लिए प्रयोग में ला सकते हैं. वैसे उन मेघों की संख्या काफी है जो इष्ट के रूप में कबीर को सब कुछ देने वाला मानते हैं और उससे शक्ति ग्रहण करते हैं.

9. कुछ मेघ इस अनुभव से गुज़रे हैं कि कई मंदिरों और धार्मिक स्थलों का प्रयोग जातीय भेदभाव फैलाने के लिए होने दिया जाता है. अतः वे भगवान को तो मानते हैं लेकिन इसके लिए किसी मंदिर में जाने की अनिवार्यता महसूस नहीं करते न ही वे ऐसे मंदिरों में दान देना चाहते हैं. वे समुदाय के लिए या कबीर मंदिर के लिए दान देने में विश्वास रखते हैं. तथाकथित हिंदू धर्म ग्रंथों (जो ब्राह्मणों द्वारा लिखे हैं) पर उनका विश्वास समाप्त हो रहा है क्योंकि ये ग्रंथ जातिवाद बढ़ाने में सहायक सिद्ध हो रहे हैं.

10. अंत में यह कहना पर्याप्त होगा कि मेघों में संशयवादी विचारधारा के लोग भी हैं जो भगवान, मंदिर, धर्मग्रंथों, धार्मिक प्रतीकों आदि की आवश्यकता महसूस नहीं करते बल्कि देश के संविधान पर भरोसा रखते हैं.



(श्री सतीश भगत द्वारा फेसबुक पर 24-10-2013 को आयोजित बहस इसका मुख्य आधार है)

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Talk from a distance Your Holiness! – दूर से बात करो महात्मा जी !

टीवी पर आसाराम का केस सुनतेसुनते कान पक गए हैं. इसे कबीर के दो शब्दों में समेटा जा सकता है

                                  दास कबीर हर के गुन गावे, बाहर कोऊ पार न पावे
                                  गुरु की करनी गुरु जाएगा, चेले की करनी चेला.

गुरु का अपना अतीत, वर्तमान और भविष्य होता है. हर व्यक्ति का होता है. एक गुरु के पास एक चेले के चरित्र संबंधी शिकायत आई तो उसने कहा कि यह चेला मेरे पास आया है. गंदे कपड़े ही धोबी घाट पर आते हैं.’
अंधश्रद्धा रखने वाले भोले लोग अपने बच्चों का पेट काट कर गुरुओंमहात्माओं को दान देते हैं. समझदार गुरु और स्वामी सारा दान इकट्ठा करके अपनी गद्दियाँ-आश्रम बना कर अपने बच्चोंरिश्तेदारों के नाम कर जाते हैं. How sweet Baba ji !! 
लेकिन अगर ‘महात्मा’ पर आर्थिक चोरी (सभ्य भाषा में अनियमितता) का आरोप हो और महिलाओं को इनसे शिकायत होती हो, तो? इसका इलाज है, बहुत कारगर. चाणक्य ने कहा है कि युवा माता को युवा बेटे के साथ अकेले यात्रा नहीं करनी चाहिए. व्यावहारिक माताएँ अपने घर में पिता और बेटी को अकेले छोड़ कर दूर नहीं जातीं. ये बातें बाबा आदम के ज़माने से चली आ रही हैं. महात्माओं के पास महिलाओं का जाना और जा कर उनके पैर छूनाया चरण दबाना‘…..पता नहीं आप क्या सोचते हैं…..मैंने कभी नहीं सुना कि किसी संत, सत्गुरु, आचार्य आदि ने स्वयं के नपुंसक, अक्षम या हिजड़ा होने की बात कही हो.
इनसे बचना और दूर रहना बेहतर है. गृहस्थी अपना धनसमय बच्चों और अपने समाज के विकास पर ही व्यय करें.

Interesting and dreadful images take away your money – रोचक और भयानक तस्वीरें आपका धन ले जाती हैं


यह तस्वीर शिव की है जिसके हाथ में त्रिशूल (हथियार) है, गले में साँप है, माथे पर चंद्र (Luna) है.  रंग काला है. कुछ गहने पहने हैं. कुछ दूरी पर शिवलिंग है. एक रोचक और भयानक बिंब. इस बिंब को बेचने वाला कितना धन कमाता है अनुमान लगाना कठिन है. कहते हैं कि भारत में सबसे अधिक मंदिर शिव के नाम से बने हैं.

बस में कार्यालय जाते समय रास्ते में एक हवेली आती थी जिसके बाहर बहुत बड़े बोर्ड पर लिखा था- बालब्रह्मचारिणी विषकन्या योगिनी. इसकी ओर ध्यान खिंचता था. एक दिन अपने सहकर्मी मूर्ति (एक ब्रह्मण) को कहा, देखिए भाई साहब, यह नाम कितना रोचक और भयानक लगता है. उन्होंने तुरत कहा, जी हाँ, और आकर्षित भी करता है.

धर्म किसी मानवोचित गुण को धारण करने का नाम है. लेकिन रोचक और भयानक धार्मिक कथाओं/चित्रों के साथ किसी को आकर्षित करना उससे जुड़ी एक प्रकार की दूकानदारी है, ठीक उसी प्रकार जैसे फिल्मों और टीवी सीरियलों का व्यापार. आकर्षक और रोचक विज्ञापन बनाना और उसे बार-बार दिखा कर लोगों, विशेषकर बच्चों के मन को आकर्षित/प्रभावित करना दार्घावधि में व्यापार को बढ़ाता और धन लाता है.

एक विज्ञापन की वास्तविक सफलता 25-30 वर्ष बाद दिखती है जब उसे देखने वाले बच्चे विज्ञापन से मिले विचारों को लेकर बड़े हो चुके होते हैं और उस उत्पाद या विज्ञापनदाता को धन देने की हालत में आ जाते हैं.

धर्म के क्षेत्र में विज्ञापन का विचार नया नहीं है. इसका प्रयोग सदियों से होता आया है. धार्मिक विज्ञापनों के माध्यम से धन कमाने वालों की संताने आज अरबपति हैं. विज्ञापनों के ज़रिए धन चढ़ाने का भाव स्वयं में पैदा कर चुके लोग करोड़ों में हैं. रिटेल में पैसा चढ़ाने वाले ये लोग उन लोगों को इतना अमीर बनाते हैं कि आगे चल कर ख़ुद उनकी अमीरी का मुकाबला नहीं कर पाते. यह ठीक उसी प्रकार होता है जैसे फिल्में बनाने वाले अमीर हो जाते हैं और फिल्में देखने वाले केवल टिकट पर खर्च करते हैं. कहने का मतलब है कमाऊ और बड़ा कमाऊ होना अधिक ज़रूरी है.

इन दिनों फेसबुक पर देखा है कि मेघ बच्चे और स्याने देवी-देवताओं की रोचक और भयानक फोटो यहाँ-वहाँ पेस्ट करते हैं. ये फोटो अधिकतर भयानक होती हैं. यानि ये लोग उन चित्रों से प्रभावित हैं और अन्य को भी उससे प्रभावित करना चाहते हैं. यह मनोवैज्ञानिक सत्य है कि एक डरा हुआ व्यक्ति दूसरों को अपने डर की ओर खींचता है.

ईश्वर से प्रार्थना है ये मेघ सज्जन पौराणिक कथाओं और देवी-देवताओं के भय से मुक्त हो जाएँ और इस बात को जानने की कोशिश करें कि इन धार्मिक प्रतीकों पर ध्यान देने के कारण गया हुआ पैसा अपने समुदाय के कल्याण के लिए कैसे वापस आ सकता है.

मेघों को ऐसा होना होगा कि  बचपन से ही उनकी सांसारिक विकास की तीसरी आँख खुली रहे.




Megh Bhagat


Mother Goddess is here – देवी माँ आई हैं

कई वर्ष हो गए चंडीगढ़ जैसे आधुनिक शहर में कहीं किसी महिला में देवी माँ के आने की ख़बर नहीं सुनी थी. मेरे सर्कल में पिछले दिनों देवी माँ के पधारने की ख़बर आ गई.

तब मेरी आयु 12-13 वर्ष की थी जब टोहाना में हमारे पड़ोस की एक नव विवाहिता में उसकी पहली स्वर्गीय सास आ गई. काफी तूफान मचा. सास-ससुर परेशान, पति-देवर परेशान. ओझा बुलाए गए. मुर्गी की बलि दी गई जो मरने से पहले गोल-गोल घूमी. दो सप्ताह तक पास-पड़ोस में दहशत फैली रही. डर के कारण से मेरी माँ और मुझे सोते में छाती पर दबाव महसूस हुआ. अगले दिन माँ ने ओझा से कह कर तहलीज पर कील ठुकवाए.
बच्चा होने के नाते मेरा उस घर में आना-जाना अचानक भी हो जाता था. मुझे कुछ ऐसी बातें पता थीं जो बड़े नहीं जानते थे. मैंने एक दिन माँ से कहा कि उस महिला में आई उसकी पहली सास कहेगी कि मेरी बहु को कुछ दिन के लिए उसके गाँव भेज दो. माँ ने पूछा, “तुम्हें कैसे पता?” मैंने उत्तर जानबूझ कर नहीं दिया लेकिन ऐसा मुँह बनाया जैसे मैं अज्ञात बातें जानता हूँ. इसे ‘बच्चे’ की समझदारी कहा जा सकता है. मेरी भविष्यवाणी सच साबित हुई. बहु को उसके गाँव भेज दिया गया. सब ठीक हो गया. आठ-दस महीने के बाद वह लौटी. यह जीवन के एक अंधेरे पक्ष का ऐसा प्राकट्य था जिसे उस महिला के ससुराल वालों ने यह सोच कर स्वीकार कर लिया कि- ‘जाने दो’. पूरे मामले में धर्म इस बात में दिखा कि आगे चल कर उस महिला की मानसिक मजूबरी समझ कर उसे क्षमा कर दिया गया.
मृतात्माएँ यूँ ही प्रकट नहीं होतीं. कोई आत्मा दुखी होती है या उसकी इच्छा पूरी नहीं हो रही होती तो मृतात्माएँ, भूत आदि प्रकट होने लगते हैं. पति के नपुंसक होने पर पत्नी का भूत-प्रेतों या ऊपरी चीज़ों के डर से साधुओं के पास या मंदिरों में जाना या युवा विधवाओं के साथ ऐसा होना इसी मानसिक प्रक्रिया का हिस्सा है. 

इसके और कारण भी हो सकते हैं. मेरे एक मित्र की पत्नी एक अन्य महिला के चंगुल में है जिसमें देवी माँ आती है और उस महिला ने अपने घर में ही एक मंदिर भी बना रखा है. उसके पति ने इसे किसी कारण से छोड़ दिया था और अब उस महिला पर तीन पुत्रियों का उत्तरदायित्व है. मित्र की पत्नी उसके मंदिर में नियमित रूप से जाती है और खूब चढ़ावा चढ़ाती है.

मित्र के यहाँ कीर्तन रखा गया तो मुझे भी निमंत्रण मिला. मैं लगभग जानता था कि क्या होने जा रहा है. कुछ देर देवी माँ की आरतियाँ गाने के बाद एक भजन-सा गाया गया जिसका भाव था- आज मेरी माँ ने यहाँ प्रकट होना है. देखा दोनों महिलाओं ने अपने बाल ऐसे बाँध रखे थे कि आसानी से खुल जाएँ. फिर उनका सिर घुमाने और झूमने जैसा नृत्य शुरू हो गया. मोहल्ले की कुछ महिलाएँ उठ कर चली गईं. एक यह कह कर चली गई कि ‘इन पढ़े लिखों से हम अनपढ़ अच्छे हैं’. अधिक नहीं लिखना चाहता. संक्षेप में इतना ही कि अपने घर में मंदिर चलाने वाली देवी ने मित्र की पत्नी को बताया तुम्हारे घर में ही कोई ऐसा व्यक्ति है जिसने तुम्हारे परिवार को कुछ किया हुआ है. पारिवारिक समूह का ढाँचा ऐसा था कि यदि elimination का method अपनाएँ तो केवल उस परिवार की ओर संदेह की उँगली उठती थी जिसका संपत्ति में बराबर का कानूनी अधिकार था. कुल मिला कर नया कुछ नहीं था. प्रयोजन था संपत्ति में शरीक़ों के विरुद्ध घृणा का वातवरण बनाना और संपत्ति के मामले में सास-ससुर के निर्णयों को प्रभावित करना.
अधिकतर मामलों में ये ‘देवी माँ’ के व्यवसायी ऐसे ‘कीर्तन’ आयोजनों का प्रयोजन पहले से जानते हैं. ये कभी भूल कर भी उस व्यक्ति का नाम नहीं लेते जिसके विरुद्ध घृणा और भय का वातावरण बनाया जाना होता है. अस्पष्ट अर्थ देने वाले गोल-मोल शब्दों का प्रयोग किया जाता है और शेष कार्य अनुमान, कानाफूसी, निंदा, चुग़ली के माध्यम से होने दिया जाता है. क्योंकि नाम ले देने पर ऐसे तथाकथित धार्मिक कीर्तन में ही बवाल हो सकता है और “देवी माँ” को फटकार लगा पूछा जा सकता है कि तुम्हारे नाम लेने का मक़सद क्या है और तुम्हारे खिलाफ़ कार्रवाई क्यों न की जाए. 
इस व्यवसाय वालों को गुंडों और पुलिस का साथ लेना पड़ता है. पुलिस वाला भी इनसे विभिन्न परिवारों की आंतरिक जानकारियाँ ले सकता है अगर उसकी ख़ाक़ी काफ़ी गंदी हो. इस व्यवसाय वाले अपने ‘ग्राहकों’ से उनके संपर्कों की भी जानकारी एकत्रित कर लेते हैं और उनका भरपूर शोषण करते हैं. किसी का दिया हुआ विज़िटिंग कार्ड तक इनके बहुत काम आता है. इस व्यवसाय का मूल मंत्र है- भय और आशंका का वातावरण बना कर धन कमाना.

इस बिज़नेस में आपकी रुचि है क्या? 😉

Megh Churn-3 – मेघ मथनी (मधाणी)-3

चाटी में रखा धर्म
बड़ीईईईई मुश्किल है. मिस्टर मेघ से बात करना ख़तरे से ख़ाली नहीं. वे हमेशा ज़मीनी बात कहें यह ज़रूरी नहीं लेकिन वे कड़ुवी बातें कहेंगे यह तय है. इस बार जब वे भार्गव कैंप (मेघ नगर) की गली में शहतूत के नीचे बिशना टी-शाप पर मिले तो जैसा कि होता आया है, विषय खिसक कर ऐसी जगह पहुँचा जिसका मुझे अनुमान नहीं था. मैंने ही शुरू किया था-
मैं– सर जीईईईई, जय हिंदअअ. कैसे हैं.
मि. मेघ– सुना भई, तेरी दोनों टाँगे चल रही हैं न?
मैं– क्यों सर जी, मेरी टाँग को क्या हुआ.
मि. मेघ– पिछली बार तेरे इतिहास की टाँग तोड़ दी थी मैंने, इस लिए पूछा. हा हा हा हा हा हा….
मैं– (उदास स्वर में) हाँ अंकल जी. अब हमें बिना टाँग से गुज़ारा करना पड़ेगा क्योंकि दूसरी भी टूटती नज़र आ रही है. बुरा न मनाना सर जी, हमारा इतिहास तो है नहीं, धर्म भी रसातल में जा रहा है.
मि. मेघ– क्या हुआ?बड़ा दुखी नज़र आ रहा है. तेरा सनातन धर्म तो आर्यसमाज है. उसकी बैसाखी टूट गई क्या?लगता है गायत्री मंत्र ने बेड़ा पार नहीं किया.
मैं– उस बैसाखी को टूटे तो 60 साल हो गए. अब समस्या बहुत गंभीर हो गई है.
मि. मेघ– ओह, तो तेरी समस्या धर्म है. तू खुद को हिंदू कहता है और हिंदू तेरे को हिंदू नहीं मानते. यही तेरी समस्या है तो दफ़ा हो जा.
मैं– क्या बात करते हो अंकल जी!!हम हिंदू नहीं तो फिर और क्या हैं? यही न कि हिंदुओं में सबसे नीचे रखे हुए हैं.
मि. मेघ– खोत्तेया, सब से नीचे रह कर तू खुश है. तभी तो तू महान है उल्लुआ.
मैं– तो क्या आप हिंदू नहीं हो?
मि. मेघ– हूँ. लेकिन एक अलग मायने में. होशियार रहता हूँ कि बीजेपी और आरएसएस के झाँसे में न आऊँ. ये तो निरा धोखा हैं.
मैं– यह तो आपमें कांग्रेस का भूत बोल रहा है. आप आधे तीतर और आधे बटेर हो चुके हो.
मि. मेघ– तू सही कह रहा है. पर तू मेरी छोड़, अपनी बता. चाय पीनी हो तो बात कर.
(चाय से बातचीत के दरवाज़े खुलते हैं. बिशना को कड़क चाय का आर्डर किया. कैरोसिन का स्टोव शूँ-शूँ करने लगा. भाप के साथ पत्ती की महक आने लगी.
मि. मेघ– चल, अब शुरू हो जा. चाय बन रही है.
मैं– अंकल जी, आपने भी सुना होगा कि बहुत से मेघ ईसाई बन गए हैं.
मि. मेघ– और तेरे पेट में दर्द उठता होगा?हैं?यदि तेरी यही समस्या है तो इसमें मेरी कोई दिलचस्पी नहीं. ओए बिशना आर्डर कैंसल कर.
मैं– बिशना आर्डर कैंसल नहीं होगा….मेघ जी यह बिरादरी की समस्या है. हम हैं ही कितने? पहले ही एकता की कमी है और हम और ज़्यादा बँट जाएँगे.
मि. मेघ– अच्छा…अच्छा…अच्छा. तो तुझे यह ग़म खाए जा रहा है!अच्छा यह बता कि तुझे यह ग़म कब से खा रहा है? जब से मेघ सिख, आर्य समाजी बने या मुसलमान हुए या फिर राधास्वामिए बन गए? अच्छा यह बता कि सिख, आर्यसमाजी, मुसलमान,राधास्वामिए या ईसाई बनने से पहले तुम्हारा कोई धर्म था?था तो कौन सा था?चल बता…
मैं– मैं नहीं जानता, बिल्कुल.
मि. मेघ– तो फिर दुखी क्यों होता है?तू कुछ नहीं है और ख़ुद को समझता भी है कि कुछ है. मतलब तू पहले कुछ भी नहीं था, और अब कुछ बन गया है. जो बनेगा, वो बँटेगा. इसमें कोई नई बात है क्या?तुझे यह तक तो पता नहीं कि तेरा पुराना धर्म क्या है. तो क्या तेरे पुरखे बिना धर्म के जीते आ रहे थे?डेरे-डेरियाँ क्या ऐसे ही बन गए? अक्ल की बात किया कर यार.
मैं– मैंने तो कहीं इसके बारे में पढ़ा नहीं.
मि. मेघ– मैं बताता हूँ. तेरा धर्म है- अनपढ़ता. (विरक्त हो कर) सारी उम्र ऐसे ही कट गई. बाकी भी कट जाएगी.
मैं– (खीझ कर) तो फिर आप बताओ न. क्या था धर्म हमारा?
मि. मेघ– तेरे मुँह में तो बस कोई खीर बना कर डाल दे. ख़ुद तो कुछ करना ही न पड़े. पुत्तर, स्टेट लाईब्रेरी में जाया कर. चल तेरे को एक शार्ट कट बता देता हूँ. कुछ न पढ़ सके तो अंबेडकर को पढ़ ले.
मैं– यूँ ही मारे जा रहे हो. कुछ बताओ तो सही. अंबेडकर के बारे में हो सकता है मैं कुछ जानता होऊँ.
मि. मेघ– अच्छा तो यह बता कि अंबेडकर का धर्म क्या था?
मैं– वो हिंदू थे, और क्या.
मि. मेघ– लक्ख लानत..
मैं– क्यों?
मि. मेघ– वे बौध थे.
मैं– (अचानक याद आने पर) हाँ-हाँ-हाँ-हाँ-हाँ, मैंने सुना था.
मि. मेघ– (चुभती आवाज़ में) बौध धर्म के नाम से अब तेरे पेट में फिर से दर्द उठ रहा होगा. नहीं? बिशना से तू चुल्लू भर पानी ले ले और डूब कर मर जा.
(बिशना की आँखें चमक उठीं)
बिशना– हंबेडकर ने कहा था चाचा, कि मैं नरक में पैदा तो हो गया था पर नरक में मरूँगा नहीं.
मि. मेघ– सुनलिया? जो तू नहीं जानता वह बिशना जानता है. अब धरती पर तेरे मरने के लिए कोई जगह नहीं. तू सिर्फ़ बिशना की चाय में डूब कर मर सकता है. चाय पकड़ ले…..और आखिरी बार समझ ले कि धर्म एक ऐसा नकली दही है जिसमें से कोई भी मधाणी मक्खन नहीं निकाल सकती.तू दुखी मत हुआ कर, मेघ बहुत स्याने लोग हैं इसका विश्वास रख.
मिस्टर मेघ कहीं भी, कुछ भी कह सकते हैं. लेकिन उन्होंने आख़िर तक मेघों के ईसाई बनने पर अपनी ओर से कुछ नहीं कहा. मिस्टर मेघ हैं ही मेघ, ऊँची सोच वाले, एकदम आसमानी. कोई कुछ भी बने, वे धर्म को लेकर परेशान नहीं होते. ईसाई मिशनरियों, आरएसएस ने शायद बरास्ता मि. मेघ के मेघों को जान लिया है. मेघ ईसाई भी बन रहे हैं और बुड्डा मल ग्रऊँड में आरएसएस की शाखा भी लगने लगी है. बहुत ख़ूब और जय हो !!
लेकिन समझ नहीं पा रहा हूँ कि मेघ एकता की बात पर मि. मेघ मुझे गोली क्यों दे गए? 

Megh churn-1 – मेघ मथनी-1

Megh churn-2 – मेघ मथनी-2

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Dr. Dhian Singh – Known history of Megh Bhagats – मेघ भगतों का इतिहास

Emergence and Evolution of Kabir Panth in Punjab
पंजाब में कबीर पंथ का उद्भव और विकास
Are you searching for history/known history of Megh Bhagats? 
Yes, this thesis of Dr Dhian Singh can
guide you through

An enthusiastic young man Mr. Dhian Singh from Kapurthala (Punjab), pioneered research on history of Megh Bhagat community in the backdrop of emergence and evolution of Kabir Panth in Punjab. This was very important from the point of view that his work helps in reconstruction of history of Dalit communities which has been destroyed and corrupted. Researcher Dr. Dhian Singh and director of this research work Dr. Seva Singh have, within the limitations, put in tireless efforts using research methodologies while pursuing intensive study, visits and interviews. Use of libraries for research work is a common thing. Dr. Dhian Singh undertook intensive touring of Jammu-Kashmir, Punjab, Haryana and Rajasthan at his own expense. His hard work together with diligence of his Director helped his thesis through for Ph.D degree in the year 2008.

For the past two years I had been requesting Dr. Singh to help  make his thesis on line for the benefit of others. Now on 08-02-2011 he gave me his thesis which was scanned and blogged. It is in the form of PDF file. To make it easy to read please press ‘ctrl’ and +.

I hope that, now, the desire of Meghs will be satiated with regard to their eternal questions as to who they are, who were their ancestors and what they used to do.

This thesis will help change the conventional thinking of Megh community which has been divided in so many names and religions that their social and political integration seems to be a distant dream. This thesis will help the community grow a sense of unity.

Finally big thanks to you Dr. Seva Singhji and Dr. Dhian Singhji. You have done a work of great importance. 

कपूरथला (पंजाब) के एक उत्साही युवक ध्यान सिंह ने पंजाब ने कबीर पंथ के उद्भव और विकास की पृष्ठभूमि में मेघ भगत समुदाय के इतिहास पर शोध करने का बीड़ा उठाया था. यह कार्य बहुत महत्वपूर्ण इसलिए था कि जिन दलित समुदायों का इतिहास नष्ट-भ्रष्ट किया जा चुका हो उनका इतिहास कैसे लिखा जाए. शोध के लिए पुस्तकालयों का उपयोग करना एक सामान्य बात है. शोधछात्र के तौर पर ध्यान सिंह ने और उनके निर्देशक डॉ सेवा सिंहडी.लिट्. ने शोध सामग्री को देखते हुए विचार-विमर्ष के बाद मान्य पद्धतियों (methodologies) की सीमाओं में रहते हुए गहन अध्ययन के अतिरिक्त यात्रा और साक्षात्कार का सहारा लेने का निर्णय लिया. ध्यान सिंह जी ने इसके लिए जम्मू-कश्मीर, पंजाबहरियाणा और राजस्थान के दौरे किए. उनके परिश्रम और निर्देशक के मार्गदर्शन से कार्य बखूबी हुआ और शोधग्रंथ वर्ष 2008 में पी.एच.डी. की डिग्री के लिए स्वीकार कर लिया गया. यह अपनी तरह का पहला कार्य है.

मैं दो-एक वर्ष से डॉ ध्यान सिंह से आग्रह कर रहा था कि वे अपने शोधग्रंथ को अन्य के लाभ के लिए ऑन-लाइन करें. अब 08-02-2011 को उन्होंने यह शोधग्रंथ मुझे सौंपा और मैंने उसकी स्कैनिंग कराने के बाद उसे एक ब्लॉग का रूप दे दिया.

मुझे आशा है कि अब हमारे मेघ भाइयों की यह जिज्ञासा शांत हो जाएगी कि हम कौन हैंकहाँ से आए हैं और हमारे पुरखे क्या करते थे.

सब से बढ़ कर यह शोधग्रंथ मेघ भगत समुदाय की पारंपरिक सोच को बदलने में सहायक होगा जिसे इतने नामों और धर्मों में बाँट दिया गया है कि उनमें सामाजिक और राजनीतिक एकता दूर का सपना लगती है. इसे पढ़ने के बाद इस समुदाय में एकता की भावना बढ़ेगी.

अंत में डॉ ध्यान सिंह और डॉ सेवा सिंह जी को कोटिशः धन्यवाद. आपने बहुत महत् कार्य को संपन्न किया है. यह शोधग्रंथ सात पीडीएफ फाइलों के रूप में नीचे दिया गया है. इन पर क्लिक करें और पढ़ें. फाइल खोलने के बाद स्क्रीन पर बड़ा पढ़ने के लिए ctrl और + को दबाएँ. पीडीएफ फाइल पर भी ऊपर दाएँ हाथ (+) और (-) के चिह्न हैं उनका भी प्रयोग किया जा सकता है. यह पीडीएफ़ फाइल एक बार खोलने से न खुले तो दूसरी बार क्लिक कर के खोलें. 
पंजाब में कबीरपंथ का उद्भव और विकास

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