Monthly Archives: January 2014

Arvind Kejriwal- New version – अरविंद केजरीवाल- नया वर्शन

अरविंद केजरीवाल आदमी ने एंटी-रिज़र्वेशन एक्टिविस्ट के तौर पर अपना करियर एसएसएस नेटवर्क से शुरू किया था और उसी की नींव पर अपना एनजीओ साम्राज्य खड़ा किया. आज उनकी राजनीतिक पार्टी में भी वही लोग जुड़े हैं जो ‘यूथ फॉर इक्वेलिटी’ वाले (एंटी रेज़रवेशनिस्ट) हैं. अपनी पृष्ठभूमि के आधार पर इन्होंने अन्ना हज़ारे को टाँक लिया.
आगे चल कर अन्ना सँभल गए. जनलोकपाल को लेकर चलाए गए इनके आंदोलन, जिसे मनुवादी भाषा में तांडव कहा जाता है, का सफल प्रयोग इन्होंने संसद को हिला कर रख देने के लिए किया. पार्लियामेंट में यादव नेताओं ने इस बात को समझा और उनके प्रतिरोध, जिसमें अन्य पार्टियाँ भी शामिल थीं, के कारण इनकी मंशा पूरी नहीं हो सकी.
काफी संशोधनों के साथ हाल ही में जनलोकपाल बिल पास हुआ है. इसका विरोध केजरीवाल ने किया है जबकि अन्ना और किरण बेदी ने इसे स्वीकार किया है. इस विभाजन का अर्थ आप समझ सकते हैं. केजरीवाल को अराजक कहना अतिश्योक्ति नहीं है. इन्हें संविधान के साथ खिलवाड़ करने के लिए खुला नहीं छोड़ा जा सकता. CM हो कर भी धारा 144 का उल्लंघन करना क्या प्रमाणित करता है?
मीडिया, और यह खुद भी, अपनी बदतमीज़ी को अराजकता कह रहे हैं.
Cough up for you have to pay to the society

Who created the creator – ब्रह्मा को किसने बनाया

बचपन में मेरे पूछने पर कि दुनिया किसने बनाई है पिता जी ने बताया था कि दुनिया को ब्रह्मा ने बनाया है. तो मैंने बालसुलभ बुद्धि से पूछा था कि तब ब्रह्मा को किसने बनाया था? फेसबुक पर गोत्रा जी की एक पोस्ट से उस सवाल का जवाब आया

ब्राह्मण ने पहले ब्रह्मा बना लिया फिर खुद को उसके मुँह से निकला बता दिया और शूद्र (देश के मूलनिवासी) कोउसके पैरों से निकला बता दिया. ब्राह्मणीकल सोप ऑपेरा यहीं नहीं रुकता. जन्म से पुनर्जन्म निकाल लिया और मूलनिवासियों के दिमाग़ को पुनर्जन्म और कर्म सिद्धांत की कहानियों के गहरे भँवर में डाल दिया जिसमें वे आज तक असुर और राक्षस बन कर खुशी से डुबकियाँ लगा रहे हैं. वे इस भँवर को ही अपनी किस्मत और धर्म मान बैठे हैं. कबीर ने इन्हीं के लिए सारी आध्यात्मिक और धार्मिक शिक्षा को बदला जिससे ये सभी संतुष्ट होते हैं लेकिन भँवर से नहींनिकलना चाहते.

समय आ गया है कि वे ईश्वर, देवी, देवता, पुनर्जन्म और उस पर आधारित कर्म सिद्धांत के इस मकड़जाल को समझें और उससे मुक्ति पाएँ. देश के मूलनिवासियों की समृद्धि और विकास का रास्ता इसके आगे है.

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Not ‘downtrodden’ but ‘aborigines’ – ‘दलित’ नहीं ‘मूलनिवासी’

इस विषय में अपनी बात कह सकता हूँ कि शूद्र और दलित शब्द से पीछा छुड़ाना अजा, अजजा और अपिजा के लिए कठिन हो गया है तब ये क्या करें?

फेसबुक पर एक सज्जन ने सुझाया है कि दलित जैसे शब्द का प्रयोग न करके ये जातियाँ अपने लिए मूलनिवासी शब्द का प्रयोग करें. मुझे यह सुझाव ठीक प्रतीत होता है क्योंकि यह ऐतिहासिक रूप से सार्थक है.

Hindutva and Manusmriti – हिंदुत्व और मनुस्मृति

जहाँ तक ‘हिंदू’ शब्द का सवाल है यह शब्द दलितों के लिए जात-पात का बुरा संकेत है और ब्राह्मणों के लिए ‘मनुस्मृति’ को जारी रखने का खुशी भरा एक संकेत. एक मान्य-सी परिभाषा के अनुसार ‘हिंदू वह है जो वेदों में आस्था रखता है’ – यहाँ तक तो चलेगा (हालाँकि मैं इसे नहीं मानता) लेकिन मनुस्मृति को हिंदुओं का धर्मग्रंथ मानने में दलितों और शूद्रों को केवल आपत्ति ही हो सकती है. आजकल भारत में जिस ‘हिंदूराष्ट्र’ को बनाने की कवायद हो रही है उसमें ‘मनुस्मृति’ का अहि-नाग पहले ही कुंडली मारे बैठा है.

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