Monthly Archives: October 2012
Martyrdom Day of Mahishasur – महिषासुर का शहीदी दिवस
Mahishasur the King |
Everything changes with time. As a child, I thought that Asuras and Rakshasas had been very bad to us. With the increase of knowledge I came to know that in fact we were the Asuras and Rakshasas who had been defeated at the hands of outside invaders i.e. Aryans. Due to the continuity of our struggle to come back to power, we were made targets of immense hatred. Our image was distorted through mythical stories.
Today, due to the spread of education, Dalits, tribals and OBCs know better about themselves. Last year Mahishasur’s Martyrdom Day was celebrated at Jawaharlal Nehru University. This year too, preparations are underway at several other places. It is mentionable that Asur is a tribe/caste (aborigines of India) in Jharkhand and Bengal. In Bengal, this Asur tribe mourns the death of Mahishasur during the Durga Puja days.
I have read at some places that such programs are held as a reaction to Durga Puja. This makes no sense to me. Everyone has a right to respect his forefathers. There cannot be any justification if there is any sense of opposition to Durga Puja.
For more information about the Mahishasura Martyrdom Day please see the link below.
कुछ स्थानों पर पढ़ा है कि ऐसे आयोजन दुर्गा पूजा की प्रतिक्रिया स्वरूप किए जाते हैं. इससे सहमत नहीं हुआ जा सकता. अपने पुरखों को सम्मान देने का अधिकार सभी को है. यदि दुर्गा पूजा के प्रति विरोध की कोई भावना है तो उसका कोई औचित्य नहीं.
महिषासुर के शहादत दिवस के बारे में अधिक जानकारी के लिए नीचे दिए लिंक पर देखें.
दुर्गा नहीं महिषासुर की जय
Resurrecting Mahishasur – Deccan Herald dt.30-10-2012
PRESS NOTE, AIBSF
इस मौके पर ‘इन साइट फाउंडेशन’ द्वारा महिषासुर पर बनाई गई डाक्युमेंट्री भी दिखाई गई.
BAMCEF-2 – बामसेफ-2
कल 21-10-2012 को बामसेफ चंडीगढ़ यूनिट ने कॉमनवेल्थ यूथ प्रोग्राम, एशिया सेंटर, सैक्टर-12 के हाल में एक दिवसीय ‘इतिहासात्मक और विचारधारात्मक प्रशिक्षण काडर कैंप’ (Historical and Ideological Training Cadre Camp) का आयोजन किया. इसमें भाग लेने का मौका मिला. इस प्रशिक्षण कैंप में मुख्य प्रशिक्षक और वक्ता मान्यवर अशोक बशोत्रा, सीनियर एडवोकेट (Mr. Ashok Bashotra, Sr. Advocate, High Court J&K) थे जो जम्मू से पधारे थे.
Ravindranath Thakur belonged to Shudra caste – रवींद्रनाथ ठाकुर शूद्र जाति से थे
Why there is no unity in Meghs-3 – मेघों में एकता क्यों नहीं होती-3
सामाजिक संघर्ष के लिए न उनके पास पर्याप्त शिक्षा है, न एकता और न ही इच्छा शक्ति. संघर्ष के रास्ते पर दो कदम चलते ही उन्हें निराशा घेरने लगती है और ईश्वर की याद सताने लगती है. वे नहीं जानते कि ‘ईश्वर’ नाम के आइडिया का प्रयोग बिरादरी के विकास के लिए कैसे किया जाता है.
यही बात राजनीतिक दलों के मामले में भी लागू होती है. मेघ किसी के हो गए तो हो गए. कुछ कांग्रेस से चिपट गए तो कुछ बीजेपी से लिपट गए. बिरादरी में एकता और राजनीतिक जागरूकता की कमी है.
सामाजिक और धार्मिक क्रांति के बाद ही राजनीतिक क्रांति आती है.- डॉ. अंबेडकर
Tulsidas knew the art of loving his people – तुलसीदास अपने समुदाय से प्रेम करना जानते थे
कक्षाओं में तुलसीदास
लेकिन मैं तुलसी के उक्त कथन को बहुत महत्व देता हूँ.
अपने समुदाय के सदस्यों के कार्य, कला, ज्ञान और उत्पाद (product) की जानकारी लें और परस्पर चर्चा करें. फिर जहाँ भी अवसर आए उसकी यथोचित प्रशंसा करें. यह सब को अच्छा लगेगा. इस प्रकार एक-दूसरे का आवश्यक सामाजिक-आर्थिक सहयोग अपने आप होता रहता है.
संत तुलसीदास सामुदायिक उन्नति के इस सरलतम मार्ग को जानते थे. उनकी सभी बातें आप माने या न माने, केवल अपने समुदाय के प्रति आदर और प्रेम-भावना को घना करके हृदय तक उतार लें तो समुदाय के विकास का रास्ता अधिक प्रशस्त होगा. आपकी उन्नति और सफलता निश्चित है.
Megh community felicitates Bhagat Chuni Lal – मेघ समुदाय ने भगत चूनी लाल का नागरिक अभिनंदन किया
ऑल इंडिया मेघ सभा, चंडीगढ़ ने 17 जून, 2012 को अंबेडकर भवन, सैक्टर-37, चंडीगढ़ में मेघ भगत परिवारों का एक गेटटुगेदर आयोजित किया जिसमें भगत श्री चूनी लाल, माननीय मंत्री लोकल बॉडीज़ और मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च, पंजाब सरकार का मेघ समुदाय की ओर से नागरिक अभिनंदन किया गया.
ऑल इंडिया मेघ सभा की ओर से बोलते हुए श्री इंद्रजीत मेघ ने मुख्य अतिथि श्री चूनी लाल को इस संस्था के एक पुराने और महत्वपूर्ण सपने ‘कबीर मंदिर’ की याद दिलाई जिसे ‘मेघ भवन’ के नाम से भी जाना जाता है. भगत जी को बताया गया कि इसके लिए कई प्रयास किए गए हैं लेकिन ज़मीन की कीमतों और राजनीतिक समर्थन के अभाव में यह सपना अभी पूरा नहीं हुआ है. अपने भाषण के दौरान भगत जी ने इस बात को नोट किया और आश्वासन दिया कि इस सपने को हक़ीक़त में बदलने के लिए शीघ्र ही प्रयास शुरू करेंगे. इस माँग को भगत जी के दाहिने हाथ कहे जाने वाले श्री महेंद्र भगत ने भरपूर हामी दी और कहा कि यह सपना पूरा हो कर रहेगा.
हमारे हीरो, स्वागतम् |
पुष्पगुच्छ से स्वागत |
शॉल ओढ़ा कर अभिनंदन किया गया |
मुख्य अतिथि का संबोधन |
मुख्य अतिथि को स्मृति चिह्न |
श्री गोविंद कांडल, सचिव, AIMS |
श्री यशपाल, पूर्व अध्यक्ष, AIMS |
श्री साथी, लीगल एडवाइज़र, AIMS |
श्री इंद्रजीत मेघ, अध्यक्ष, AIMS |
मंच पर उपस्थिति |
श्री महेंद्र कुमार, आईएएस, सैक्रेटरी टू गवर्नर हरियाणा |
93% प्रतिशत अंक प्राप्त करने वाली छात्रा का सम्मान |
अध्यक्षीय भाषण |
श्रोताओं ने एकाग्रता से सुना |
महिलाओं की बड़ी उपस्थिति सराहनीय रही |
प्रीति भोज |
Unity of SCs, STs and OBCs – अ.जा., अ.ज.जा. और पिछड़ी जातियों की एकता
कई विद्वानों ने इस विषय पर विचार-विमर्ष किया है विशेषकर ‘बहुजन हिताय’ दर्शन के तहत जिसका बहुत महत्व है. मैंने भी अपने चिट्ठों में इस विचार-धारा के समर्थन में लिखा है.
Bhagat Buddamal – भगत बुड्डामल
Bhagat Budda Mal Ji |
सन् 1947 में पाकिस्तान से विस्थापित होकर आए और जालंधर में बसे मेघ भगत समाज में लगभग सभी लोग एक नाम से भली-भाँति परिचित हैं- भगत बुड्डामल. भार्गव कैंप, जालंधर में उनके नाम से एक ग्राऊँड बना है जिसे ‘भगत बुड्डामल ग्राऊँड’ कहते हैं.
विडंबना है कि आज मेघ भगत समाज में बहुत कम लोग इस सामाजिक कार्यकर्ता के बारे में विस्तार से जानते हैं जिसने अपने समुदाय के लिए जीवन भर अथक परिश्रम किया ताकि यह समुदाय भविष्य में भली प्रकार से ससम्मान जीवन व्यतीत कर सके.
उनका जन्म और पालन-पोषण स्यालकोट, पश्चिमी पंजाब (अब पाकिस्तान) में हुआ था. वे मेघ जाति के एक सामान्य परिवार में जन्मे थे. बहुत शिक्षित नहीं थे. लेकिन छोटी आयु में ही वे समाज सेवा के कार्य में प्रवृत्त हो गए थे. भारत में आने के बाद तो वे आजीवन समाज सेवा में रहे. मैंने स्वयं उन्हें अमृतसर, जालंधर और चंड़ीगढ़ में समाज सेवा में सक्रिय देखा है.
इनकी धर्मपत्नी का नाम भगवंती था. इनके अपनी कोई संतान नहीं थी अतः अपने भाई की संतान को गोद लेकर पाला. दमकता हुआ गोरा चेहरा. लंबा कुर्ता, तुर्रे वाली अफ़ग़ानी पगड़ी और पठानी सलवार पहनने वाले बुड्डामल जी का व्यक्तित्व बहुत आकर्षक और प्रभावपूर्ण था. वे धीरे-धीरे प्रेमपूर्वक और ठहरी हुई बात करते थे.
पार्क बनने के साथ उनका नाम अमर तो हो गया लेकिन उनके बारे में अभी बहुत-सी जानकारियाँ जुटाई जानी बाकी हैं. अभी हाल ही में भगत चूनी लाल भगत के नागरिक अभिनंदन समारोह में श्री बुड्डामल जी को याद किया गया था.
भगत बुड्डामल जी के फोटो और उनकी पेंटिंग की फोटो देने के लिए भगत बुड्डामल जी के परिवार का तथा पार्क के चित्र भेजने के लिए युवा ब्लॉगर श्री मोहित भगत का बहुत आभार. उनकी सहायता के बिना यह कार्य संभव नहीं था.
Megh Bhagats of J&K struggle for survival
Megh Bhagat – मेघ भगत
Their habitats उनके घर |
Their capital उनकी पूँजी |
Their way to development उनका विकास मार्ग |
Their roofs उनकी छतें |
They compete with heavy weight cloth industry भारी कपड़ा उद्योग के साथ प्रतियोगिता |
(2)
Their displacement due to terrorism
There are many more Megh Bhagats from Kishatwar now living in Kathua District who had to leave their homes and land. Now they have no land to cultivate, no permanent work or employment. They have settled in village Bhalua Budhi, Barnoti, Nagri and near Sakta Chack. There are about 30 families. Just look at their conditions.