भाषा की दृष्टि से केंद्र सरकार का स्टाफ दो वर्गों में बँटा है. अंग्रेज़ी कबीला जो खुद को अंग्रेज़ ही मानता है और हिंदी कबीला जो खुद को मूलतः हिंदी का मिशनरी मान कर चलता है. आम धारणा है कि हिंदी में यदि कुछ किया जाना है तो हिंदी कबीला करेगा. अँग्रेज़ी कबीला मुसीबत में ही हिंदी को हाथ लगाएगा.
कंप्यूटर जब आए तो उनके साथ आधुनिकता और ग्लैमर आया. अंग्रेज़ी कबीला तुरत कंप्यूटर पर अकड़ कर बैठ गया और अंग्रेज़ी टाइपिंग का काम अपने हाथ में ले लिया. बाद में कंप्यूटर पर हिंदी आ गई. अंग्रेज़ी कबीला की-बोर्ड में हिंदी का अस्तित्व देख कर बिदका. इसके अनुसार कंप्यूटर में हिंदी ऐसा शॉर्ट सर्किट है जिस पर उँगली नहीं पड़नी चाहिए.
अन्य स्टाफ़ हिंदी में काम नहीं करता तो न करे. दंड का कोई प्रावधान नहीं है. राजभाषा का ‘करबद्ध’काडर दफ़्तर के किसी गंदे से कोने में बैनर ले कर खड़ा रहता है- ‘हिंदी में काम करना आसान है.’ लेकिन अन्य कोनों से इसकी प्रतिध्वनि यों आती है– ‘हिंदी तुम्हारी सेवा का नाम है.’
हर साल 14 सितंबर को ‘हिंदी दिवस’ मनाया जाता है. इस कबीले के लिए यह एक प्रकार की ’26 जनवरी’ है जिस दिन इसकी फूलों सजी झाँकी निकाली जाती है. मंच पर बैठे अंग्रेज़ी बॉस के गले में हार डाले जाते हैं. बैनर-वैनर, भाषण-वाषण, गाना-वाना, फोटो-वोटो, खाना-पीना होता है. समारोह समाप्त.
सीढ़ियों पर, दफ़्तर भर में चढ़ता-भागता यह कबीला शाम पाँच बजे लंबी साँस ले कर अपने बॉस लोगों और साथियों को कोस लेता है- ‘आज सरकारी खर्चे पर तुमने ख़ूब काजू-बादाम खा लिए, कमबख्तो!! हिंदी में काम तुम धेले का नहीं करते.’