अखरोट में बंद इतिहास उर्फ़ मेघ मथनी
(एक सुझाव है कि इस प्रहसन के बीच में दिए लिंक्स को आप अवश्य देखें लेकिन पोस्ट पढ़ने के बाद)
दो मेघ मिल कर बाते करें और मेघ मधाणी (मथनी) न चले ऐसा कम होता है. मेघ मधाणी से मैं बहुत डरता हूँ. लेकिन जब मिस्टर मेघ (तनिक तुनक मिज़ाज) के माथे पर प्रज्ञा की सभी सात रेखाएँ मौजूद हैं तो डर काहे का. हमने चाटी उठा कर सिर पर रख ली.मथनी चली मिस्टर मेघ के घर…कुछ यों-
मैं – मि. मेघ, सुना है आप मेघों के प्राचीन इतिहास के बारे में बहुत जानते हैं.
मिस्टर मेघ – वाक़ई जानना चाहते हो या चाय पीने आए हो? आज मेघणी घर नहीं सो चाय नहीं मिलेगी.
मैं – नहीं…नहीं…नहीं, मैं वाक़ई जानने के लिए आया हूँ….
मिस्टर मेघ – ख़ुद भी पढ़ा करो कभी. लेकिन पूछते हो तो बताता हूँ.
मैं – जी मेहरबानी.
मिस्टर मेघ – (लंबी साँस लेकर) हमारा इतिहास वेदों में लिखा है…
मैं – लेकिन सर जी, वेदों में तो कोई इतिहास है ही नहीं.
मिस्टर मेघ – इतिहास न सही, संकेत तो हैं.
मैं – जी.
मिस्टर मेघ – फिर टोकोगे?
मैं – सॉरी.
मिस्टर मेघ – मैं जो इतिहास बताता हूँ वह गंभीर बात है. हा..हा..ही..ही.. की गुंजाइश नहीं इसमें….तो कुछ विद्वानों के अनुसार वेद में कहे गए वृत्र उर्फ़ प्रथम मेघ उर्फ़ अहि (नाग) मेघ से शुरू होता है हमारा इतिहास और आगे चल कर सिंधुघाटीपता नहीं किस ने बीच में डाल दी है. कहते हैं कि इस सभ्यता का विकास अफ्रीकी मूलके लोगों ने किया था. तो समझ लो उनका रंग कैसा रहा होगा. और पता है प्रचीन काल में कभी भारत को पूर्वी इथियोपिया कहा जाता था?
मैं – क्या कह रहे हैं आप?
मैं – पता नहीं आप नई-नई बातें कहाँ से लाते हैं. परंतु यह तो बताइये कि सिंधु घाटी के लोग वेदा-वादी करने वालों से हारे कैसे?
मिस्टर मेघ – बेवकूफ़!वेदा-वादी तो उन्होंने यहाँ आकर सीखी. तुम उनसे इसलिए हारे क्योंकि तुम पालते थे भैंसे, हिरन और बकरियाँ और हमलावर कबीलों के पास थे पालतू घोड़े. और हाँ….यदि वेद गोरों ने लिखे, तो फैसला करना होगा कि सिंधुघाटी पहले थी या गोरे यहाँ पहले आए.
मैं – वे तो कहते हैं कि वे काले लोगों की सभ्यता सिंधुघाटी की पैदाइश हैं न कि मध्य एशिया की.
मिस्टर मेघ – तो फिर ऐसे समझने की कोशिश करो कि भारत में रहने वाले सभी गोरे कौन हैं और कि भारत के हैं या नहीं. ज़रा इस बात को जान लो कि वे अपने साथ वहाँ की अपनी औरतों को नहीं लाए होंगे. सिंधुघाटी सभ्यता सोने की चिड़िया थी और यहाँ की औरतें दूध से नहाती थीं. भारत भर की औरतें यह आशीर्वाद देती हैं कि ‘दूधों नहाओ और पूतों फलो’. यह इशारा है कि सिंधुघाटी की औरतें अपना इतिहास नहीं भूली हैं.
मैं – लेकिन प्रभु, अब तो सभी भारत के हो चुके हैं. कालों और गोरों का ख़ून हज़ारों साल से एक-दूसरे में खूब मिक्स हुआ है हा…हा…हा…हा. ज़्यादातर तो भूरे हो चुके हैं. उसमें भी बहुत सी शेड्स हैं हा…हा…हा…हा.
मिस्टर मेघ – (आँखें तरेर कर) इंटेलिजेंट हो क्योंकि नागवंशीहो, लेकिन बात करने की तमीज़ नहीं. भारत में गोरे कहाँ हैं? गरमी के कारण काले-भूरे हो गए हैं और अंग्रेज़ भी उन्हें भूरा कहते हैं और इनसे दूर रहने में भलाई समझते हैं. तुमने मुझे रंगों में उलझा दिया है, कौवे ! मैं इतिहास की बात कर रहा था और तू मेरे मुँह से नस्लभेदी, रंगभेदीटिप्पणियाँ निकलवा रहा है.
मैं – जी…जी…जी, आप इतिहास की बात कर रहे थे.
मैं – इतिहास में….इतिहास में हम कहाँ हैं?
मिस्टर मेघ – हाँ..हाँ..हाँ..वह इतिहास ही है और यह भी इतिहास है. हमारी पहली लड़ाई क्या थी यार, समझ लो कि बहुत बड़ा पंगा था – सिकंदर दि ग्रेटके साथ. खोता था लेकिन वह भी घोड़े लाया था अपने साथ. बौध धर्म की लोकप्रियता उसे यहाँ खींच लाई थी.
मैं – (मैं बिफरा) मुझे शक है.
मिस्टर मेघ – अरे ओ अनपढ़! सिकंदर के रास्ते में जो एरिया था वहाँ कौन था? सिंधुघाटी के लोग. मतलब मेघवंशियों का गढ़. झेलम और चिनाब के बीच में पुरुया पोरस का ही तो राज था न? राजा पुरु हमारा आदमी था. उसका असली नाम पौरुष मेघ था. ससुरों ने उसका नाम बिगाड़ कर पुरु कर दिया. ग़ैर बिरादरियाँ उस पर अपना कब्ज़ा जमाती हैं जबकि उस एरिया में एक ही लड़ाकी कौम थी और उसका नाम था ‘मेघ‘, वृत्र की संताने. बाद में बड़ी मार पड़ी उनको.
मैं – आपकी बात पर विश्वास कौन करेगा?
मिस्टर मेघ – न करे. रानी रूठेगी अपना सुहाग लेगी.
मैं – मुहावरा ग़लत हो गया.
मिस्टर मेघ – फ़िक्र नहीं….सच्चाई अटल है.
मैं – आगे बताएँ सर जी, यह असुर-वसुरक्या चीज़ है?
मिस्टर मेघ – पहले जो लोग वेदा-वादीकर रहे थे उन्होंने हमारा इतिहास नष्ट किया. यार इतिहास तो जीतने वाला ही लिखवाता है न? हमें बेवकूफ बनाने के लिए पुराणा-पुराणीभी शुरू कर दी और कामयाब हुए. पहले हमारी रोटी और शिक्षा छीनीऔर बाद में रोटी के साथ हमें जो पुराणों की कहानियाँ परोसीं,हमें खानी पड़ीं. हम ने मान लिया कि हम बुरे हैं, असुर हैं, राक्षस हैं. थाने में थानेदार का कहा सत वचन होता है. मानना पड़ता है न. लेकिन दूसरी ओर रावण हमारा आदमी था. लंका सिंधुघाटी के लोगों ने बनाई थी. लंका राक्षसों की हो गईऔर रावण प्रतापी राजा था सो पुराणा-पुराणी करने वाले उसे अपना बताने लगे कि जी वो तो हमारा आदमी है. ओए, बता राम का रंग क्या था?
मैं – जी काला.
मिस्टर मेघ – और कृष्ण का?
मैं – जी काला.
मिस्टर मेघ – तो कुछ समझा क्या?
मैं – जी नहीं.
मिस्टर मेघ – अरे ओ कम अक़्ल, उन्होंने कालों को कालों के हाथों मरवाया. कालों में एकता की बुद्धि नहीं थी.
मैं – भूल जाइये न पुराणों को. अब तक तो गंगा, यमुना, ब्यास, सतलुज में बहुत-सा पानी बह चुका है. और कहीं हम हैं इतिहास में सर जी?
मिस्टर मेघ – बिल्कुल हैं, और बहुत हैं. लोमड़ी इतिहासकारों ने जिस-जिस काल को ‘अंधकार काल’,‘डार्क पीरियड/डार्क एज’या ‘क्लासिकल एज’ कहा है, उस-उस काल में मेघवंशी सत्ता में थे और यहाँ खूब प्रगति हुई. हमारे बहुत से राजे-महाराजे हो ग़ुज़रे हैं. महाराजा महाबली, सम्राट अशोक, चंद्रगुप्त मौर्य…और क्या-क्या नाम गिनाऊँ.
मैं – हाँ, उस बारे में मैं थोड़ा जानता हूँ. परंतु ‘अंधकार काल’का क्या मतलब?
मिस्टर मेघ – सीधी सी बात है कि गोरों-भूरों के हाथों से जब-जब सत्ता का गुड़ छिना उनके जीवन में अंधकार छा गया था.
मैं – लेकिन हमारे जीवन में जो प्रकाश हुआ उसका क्या?
मिस्टर मेघ – उनसे बर्दाश्त नहीं हुआ. उसे भूल जाओ.
मैं – (मैं फिर बिफरा) क्यों भूल जाओ?
मिस्टर मेघ – क्यों कि तुम्हें प्रकाश को संभाल कर रखने की आदत नहीं….एकता रखते ही नहीं.
मैं – यह प्रकाश और एकता कहाँ से आ गए? आप विषय से भटक गए हैं.
मिस्टर मेघ – तू निरा भगत है,पृथ्वी पर जीने का सुंदर तरीका कुदरत ने बनाया है – एकता का. इतिहास उसी से बनता है. बुरा मत मानना, देश भर के मेघवंशियों ने अलग-अलग मरने का रास्ता पकड़ा.
मैं – हाय..हाय..कैसे कह लेते हैं आप ऐसी दिल दुखाने वाली बातें?यह बताइये कि मेघों में काले-गोरे-भूरे सभी हैं. कोई-कोई तो यूनानी लगते हैं,एकदम सिकंदर के फौजी. उनका क्या? वे सभी ‘दलित’ कैसे हो गए.
मिस्टर मेघ – बात यूँ है मोहन प्यारे कि सिंधुघाटी सभ्यता के लोग अमन पसंद थे और प्राइवेसी उन्हें बड़ी पंसद थी. पड़ोसी कहीं आवाज़ न सुन ले इसलिए घर भी एक दूसरे से दूर बनाते थे. गाँव भी दूर-दूर बसाए. इकट्ठे न रहने की पुरानी आदत….घर पक्के बनाते थे और समझ लो कि सोते थे खुले आसमान के नीचे, अपने बड़े-बड़े खेत-खलिहानों में. यही बात है कि दले गए.
मैं – क्या मतलब है आपका?
मिस्टर मेघ – (मिस्टर मेघ को यह सवाल बहुत नागवार ग़ुज़रा. खीझ कर बोले) कई रंगों के हमलावर आए….कई कलर मिक्स हो गए. बेवकूफ़!! वह समय ही ऐसा था. कलर मिक्स, तकदीर फ़िक्स. तुम देश के ‘काले-भूरे‘ तो समझते हो, मेघों के ‘काले-गोरे‘ नहीं समझते क्या?अब दफ़ा हो जाओ.
मैं – बस..बस..आख़िरी सवाल. हमें मेघ क्यों कहा जाता है.
मिस्टर मेघ – (अब मिस्टर मेघ ने लंबे इतिहास जैसी साँस ली. कुछ रुक कर दार्शनिक अंदाज़ में बोले) क्योंकि हम आज भी आसमानी हैं और सारी दुनिया के हैं. इंद्र से ऊँचा आसन है हमारा. हमारी मर्ज़ी,जब चाहे बरसें, और दुनिया पर छाए रहते हैं. सूर्यवंशी और अग्निवंशी हैं. यही है ‘मेघ इतिहास‘ इन नटशेल. और तुम्हारा आने वाला कल बहुत चमकदार है. हुण..तूँ..भई..जा.
इतना कह कर मिस्टर मेघ ने बातचीत में दिए घावों पर अच्छी खासी मरहम लगा दी. मेरा आने वाला कल उज्जवल है, इतिहास प्रकाशमय है. मेरे पास उनकी बातों पर विश्वास करने के कई कारण हैं.
यह तय है कि मेघवंशियों का चमकता इतिहास नष्ट हो चुका है लेकिन मैं उसे ढूँढता हूँ. मेरी जानने की इच्छा प्रबल है तो अखरोट खाने वाले मिस्टर मेघ की बताने की क्षमता कमाल है. वे ‘मेघ इतिहास’की खोज में अपने दिमाग़ पर ज़रूरत से अधिक ज़ोर दे चुके हैं. कोई इतिहासकार उनकी बात माने या न माने उन्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ता. इतिहास को जहाँ शून्य कहा गया है वहाँ वे 10 लिखते हैं. इसमें ग़लत क्या है? अगर इतिहास का पन्ना मिट चुका है तो उस पर लिखने का हक़ उन्हें है. आप मेघ हैं तो अपना हाथ आज़माएँ. आपको ‘खाली स्थान भरो’ का अभ्यास है, तो समझ लीजिए आप स्वयंसिद्ध इतिहासकार हैं. संभव है आपके लिखे पर कल ऐतिहासिक शोध की मोहर लग जाए.
(इस रचना में प्रयुक्त अधिकतर संदर्भ पुस्तकों और इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्री पर आधारित हैं. सभी लिंक्स दिनांक 02-01-2012 को देखे गए हैं.)