1947 में भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान से विस्थापित होकर भारत आए लोग एक रेलगाड़ी का नाम बहुत लेते हैं- ‘जस्सड़ां वाली गड्डी.’इस गाड़ी में सवार लगभग सभी लोगों को मार डाला गया था. इसकी प्रतिक्रिया में लाशों से भरी दो गाड़ियाँ भारत से पाकिस्तान भेजी गईं. इनमें से एक गाड़ी की पृष्ठभूमि में खुशवंत सिंह (Khushwant Singh) का उपन्यास Train to Pakistan लिखा गया. जस्सड़ां वाली गाड़ी को Train from Pakistan कह सकते हैं. मैंने एक दिन यों ही अपनी सासु माँ से पूछा कि आपको जस्सड़ां वाली गाड़ी के बारे में कुछ जानकारी है तो बोली, “हाँ, है. हम उसी में आए थे”. इसके बाद जो कुछ उन्होंने बताया वह मैंने समेकित किया है. जब यह घटना घटी तब वे लगभग सोलह वर्ष की थीं.
ये जो थोड़े से लोग बच गए ये जैसे-तैसे पुल पार कर गए. दादी पुल पार करके नहीं आई. शायद मार डाली गई. अपनाई गई रणनीति के अनुसार युवा भाई प्रकाश को काट कर दरिया में फेंका गया. तीन साल के भाई महेश को जीवित दरिया में फेंका गया. माँ वीरो पर गंडासे से हमला हुआ. वह मुँह और सिर पर चोट खा कर गिर गई. लेकिन वह समय पीछे मुड़ कर मदद करने का नहीं था. जो पीछे छूट गया उसके मरा होने या ज़िंदा होने की सुध लेने की सुध किसी को नहीं थी. केवल एक दिशा का पता था कि उधर जाना है.
ध्यान देवी – अब यह मुस्कान भारत की है |
पिछली बार जब यह पोस्ट प्रकाशित हुई थी तब निम्नलिखित टिप्पणियाँ लिखी गई थीं.
21 comments:
- उस समय की न जाने कितनी ऐसी यादें हमारे बज़ुर्गों के दिलों को अब भी मथती होंगी। ये मार्मिक यादें किसी को भी हिला देने के लिये काफी हैं। हम से बाँटने के लिये धन्यवाद।
- hruduy vidaarak drushy .aur vaardate……hum aapkee maansik haalat samjh sakte hai…….
- मार्मिक यादें हम से बाँटने के लिये धन्यवाद।
- Above incident is very tragic. Luckily, Dhyan Deviji, her 20 days old Sister Kanta, brother Mahesh (3 years) and her mother were able to surive this stiff anguish but others were not so lucky. Innocent people are always a soft target for fanatic crowd. Sir, please give my sincere regards and feet touching to Dadi Dhyan Deviji for consoling her 20 days old sister and facing barbarism of fanatic people. Navin Bhoiya
- विभाजन और बाद की ऐसी घटनाएं बड़ी ह्रदय विदारक लगती हैं. ध्यान देवी जी के शोर्य को नमन.
- बहुत ही दर्द भरी दास्तान है… यह कैसी आज़ादी हम लाए थे…जिसने हमारे अपने छीन लिए..घर-बार छीन लिया और हमें शर्नारथी बना दिया ।
- सबसे पहले तो नानी जी को और उनके साहस को कोटि कोटि नमन! इतनी दुखभरी और मार्मिक परिस्तिथि में भी उनके लिए अपनी छोटी सी बहन की सुरक्षा एहम थी. आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ की आपने यह सच्ची और महत्वपूर्ण घटना हम सब के साथ बाँटी… शायद इन्हीं एतिहासिक कहानियों से ही हम कुछ सीख ले सकें…
- . आँख में आंसू आ गए ! अच्छा किया आपने ये जानकारी हमारे साथ बांटी। जरूरी है हम सब के लिए ये सब जानना । बहुत से लोगों की आँखें खुलेंगी। शायद न भी खुलें। –आभार। .
- दर्द भरी दास्तान
- हृदय विदारक… पिंजर का वर्णन जैसे एक बार दहला गया…क्या हालात रहे होंगे सोच पाना भी कठिन है.
- यह संस्मरण पढ़कर रोंगटे खड़े हो गए । धर्म और सम्प्रदाय के नाम पर स्त्रियाँ सबसे अधिक सताई जाती हैं । इससे बड़ी कायरता और क्या होगी । आपने यशपाल के झूठा -सच और खुशवन्त सिंह के ट्रेन टू पाकिस्तान की याद ताज़ा कर दी । बहुत ही स्तरीय पोस्ट है । आप इस तरह के अनुभव और भी लिखिए ।
- बंटवारे के समय की कुछ किताबें मैंने पढ़ी हैं लेकिन किसी किताब से अधिक प्रभावित किया आपके इस संस्मरण ने। मन द्रवित हो उठा…
- विभाजन का दिल दहलाने वाला लोमहर्षक सच आज भी हमें सोचने पर विवश कर देता है. उन सभी परिवारों की पीड़ा आज भी मन को उद्वेलित कर देती है. यही कामना है कि हमारे अतीत की छाया हमारे वर्तमान और आगत को धुंधला न कर दे, और जीवन के इस सफ़र मे नरक कुंडों की जगह हर जगह शीतल प्राण दायिनी झरनों के झुंड मिलें. और इस के लिए हम सभी मिलकर अपने अपने स्तरों पर जिंदगी के खूबसूरत ख्वाबों को बचाने का प्रयास करें. आभार. सादर, डोरोथी.
- विभाजन पर कई किताबें पढ़ी हैं लेकिन इसकी विभीषिका इतनी भयावह है कि कोई नई अनकही कहानी हो रोंगटे खड़ेकर जाती है।
- बहुत ही अच्छा लिखा है आप ने पढ़ कर ऐसा लग रहा था मन्नो पड़ नहीं रहे हों सुन रहै हों कोई कहानी जो की सच्ची है ….हर एक वाक्य एक द्रश्य की तरह आँखों मैं घूम रहा है जैसे कोई फिल्म चल रही हो सामने ….आगे भी लिखयेगा जितना जो कुछ भी याद हो आप को इस विषय मैं …..
- दीपावली के इस पावन पर्व पर आप सभी को सहृदय ढेर सारी शुभकामनाएं
- दास्ताँ पढकर आँखों में आसूं आ गए … धर्म/मज़हब किस तरह इंसान को जानवर बना देता है ये उसका एक उदाहरण है … आपको और आपके परिवार को दीपावाली की हार्दिक शुभकामनायें … इस पावन पर्व के अवसर में उम्मीद यही है कि इंसान फिर से इंसान होना सीख ले …
- बहुत ही मार्मिक …
- भारत की नींव इसी कड़वी सच्चाई पर है, ये पंजाब और वहां से आए लोग तो सतत याद रखेंगे। पर बड़े ही दु:ख की बात है कि बाकी लोग इसे भूलते जा रहे हैं। जीवन किस तरह चलता है इसकी जानकारी सभी को होनी चाहिए। संस्मरण हमेशा प्रस्तुत करते रहना चाहिए। अगर कुछ और संस्मरणों का संकलन हो सके तो अवश्य ही कीजिए। ये ऐतिहासिक दस्तावेज का दर्जा भी पा लेंगे।
- @ धन्यवाद राहुल. सुने हुए दो-एक संस्मरण और लिखना चाहूँगा. @ सभी टिप्पणीकारों को धन्यवाद. आपने जो महसूस किया वही मानव धर्म कहलाता है.
- जब भी किसी से इस मारकाट के बारे में सुनता हूं या पढ़ता हूं, तो दिल दहल जाता है…… चाहे यह दृश्य मैंने नहीं देखे, पर यह इतने हृदयविरादक हैं कि दिमाग में वैसी ही छवियां तैरने लगती हैं…. नवराही आचार्य