Category Archives: Meghs

Religion of Meghs – A deliberation – मेघों का धर्म- एक चिंतन


मेघ समुदाय में मेघों के धर्म के विषय पर कुछ कहना टेढ़ी खीर है. यदि किसी को अपने धर्म के बारे में ठीक-ठीक नहीं मालूम तो आप उससे क्या अपेक्षा रखेंगे.

यह विषय गहन गंभीर है क्योंकि- (1) धर्म व्यक्ति की नितांत व्यक्तिगत चीज़ है, इसे वह सब के सामने नहीं भी रखना चाहता. (2) भय के कारण वह सबके सामने वही रखता है जो लोक में प्रचलित है या कमोबेश स्वीकृत है.

विभिन्न लोगों की आपसी बातचीत से कुछ तथ्य सामने आए जिन्हें नीचे संजोया गया है.

1. मेघ अपने धर्म का इतिहास तो दूर वे अपना इतिहास तक नहीं जानते. जो थोड़ेबहुत जानते हैं वे टुकड़ों में जानते हैं. उलझन में पड़े हैं. बहुत से पढ़ेलिखे (literate) हैं लेकिन शिक्षित (educated)कम हैं. वे इस विषय में तर्क नहीं कर पाते और भावनाओं की मदद लेते हैं. ऐसा भी नहीं है कि तर्क योग्य बिंदुओं का अभाव है परंतु यह सत्य है कि शिक्षा और आर्थिक स्रोतों की कमी के कारण उनमें से अधिकतर उन तर्क बिंदुओं तक पहुँच नहीं पाते. दोष किसका है?

2. हालाँकि व्यक्ति के धर्म और लोक धर्म में कई बातें समान हो सकती हैं. उनके बारीक तानेबाने को बुद्धिजीवी क्रमवार समझने का प्रयास करते हैं. कबीर, महात्मा ज्योतिराव फुले और डॉ. अंबेडकर की परंपरा में कइयों ने यह कार्य किया है लेकिन हम उनकी वाणी पढ़सुना कर धन्य हो जाते हैं. उनकी कही बातों में छिपे इतिहास और परंपरा को समझने का प्रयास नहीं करते.


3. एक विशेष उल्लेख यहाँ कर रहा हूँ. मार्च, 1903 में आर्यसमाज ने 200 मेघों का शुद्धीकरण (?) करके उन्हें हिंदू दायरे में लाने का पहला प्रयास किया. बाद में बहुत से मेघों का शुद्धीकरणकिया गया. मेघों की गणना हिंदुओं में करने से स्यालकोट के उस क्षेत्र में मुस्लिमों की संख्या 50 प्रतिशत से कम हो गई इससे हिंदुओं के नाम पर आर्यसमाज/हिंदुओं को अंग्रेज़ों से काफी लाभ मिले थे. लेकिन यह सवाल स्वाभाविक उठ खड़ा होता है कि आज की तारीख में कितने मेघ आर्यसमाजी हैं और कि आर्यसमाज के एजेंडा में मेघ कहाँ हैं. जो मेघ पाकिस्तान में रह गए थे उनमें से काफ़ी इस्लाम को अपना चुके हैं. जो अभी भी हिंदू हैं वे अपना हाल बताना चाहें भी तो सीमा पार से उनकी आवाज़ कम ही आती है. वे अल्पसंख्यक हैं और अन्य अल्पसंख्यकों की भाँति अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं. पाकिस्तान में रह गए मेघवालों और मेघवारों का भी यही हाल है. राजस्थान में रह रहे मेघवाल अपने एक पूर्वज बाबा रामदेव के मंदिरों में जाते हैं. गुजरात के मेघवारों ने अपने पूर्वज मातंग ऋषि के बारमतिपंथ को धर्म के रूप में सहेज कर रखा है और उनके अपने मंदिर हैं, पाकिस्तान में भी.

Baba Ramdev

Dhani Matang Dev












4. पंजाब के जो मेघ भारत विभाजन के बाद भारत में आ गए वे आर्यसमाज के एजेंडा से बाहर हो गए. राजनीतिक रूप से यहाँ हिंदुओं के रूप में उनकी कोई ज़रूरत नहीं रह गई थी. साथ ही वे कई अन्य धर्मों/पंथों में बँट गए जैसे राधास्वामी, निरंकारी, ब्राह्मणीकल सनातन धर्म, सिख धर्म, ईसाई धर्म, विभिन्न गुरुओं के डेरेगद्दियाँ आदि. सच्चाई यह है कि जिसने भी उन्हें मानवता और समानताका बोर्ड दिखाया वे उसकी ओर पाँच रुपया और हार लेकर दौड़ पड़े. इससे उनका सामाजिक स्तर तो क्या बदलना था, धार्मिक दृष्टि से उनकी अलग पहचान की संभावना भी पतली पड़ गई. राजनीतिक पार्टियाँ अपने वोटों की गिनती करते समय हिंदुओं, सिखों, मुसलमानों और ईसाइयों के वोट गिनने के बाद बाकियों के वोटोमें मेघों को गिन भर लेती हैं. विशेष महत्व नहीं देतीं. कारण यह कि मेघों ने सामूहिक निर्णय कम ही लिए हैं.


5. मेघ जानतेबूझते हैं कि मंदिरों में उनके पुरखों के जाने पर मनाही थी. वे आज भी धर्म के भय से उबर नहीं पाते. इस स्थिति पर उन्हें ख़ुद पर क्रोध तो आता है लेकिन वे तर्कहीन पौराणिक कथाओं से प्रभावित हैं. वे देवीदेवताओं के मंदिरों की ओर आकर्षित हैं.
कला और धर्म के मेल से असीमित कृतियाँ बन सकती हैं. उससे कहीं धर्म तो गायब नहीं हो जाता?

6. वे मंदिरों में जाना चाहते हैं लेकिन ब्राह्मणीकल धर्म के प्रति आशंकित भी हैं. गुलामी के दौर में अत्यधिक जातीय हिंसा झेलने और अशिक्षा के कारण वे जातपात को भुलाने की प्रबल इच्छा रखते हैं लेकिन यह कैसे हो. जातिवाद को खत्म करने की इच्छा दलितों में है क्योंकि वे इससे पीड़ित हैं. गैर दलित जातियाँ इस बारे में गंभीर नहीं हैं.


7. मेघों की नई पीढ़ी कबीर की ओर झुकने लगी है और बुद्धिज़्म को एक विकल्प के रूप में जानने लगी है बिना जाने कि कबीर और बुद्ध की शिक्षाओं में ग़ज़ब की समानता है. देखने में आया है कि यह पीढ़ी अगर मंदिरों में जाने लगी है तो साथ ही वहाँ के कर्मकांडों और वहाँ से फैलाए जा रहे अंधविश्वासों के प्रति जागरूक है. वह मूर्तियों को दूधदही चढ़ाने, दूध पिलाने आदि के आडंबर के विरोध में है.

8. युवा मेघ पूछते हैं कि शूद्र ‘खास अपने’ मंदिर क्यों नहीं बनाते? शायद वे नहीं जानते कि वे देवीदेवताओं की मूर्तियों वाले अपने खास मंदिर बना लेंगे (कबीर मंदिर को छोड़) तो अन्य जातियों के लोग विशेषकर ब्राह्मण उन पर कब्ज़ा जमाने के लिए आ जाएँगे क्योंकि मंदरों में धन लगातार टपकता है. यह एक भरापूरा व्यवसाय है. अपने समुदाय द्वारा बनाए गए कबीर मंदिरों में चढ़ा पैसा मेघ अपने उत्थान के लिए प्रयोग में ला सकते हैं. वैसे उन मेघों की संख्या काफी है जो इष्ट के रूप में कबीर को सब कुछ देने वाला मानते हैं और उससे शक्ति ग्रहण करते हैं.

9. कुछ मेघ इस अनुभव से गुज़रे हैं कि कई मंदिरों और धार्मिक स्थलों का प्रयोग जातीय भेदभाव फैलाने के लिए होने दिया जाता है. अतः वे भगवान को तो मानते हैं लेकिन इसके लिए किसी मंदिर में जाने की अनिवार्यता महसूस नहीं करते न ही वे ऐसे मंदिरों में दान देना चाहते हैं. वे समुदाय के लिए या कबीर मंदिर के लिए दान देने में विश्वास रखते हैं. तथाकथित हिंदू धर्म ग्रंथों (जो ब्राह्मणों द्वारा लिखे हैं) पर उनका विश्वास समाप्त हो रहा है क्योंकि ये ग्रंथ जातिवाद बढ़ाने में सहायक सिद्ध हो रहे हैं.

10. अंत में यह कहना पर्याप्त होगा कि मेघों में संशयवादी विचारधारा के लोग भी हैं जो भगवान, मंदिर, धर्मग्रंथों, धार्मिक प्रतीकों आदि की आवश्यकता महसूस नहीं करते बल्कि देश के संविधान पर भरोसा रखते हैं.



(श्री सतीश भगत द्वारा फेसबुक पर 24-10-2013 को आयोजित बहस इसका मुख्य आधार है)

MEGHnet


Megh Bhagats of J&K struggle for survival

(1)

Megh Bhagat – मेघ भगत

Their habitats उनके घर

Their capital उनकी पूँजी
Their way to development उनका विकास मार्ग

Their roofs उनकी छतें

They compete with heavy weight cloth industry
भारी कपड़ा उद्योग के साथ प्रतियोगिता
Below you can see a community Hall being constructed for them. Hiranagar B D O block is constructing this community Hall at village Ladyal Hiranagar, S C Mohalla for the past about 12 years.
A house of Bhagats in the heart of Samba city

(2)

Their displacement due to terrorism

घाटी से विस्थापित कश्मीरी पंडितों के लिए सरकार ने सरकारी भवनों के दरवाज़े खोल दिए थे लेकिन आतंकवाद के कारण कई क्षेत्रों से विस्थापित मेघों की ओर ध्यान देने वाला कोई नहीं. इनकी कहानी एक गुमनामी की कहानी है. गरीबी में रह रहे इस समुदाय के लोग कारे बेगार कानून की पीड़ा भुगत चुके हैं और कश्मीरियों और जम्मू के डोगरों की संपन्नता के पीछे इनका खून-पसीना साफ़ चमकता है. 

There are many more Megh Bhagats from Kishatwar now living in Kathua District who had to leave their homes and land. Now they have no land to cultivate, no permanent work or employment. They have settled in village Bhalua Budhi, Barnoti, Nagri and near Sakta Chack. There are about 30 families. Just look at their conditions.

(Contributed by Sh. Tara Chand Bhagat of Udhampur via Face Book)

614th Anniversary of Sant Satguru Kabir – संत सत्गुरु कबीर का 614वाँ प्रकाशोत्सव

मेघ भगतों की सामाजिक संस्था भगत महासभा (Bhagat Mahasabha), जम्मू पिछले चार वर्ष से कबीर का प्रकाशोत्सव पैरेड ग्राऊँड, जम्मू में मनाती आ रही है. वर्ष 2010 में मैंने जम्मू में 612वें प्रकाशोत्सव का कार्यक्रम देखा था. मेघ भगतों का इतना बड़ा सामाजिक-धार्मिक समागम उससे पूर्व मैंने कहीं नहीं देखा था. 03-07-2010 को MEGHnet की यह पहली पोस्ट बनी. इससे पूर्व 10-06-2012 से मैं Megh Bhagat ब्लॉग लिख रहा था. (इसी बहाने याद आया है कि मेरी ब्लॉगिंग के दो साल होने को आए हैं.)
इस वर्ष भी जम्मू का पारा 44-45 डिग्री सेल्सियस के आसपास चल रहा था और आयोजन की तिथि (04-06-2012) की सूचना मिल चुकी थी. डॉ. ध्यान सिंह से बात हुई और हम दोनों जम्मू पहुँचे. वे इस कार्यक्रम को देखने के लिए बहुत उत्सुक थे. 03-06-2012 को सायं हम पैरेड ग्राऊँड में गए जहाँ भगत महासभा के कार्यकर्ता आवश्यक प्रबंध करा रहे थे. डॉ. ध्यान सिंह शोधकर्ता हैं. पैरेड ग्राऊँड में वे अपना कार्य जारी रखे हुए थे. वे लोगों से बातचीत करते रहे, सवाल पूछते रहे और जानकारी साझा करते रहे. उनका एक प्रश्न बहुतों के लिए चौंकाने वाला था जब उन्होंने पूछा कि आप कब से कबीरपंथी हैं. उनके इस कठिन प्रश्न के कई उत्तर आए जिन्हें किसी और अवसर पर लिखने के लिए रख छोड़ा है.

यह देख कर खुशी होती है कि भगत महासभा, जम्मू के कार्यकर्ता युवा हैं. जम्मू क्षेत्र में डॉ. राजेश भगत के नेतृत्व में एक बहुत बढ़िया टीम मेघों की सामाजिक और धार्मिक एकता के लिए सक्रिय है. यह लग़ातार काम कर रही है. सभी कार्यवाहियाँ टीम की भावना के साथ पूरी की जाती हैं. मेरी जानकारी के अनुसार, मेघों के किसी भी अन्य सामाजिक संगठन की अपेक्षा भगत महासभा का यह यूनिट अधिक कार्य कर पाया है और गाँव-गाँव में जा कर, लोगों से रूबरू हो कर एक वर्ष में बीसियों कार्यक्रम करने में सफल हुआ है. इसका मिशन मेघ भगतों को एक मज़बूत मंच देना है. प्राप्त अनुभव के साथ-साथ स्पष्ट दृष्टिकोण से यह टीम अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर है.   

04-06-2012 को मुख्य कार्यक्रम था. तवी नदी गर्मी से गड़क रही थी और पैरेड ग्राऊँड तप रहा था. सुबह 10.00 बजे तक लोग आने शुरू हुए. डेढ़ घंटे में पंडाल भरने लगा. फिर जम्मू के आसपास के स्थानों/गाँवों से लोग पहुँचने लगे. तीन से चार हज़ार के आसपास लोग एकत्रित हो चुके थे. किसी सामाजिक या धार्मिक कार्यक्रम में मेघों का इतनी संख्या में पहुँचना और उन्हें देखना सुखद अनुभव था. (उल्लेखनीय है कि मेघों के अन्य संगठनों ने इस अवसर पर अलग-अलग स्थानों पर अपने कार्यक्रम आयोजित किए थे.)
इस बार भगत महासभा ने सत्संग और भजनों के कार्यक्रम के अतिरिक्त 90% से अधिक अंक पाने वाले होनहार छात्र-छात्राओं को मुख्य अतिथि और जम्मू-कश्मीर के उप मुख्यमंत्री श्री तारा चंद के कर कमलों से ट्राफियाँ दिलवा कर उनका सम्मान किया. ऐसे ही केएएस और आईएएस की परीक्षाएँ पास करने वाले युवाओं का भी सम्मान किया गया. इन युवाओं का उत्साह और आत्मविश्वास देखने योग्य था.
इस मौके पर डॉ. ध्यान सिंह, के मेघ भगतों (कबीरपंथियों) पर लिखे गए पहले शोधग्रंथ- पंजाब में कबीरपंथ का उद्भव और विकास– के महत्व को मान्यता देते हुए भगत महासभा ने उन्हें उप मुख्यमंत्री के कर कमलों से सम्मानित किया. डॉ. ध्यान सिंह को कई फोरम सम्मानित कर चुके हैं लेकिन उनके अपने समुदाय की ओर से किया गया यह सम्मान अपनी तरह का पहला था. जहाँ इस सम्मान का डॉ. ध्यान सिंह के लिए महत्व है, वहीं भगत महासभा, जम्मू बधाई की पात्र है और वह अपनी इस पहल पर गर्व कर सकेगी.
भगत महासभा ने उप मुख्यमंत्री महोदय से अपने धार्मिक-सामाजिक कार्यों और विकास के लिए माँगें रखीं. ईश्वर से प्रार्थना है और पूर्ण आशा है कि सरकारी मदद मिल जाएगी.

कई बातें शब्दों से बेहतर चित्र कहते हैं. इसलिए चित्रों से सुनिए :-

 
 
 
 
 
 
 
 
 

MEGHnet