चाटी में रखा धर्म
बड़ीईईईई मुश्किल है. मिस्टर मेघ से बात करना ख़तरे से ख़ाली नहीं. वे हमेशा ज़मीनी बात कहें यह ज़रूरी नहीं लेकिन वे कड़ुवी बातें कहेंगे यह तय है. इस बार जब वे भार्गव कैंप (मेघ नगर) की गली में शहतूत के नीचे बिशना टी-शाप पर मिले तो जैसा कि होता आया है, विषय खिसक कर ऐसी जगह पहुँचा जिसका मुझे अनुमान नहीं था. मैंने ही शुरू किया था-
मैं– सर जीईईईई, जय हिंदअअ. कैसे हैं.
मि. मेघ– सुना भई, तेरी दोनों टाँगे चल रही हैं न?
मैं– क्यों सर जी, मेरी टाँग को क्या हुआ.
मि. मेघ– पिछली बार तेरे इतिहास की टाँग तोड़ दी थी मैंने, इस लिए पूछा. हा हा हा हा हा हा….
मैं– (उदास स्वर में) हाँ अंकल जी. अब हमें बिना टाँग से गुज़ारा करना पड़ेगा क्योंकि दूसरी भी टूटती नज़र आ रही है. बुरा न मनाना सर जी, हमारा इतिहास तो है नहीं, धर्म भी रसातल में जा रहा है.
मि. मेघ– क्या हुआ?बड़ा दुखी नज़र आ रहा है. तेरा सनातन धर्म तो आर्यसमाज है. उसकी बैसाखी टूट गई क्या?लगता है गायत्री मंत्र ने बेड़ा पार नहीं किया.
मैं– उस बैसाखी को टूटे तो 60 साल हो गए. अब समस्या बहुत गंभीर हो गई है.
मि. मेघ– ओह, तो तेरी समस्या धर्म है. तू खुद को हिंदू कहता है और हिंदू तेरे को हिंदू नहीं मानते. यही तेरी समस्या है तो दफ़ा हो जा.
मैं– क्या बात करते हो अंकल जी!!हम हिंदू नहीं तो फिर और क्या हैं? यही न कि हिंदुओं में सबसे नीचे रखे हुए हैं.
मि. मेघ– खोत्तेया, सब से नीचे रह कर तू खुश है. तभी तो तू ‘महान’ है उल्लुआ.
मैं– तो क्या आप हिंदू नहीं हो?
मि. मेघ– हूँ. लेकिन एक अलग मायने में. होशियार रहता हूँ कि बीजेपी और आरएसएस के झाँसे में न आऊँ. ये तो निरा धोखा हैं.
मैं– यह तो आपमें कांग्रेस का भूत बोल रहा है. आप आधे तीतर और आधे बटेर हो चुके हो.
मि. मेघ– तू सही कह रहा है. पर तू मेरी छोड़, अपनी बता. चाय पीनी हो तो बात कर.
(चाय से बातचीत के दरवाज़े खुलते हैं. बिशना को कड़क चाय का आर्डर किया. कैरोसिन का स्टोव शूँ-शूँ करने लगा. भाप के साथ पत्ती की महक आने लगी.
मि. मेघ– चल, अब शुरू हो जा. चाय बन रही है.
मैं– अंकल जी, आपने भी सुना होगा कि बहुत से मेघ ईसाई बन गए हैं.
मि. मेघ– और तेरे पेट में दर्द उठता होगा?हैं?यदि तेरी यही समस्या है तो इसमें मेरी कोई दिलचस्पी नहीं. ओए बिशना आर्डर कैंसल कर.
मैं– बिशना आर्डर कैंसल नहीं होगा….मेघ जी यह बिरादरी की समस्या है. हम हैं ही कितने? पहले ही एकता की कमी है और हम और ज़्यादा बँट जाएँगे.
मि. मेघ– अच्छा…अच्छा…अच्छा. तो तुझे यह ग़म खाए जा रहा है!अच्छा यह बता कि तुझे यह ग़म कब से खा रहा है? जब से मेघ सिख, आर्य समाजी बने या मुसलमान हुए या फिर राधास्वामिए बन गए? अच्छा यह बता कि सिख, आर्यसमाजी, मुसलमान,राधास्वामिए या ईसाई बनने से पहले तुम्हारा कोई धर्म था?था तो कौन सा था?चल बता…
मैं– मैं नहीं जानता, बिल्कुल.
मि. मेघ– तो फिर दुखी क्यों होता है?तू कुछ नहीं है और ख़ुद को समझता भी है कि कुछ है. मतलब तू पहले कुछ भी नहीं था, और अब कुछ बन गया है. जो बनेगा, वो बँटेगा. इसमें कोई नई बात है क्या?तुझे यह तक तो पता नहीं कि तेरा पुराना धर्म क्या है. तो क्या तेरे पुरखे बिना धर्म के जीते आ रहे थे?डेरे-डेरियाँ क्या ऐसे ही बन गए? अक्ल की बात किया कर यार.
मैं– मैंने तो कहीं इसके बारे में पढ़ा नहीं.
मि. मेघ– मैं बताता हूँ. तेरा धर्म है- अनपढ़ता. (विरक्त हो कर) सारी उम्र ऐसे ही कट गई. बाकी भी कट जाएगी.
मैं– (खीझ कर) तो फिर आप बताओ न. क्या था धर्म हमारा?
मि. मेघ– तेरे मुँह में तो बस कोई खीर बना कर डाल दे. ख़ुद तो कुछ करना ही न पड़े. पुत्तर, स्टेट लाईब्रेरी में जाया कर. चल तेरे को एक शार्ट कट बता देता हूँ. कुछ न पढ़ सके तो अंबेडकर को पढ़ ले.
मैं– यूँ ही मारे जा रहे हो. कुछ बताओ तो सही. अंबेडकर के बारे में हो सकता है मैं कुछ जानता होऊँ.
मि. मेघ– अच्छा तो यह बता कि अंबेडकर का धर्म क्या था?
मैं– वो हिंदू थे, और क्या.
मि. मेघ– लक्ख लानत..
मैं– क्यों?
मि. मेघ– वे बौध थे.
मैं– (अचानक याद आने पर) हाँ-हाँ-हाँ-हाँ-हाँ, मैंने सुना था.
मि. मेघ– (चुभती आवाज़ में) बौध धर्म के नाम से अब तेरे पेट में फिर से दर्द उठ रहा होगा. नहीं? बिशना से तू चुल्लू भर पानी ले ले और डूब कर मर जा.
(बिशना की आँखें चमक उठीं)
बिशना– हंबेडकर ने कहा था चाचा, कि मैं नरक में पैदा तो हो गया था पर नरक में मरूँगा नहीं.
मि. मेघ– सुनलिया? जो तू नहीं जानता वह बिशना जानता है. अब धरती पर तेरे मरने के लिए कोई जगह नहीं. तू सिर्फ़ बिशना की चाय में डूब कर मर सकता है. चाय पकड़ ले…..और आखिरी बार समझ ले कि धर्म एक ऐसा नकली दही है जिसमें से कोई भी मधाणी मक्खन नहीं निकाल सकती.तू दुखी मत हुआ कर, मेघ बहुत स्याने लोग हैं इसका विश्वास रख.
मिस्टर मेघ कहीं भी, कुछ भी कह सकते हैं. लेकिन उन्होंने आख़िर तक मेघों के ईसाई बनने पर अपनी ओर से कुछ नहीं कहा. मिस्टर मेघ हैं ही मेघ, ऊँची सोच वाले, एकदम आसमानी. कोई कुछ भी बने, वे धर्म को लेकर परेशान नहीं होते. ईसाई मिशनरियों, आरएसएस ने शायद बरास्ता मि. मेघ के मेघों को जान लिया है. मेघ ईसाई भी बन रहे हैं और बुड्डा मल ग्रऊँड में आरएसएस की शाखा भी लगने लगी है. बहुत ख़ूब और जय हो !!
लेकिन समझ नहीं पा रहा हूँ कि मेघ एकता की बात पर मि. मेघ मुझे गोली क्यों दे गए?
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