Category Archives: Unity

Why there is no unity in Meghs-3 – मेघों में एकता क्यों नहीं होती-3


मेघों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि इनके समुदाय का अपना कोई एक धर्म नहीं है. वे इधर-उधर धार्मिक सहारा ढूँढते-ढूँढते विभिन्न धर्मों में बँट गए. 

सामाजिक संघर्ष के लिए न उनके पास पर्याप्त शिक्षा है, न एकता और न ही इच्छा शक्ति. संघर्ष के रास्ते पर दो कदम चलते ही उन्हें निराशा घेरने लगती है और ईश्वर की याद सताने लगती है. वे नहीं जानते कि ईश्वर नाम के आइडिया का प्रयोग बिरादरी के विकास के लिए कैसे किया जाता है.

मेघ समुदाय के लोग एक धर्म के अनुयायी नहीं बन सके. जिसने जिधर आकर्षित किया उधर हो लिए. उनमें एकाधिक धर्मों के प्रति झुकाव पैदा हो गया. धर्म (अच्छे गुण) व्यक्ति की नितांत अपनी चीज़ होती है. लेकिन एक आम पढ़ा-लिखा मेघ पता नहीं क्यों अपने बाहरी धर्म और इष्ट के प्रति अत्यधिक मोह में फँस जाता है. अपने गुरु को सबसे ऊपर मानता है और बाकी गुरुओं और उनके चेलों को आधे-अधूरे ज्ञान वाला मानता है. एक तरह से वह खुद को सर्वश्रेष्ठ समझता है और अन्य के साथ मिल कर चलने में उसे कठिनाई होती है. 

यही बात राजनीतिक दलों के मामले में भी लागू होती है. मेघ किसी के हो गए तो हो गए. कुछ कांग्रेस से चिपट गए तो कुछ बीजेपी से लिपट गए. बिरादरी में एकता और राजनीतिक जागरूकता की कमी है.

सामाजिक-राजनीतिक संघर्ष का रास्ता सब के साथ मिल कर चलने वाला होता है, अन्यथा इस बात का डर रहता है कि संघर्ष में लगी मानव शक्ति और उसकी भावना कहीं बिखर न जाए. शिक्षित समुदायों के लोग राजनीतिक शक्ति प्राप्त करने के लिए धर्म, गोत्र, गुरु, देवी-देवता, माता, आदि को भुला कर अपने संसाधन लक्ष्य प्राप्ति के प्रयास में झोंक देते हैं. वे जानते हैं कि सांसारिक प्रगति के लिए जो कार्य राजनीति कर सकती है वह ईश्वर भी नहीं कर सकता. इस दृष्टि से मेघ समुदाय को अभी बहुत कुछ सीखना है.

पिछले दिनों मेघों की संगठनात्मक गतिविधियाँ बढ़ी हैं जो एक अच्छा संकेत दे गई हैं.

सामाजिक और धार्मिक क्रांति के बाद ही राजनीतिक क्रांति आती है.- डॉ. अंबेडकर

Unity of SCs, STs and OBCs – अ.जा., अ.ज.जा. और पिछड़ी जातियों की एकता


कई विद्वानों ने इस विषय पर विचार-विमर्ष किया है विशेषकर बहुजन हिताय दर्शन के तहत जिसका बहुत महत्व है. मैंने भी अपने चिट्ठों में इस विचार-धारा के समर्थन में लिखा है.

लेकिन जब समाज की व्यावहारिक स्थिति की बात आती है तो दर्शन अलग खड़ा दिखता है और वस्तुस्थिति अलग.
यह ऐतिहासिक तथ्य है कि स्वयं को सुरक्षित रखते हुए ब्राह्मणों ने दलित जातियों और जन जातियों पर सीधे हमले स्वयं तो कम ही किए हैं. अधिकतर हमले अन्य पिछड़ी जातियों के लोग ही करते आए हैं. यह ब्राह्मणवाद का ऊंच-नीचवादी हथकंडा है जो भारत के मूलनिवासियों को बाँटने और उन्हें एक-दूसरे के हाथों मरवाने में सफल होता आया है.
यही फैक्टर है जो आज अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ी जातियों की एकता की संभावना पर प्रश्न चिह्न लगाता है. देश के दूर-दराज़ के गाँवों में फैली पुरानी और जातिगत हिंसक प्रवृत्तियाँ इस एकता को रोकने के लिए हमेशा कटिबद्ध रहती हैं. कुछ राज्यों में अन्य पिछड़ी जातियाँ अब तेज़ी से सत्ता की ओर बढ़ रही हैं और अनुसूचित जातियाँ तथा अनुसूचित जनजातियाँ उनके मुँह की ओर ताक रही हैं कि शायद बुलावा आ जाए. उधर अन्य पिछड़ी जातियाँ इनकी ओर देख तक नहीं रहीं.
देखते हैं स्थिति कैसे बदलेगी. इसे बदलना तो होगा.

Indian weavers – a unique community – भारतीय जुलाहे – एक अद्भुत समुदाय


क्या कोई व्यक्ति अपनी आय के साधन को थाली में रख कर किसी अन्य के हाथ में सौंप देता है? हाँभारत के जुलाहों में यह बात है. उन्होंने उन सरकारी नीतियों के विरुद्ध संगठित आंदोलन नहीं चलाया जिनकी मदद से देश भर के मेघवंशी जुलाहों, बुनकरों, अंसारियों का व्यवसाय तबाह करके किन्हीं अन्य हाथों में सौंप दिया गया. एक करोड़ जुलाहे रोज़गार से बाहर हो गए.

भाई ग़रीब से अकिंचन हो जाने से बेहतर है कि ग़रीब से बेहतर कुछ बना जाए.

अंग्रेज सौदागर भारतीय कारीगरों को लुटते थे

Bharatiya Shudra Sangh (BSS) – भारतीय शूद्र संघ

भारत की दलित जातियाँ अपनी परंपरागत जाति पहचान से हटने के प्रयास करती रहीं हैं. इस बात को भारत का जातिगत पूर्वाग्रह भली-भाँति जानता है. मूलतः शूद्र के नाम से जानी जाती ये जातियाँ अपनी पहचान को लेकर बहुत कसमसाहट की स्थिति में हैं.

व्यक्ति जानता है कि यदि वह अपना कोई जातिनिरपेक्ष सेक्युलरसा नाम रख लेता है जैसे भारत भूषण या दशरथ कुमार या अर्जुन तो उसे हर दिन कोई न कोई व्यक्ति अवश्य पूछेगा कि भाई साहब आप अपना पूरा नाम बताएँगे? तो वह अपनी पहचान छिपाने के लिए दूसरी कोशिश करते हुए कहेगा, “भारत भूषण भारद्वाज. दूसरा व्यक्ति कहेगा, “यह तो ऋषि गोत्र हुआ. पूरा नाम…”. दो-चार सवालों के बाद उत्तर देने वाले व्यक्ति का स्वाभिमान आहत होने लगता है. वह जानता है कि उसकी जाति पहचान ढूँढने वाला व्यक्ति उसे हानि पहुँचाने वाला है.
अपनी पहचान के कारण संकट से गुज़र रही इन जातियों के सदस्यों ने अपने नाम के साथ सिंह, चौधरी, शर्मा, वर्मा, राजपूत, अग्रवाल, गुप्ता, मल्होत्रा, पंडित सब कुछ लगाया. लेकिन संकट टलता नज़र नहीं आता. मैंने अपने जीवन में इसका सरल हल निकाला कि नाम बताने के तुरत बाद मैं कह देता था कि मेरी जाति जुलाहा है, कश्मीरी जुलाहा (तर्ज़ वही रहती थी- My name is bond, James bond). :)) इससे पूछने वाले के प्रश्न शांत हो जाते थे और उसके मन को पढ़ने में मुझे भी आसानी हो जाती थी. इस तरीके से मुझे बहुत से बढ़िया इंसानों को पहचानने में मदद मिली.
अभी हाल ही में एक कार्यक्रम के दौरान भारतीय शूद्र संघके राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री प्रीतम सिंह कुलवंशी से बात हुई और उन्होंने एक पुस्तिका मुझे थमाते हुए कहा कि इसे देखिएगा. इसमें उल्लिखित बातों से बहुत-सी आशंकाओं का समाधान हो जाएगा. वह पुस्तिका मैंने ध्यान से पढ़ी है और उसका सार यहाँ लिख रहा हूँ.
भारतीय शूद्र संघ मिशन
इस पुस्तिका में स्पष्ट लिखा गया है कि भारतीय शूद्र संघ, संघ नहीं एक मिशन है. इसमें मोहन जोदड़ो और हड़प्पा सभ्यताओं से लेकर आधुनिक युग तक भारत के मूलनिवासियों का बहुत ही संक्षिप्त इतिहास दिया गया है जो बहुत प्रभावकारी है. इसी के दूसरे पक्ष के तौर पर शूद्र समाज के सदस्य व्यक्ति की अस्मिता (पहचान) की बात उठाई गई है. इस संस्था का मिशन यह है कि शूद्र समाज के हर बुद्धिजीवी को एकजुट होकर स्वाभिमान के लिए प्रयास और संघर्ष करना पड़ेगा. अन्य बातों के साथ-साथ इस मिशन का उद्देश्य इस बात का प्रचार करना भी है कि शूद्र समाज के व्यक्ति अपने नाम के पूरक के तौर पर इन नामों का प्रयोग करें- भारती, भारतीय, रवि, अंबेडकर, भागवत, वैष्णव, सूर्यवंशी, कुलवंशी, नागवंशी, रंजन, भास्कर इत्यादि. उल्लेखनीय है कि ये नाम दलितों के साथ पहले भी जुड़े हैं. शायद यह मिशन ऐसे नामों की शार्ट लिस्ट (छोटी सूची) तैयार करना चाहता है या स्पष्ट पहचान वाले शब्दों को बढ़ावा देना चाहता है.
मिशन द्वारा वितरित पुस्तिका में बहुत से बिंदु हैं जिन पर गंभीर विचार मंथन आवश्यक है. दलितों के कई समूह सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक संगठनों में बँट कर अलग-अलग कार्य कर रहे हैं. उनमें से कई बहुत बड़े स्तर पर सक्रिय हैं. उनका एक गठबंधन (confederation) तैयार करने की आवश्यकता है. सभी समूह अपना-अपना कार्य करें साथ ही अपना एक महासंघ गठित करें. इससे सुदृढ़ संगठन और एक साझा अनुशासन निर्मित होगा.
समाज के विभिन्न वर्गों में सदियों से चला आ रहा और घर-घर में फैला कर्मचारी-नियोक्ताका संबंध एक अविरल प्रक्रिया है. ऐसे सामाजिक संबंध का विकास तो होता है लेकिन यह अपना समय लेता है. यह मिशन इस तथ्य को स्पष्ट स्वीकारता है. 

We exist in songs – गीतों में हम हैं.

कई वर्ष पहले मैंने मेघ शब्द इंटरनेट पर ढूँढा. मंशा थी कि बिरादरी के बारे में शायद कुछ जानकारी मिले. मगर कुछ नहीं मिला. मेघ सरनेम वाले एक अमरीकन की वेबसाइट मिली. वह उद्योगपति था. लेकिन वह काफी गोरा था. हो सकता है वह हमारा ही बंदा आदमी हो :))  एक इटेलियन एक्ट्रेस मिली जिसके नाम के साथ मेघ(नेट) लगा था. शायद वह हमारी ही बंदी हो. भगत ढूँढा तो कबीर और अन्य संतों के अलावा जालंधर के एक सज्जन श्री राजकुमार का एक ब्लॉग मिला जिसका नाम था भगत शादी डॉट कॉम’. उनसे बात हुई और फिर…..आज आप ढूँढ कर देखिए दोनों शब्द, ‘मेघ-भगत’ बहुतायत से आपको इंटरनेट पर मिल जाएँगे.
कुछ वर्ष पहले तक इस बात की भी तकलीफ़ होती थी कि हम साहित्य में कहीं नही थे. एक दिन खोज करते हुए अचानक एक कहानी मिली ज़ख़्मों के रास्ते से जिसे एक कथाकार देसराज काली ने लिखा था. इसमें मेघ भगत और भार्गव कैंप का स्पष्ट उल्लेख था. रूह को बहुत आराम आया कि चलो भई हम साहित्य में कहीं तो मिले.

इस बीच वियेना में हुई चमार समुदाय के गुरु की हत्या और जालंधर के पास गाँव तलहण की घटनाओं ने चमार समुदाय के स्वाभिमान को जगा दिया और वे कई सुंदर गीतों के साथ संगीत की धमक लेकर आ गए. ‘रविदासिया धर्म’ की स्थापना हो गई और ये गर्वीले सड़कों पर उतर कर कहने लगे – गर्व से कहो हम चमार हैं. इस बात से दिल पूछने लगा कि भई हम मेघ भगत गीत-संगीत की धमक में कहाँ हैं.

तभी एक गीत सुनाई दिया- मेघो कर लो एका, भगतो कर लो एका. मज़ा आ गया. इसे रमेश कासिम ने गाया था…….और अभी हाल ही में एक गीत सुनने को मिला- असीं भगताँ दे मुंडे, साडी वखरी ए टौर (हम भगतों के बेटे, हमारा अलग है स्टाइल)जिसे अमित देव ने गाया है. वाह क्या बात है !!
तो भई हम साहित्य और संगीत में आ गए हैं. ये तीनों लिंक मैंने सहेज लिए हैं.

श्री देसराज काली