ऑल इंडिया मेघ सभा, चंडीगढ़ द्वारा प्रकाशित की जाने वाली पत्रिका ‘मेघ चेतना’ का निरंतर प्रकाशन एक प्रशंसनीय कार्य है. इस प्रकार की सामुदायिक पत्रिकाओं से व्यावसायिक पत्रिकाओं जैसी आकर्षक और अदोष सामग्री की आशा नहीं की जाती लेकिन इस बात की अपेक्षा की जा सकती है वे समुदाय की गतिविधियों का निर्दोष आईना अवश्य बने.
कल ही इस पत्रिका के प्रधान संपादक श्री निर्मल चंदर भगत से इसका मई-जुलाई 2012 का अंक मिला. इस अंक में प्रकाशित ‘संपादकीय’ इस पत्रिका की लंबी यात्रा का एक मील का पत्थर है.
देश भर में ‘मेघ ऋषि’ को मानने वाली संतानें करोड़ों हैं लेकिन भौगोलिक, ऐतिहासिक और सामाजिक कारणों से वे सदियों से एक दूसरे को पहचानने में भूल करती आई हैं. कभी जाति के नाम पर, कभी भाषा और व्यवसाय के नाम पर वे बँटी हुई दिखती हैं. शिक्षा और नई जानकारियाँ प्राप्त होने के बाद अब उनकी नज़दीकियाँ और मेल-मिलाप बढ़ा है.
संपादकीय – इस चित्र पर क्लिक करके पढ़ा जा सकता है. |
उक्त संपादकीय को मैं इसलिए महत्वपूर्ण मानता हूँ कि इस पत्रिका को पढ़ने वाले पंजाब के मेघ भगत अभी भी इस तथ्य को पचाने में कठिनाई महसूस करेंगे कि जम्मू-कश्मीर के मेघ, राजस्थान के मेघवाल, मेघबंसी, बलाई, बुनकर, मेहरा आदि और गुजरात के मेघवार मूलरूप से एक ही वंश के हैं जो मेघ ऋषि को अपना मूल मानते हैं. इनकी कई शाखाएँ भारत के अनेक भागों में बसी हैं और एक-दूसरे से अनजान हैं. इसी पत्रिका में संपादक के नाम डॉ. हरबंस लाल लीलड़ का एक पत्र छपा है जिसमें विभिन्न मेघवंशी समुदायों की एक महत्वपूर्ण बैठक का उल्लेख है जिसके बारे में आप यहाँ पढ़ सकते हैं. सामाजिक संगठनों की इस प्रकार की पहल कदमियों के अलावा राजनीतिक कोशिशें भी महत्वपूर्ण होती हैं. उसे ध्यान में रखते हुए कुछ मौकों पर श्री महेंद्र भगत जी (भगत चूनी लाल जी के सुपुत्र) से इस विषय पर चर्चा हुई है कि वे राजस्थान के मेघवाल सांसदों और विधान सभा सदस्यों से मिल कर राजनीतिक मंच साझा करने के लिए कदम उठाएँ और रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट्स को इस प्रक्रिया में शामिल करें. आशा है इसका कोई नतीजा शीघ्र निकलेगा.
इस ब्लॉग से अन्य लिंक