किसी भी टीवी चैनल का हर कोई सीरियल कुछ कहता है. डीडी नेशनल पर रविवार को प्रातः 11.00 बजे दिखाया जा रहा सीरियल ‘बुद्धा‘भी कुछ कहता है.
जैसी कि उम्मीद थी यह मनोरंजक (रोचक, भयानक और अनहोनी कहानियों से भरे)तरीके से ऐसे बनाया गया है जिसे लोग देखें. स्वागत है. लेकिन ज्ञातव्य है कि बुद्धिज़्म ईश्वर या भगवान की बात नहीं करता, बल्कि व्यावहारिक जीवन की बात करता है. सत्य को जानने के लिए आँखें खुली रखने की सलाह देता है. लेकिन इस सीरियल के कारण बड़ा विवाद इस बात से खड़ा होता है कि बुद्ध के जन्म को राम के साथ जोड़ा गया है जबकि पढ़े–लिखे लोग जानते हैं कि ‘राम के जन्म‘से पहले (?) लिखी गई ‘रामायण‘में वाल्मीकि ने कहा है :-
यथा हि चोरः स तथा ही बुद्ध स्तथागतं नास्तीक मंत्र विद्धि तस्माद्धि,
यः शक्यतमः प्रजानाम् स नास्तीके नाभि मुखो बुद्धः स्यातम्.
“जैसे चोर दंडनीय होता है इसी प्रकार बुद्ध भी दंडनीय है तथागत और नास्तिक (चार्वाक) को भी यहाँ इसी कोटि में समझना चाहिए. इसलिए नास्तिक को दंड दिलाया जा सके तो उसे चोर के समान दंड दिलाया ही जाय.परन्तु जो वश के बाहर हो उस नास्तिक से ब्राह्मण कभी वार्तालाप ना करे! (श्लोक 34, सर्ग 109, वाल्मीकि रामायण, अयोध्या कांड.)”
अब आप अनुमान लगा सकते हैं कि यह सीरियल क्या कहता है. स्पष्ट है कि यह वेदों, शास्त्रों, पुराणों, रामायण, महाभारत जैसे ग्रंथों को बुद्ध से पहले का बताने की कुचेष्टा है. यह दुनिया जानती है कि मनुष्य को मनुष्य बनाने वाला मार्ग ऐतिहासिक दृष्टि से बुद्ध ने ही बनाया था जिसे दुनिया ‘बुद्धिज़्म‘के नाम से जानती है. इसके बाद के सभी धर्मों के मूल में यही धर्म है.
आज का एपीसोड देखते हुए मैं डर रहा था कि कहीं बालक बुद्ध का जनेऊ संस्कार न दिखा दिया जाए 🙂 ऐसे सीरियलों में कुछ भी संभव है.