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टीम केजरीवाल ने 15 मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए. आरोप लगाने वालों में और आरोपी मंत्रियों में बहुत से वकील हैं. ओह! (सांसद वकील)-बनाम-(एनजीओ वकील) की सनसनी. मैं बहुत प्रभावित हूँ.
सांसदों के रूप में (आ)रोपित वकील मंत्रियों/सांसदों की संख्या कम नहीं. मैं नहीं समझता कि इनकी प्रैक्टिस अच्छी नहीं थी. ये बाना पहन कर कोर्ट में जा सकते हैं. बिना बाने के भी इनका काम चलता रह सकता है. लेकिन सवाल है कि संसद से बाहर के वकील अंदर के वकीलों से इतने ख़फ़ा क्यों हैं? क्या कोई गला काट कंपीटिशन हो गया है?
पढ़ा है कि संसद में प्रश्न उठाने के लिए पैसे लिए गए थे. संसद में प्रश्न को बैठाए रखने के लिए फीस ली जा सकती है या नहीं, इसे प्रखर वकील जानते होंगे. डॉक्टरों-दवा-कंपनियों-लैब्ज़ सरीखा प्रेम-बंधन वकीलों के धंधे में संभव है.
एक मित्र ने चुटकुला सुनाया था.- एक वकील दूसरे से,“यार, बहुत प्रेशर है. तुम्हारी उस क्लायंट कंपनी पर गंभीर सवाल हैं. उठा दूँ?” दूसरा वकील,“रुक जा. बात करने दे.”बात होती है. कंपनी से कानूनी सलाह की फीस पहुँच जाती है. सवाल बैठ जाता है. न करप्शन, न फ़ालतू केस. शुद्ध मेहनत की कमाई.
(होश में हूँ. चुटकुले को चुटकुला और बाकी सभी पैराग्राफ़ को ब्लॉगर की बकबक समझा जाए, प्लीज़).
हरेक राजनीतिक दल के अपने प्रिय विशेषज्ञ वकील होते हैं. जो दल सत्ता में आता है वह अपने स्पष्टतः गैर-कानूनी और असंवैधानिक दिख रहे कार्यों पर अपने इन्हीं वकीलों से विशेषज्ञता भरी सलाह लेता है. एक सलाह की फीस आठ-दस लाख रुपए- ऑफ़ कोर्स पब्लिक के ख़ज़ाने से. कई बार मामले इतने टुच्चे होते हैं कि 12वीं पास डीलिंग क्लर्क मुस्कराता है- ‘ले जा प्यारे!!!आजकल तेरा टाईम चल रहा है’. सहमत-असहमत सी ब्यूरोक्रेसी अंग-संग है. संबंध पवित्रतः सरकारी है. इसमें करप्शन है, मैं नहीं जानता. वकील जाने या भगवान जाने.
बस इतना ही. अधिक लिख कर मरना है क्या!!