Monthly Archives: May 2012

Advocates are ruling – वकीलों का राज है भई

Advocates
टीम केजरीवाल ने 15 मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए. आरोप लगाने वालों में और आरोपी मंत्रियों में बहुत से वकील हैं. ओह! (सांसद वकील)-बनाम-(एनजीओ वकील) की सनसनी. मैं बहुत प्रभावित हूँ.
सांसदों के रूप में (आ)रोपित वकील मंत्रियों/सांसदों की संख्या कम नहीं. मैं नहीं समझता कि इनकी प्रैक्टिस अच्छी नहीं थी. ये बाना पहन कर कोर्ट में जा सकते हैं. बिना बाने के भी इनका काम चलता रह सकता है. लेकिन सवाल है कि संसद से बाहर के वकील अंदर के वकीलों से इतने ख़फ़ा क्यों हैं? क्या कोई गला काट कंपीटिशन हो गया है?
पढ़ा है कि संसद में प्रश्न उठाने के लिए पैसे लिए गए थे. संसद में प्रश्न को बैठाए रखने के लिए फीस ली जा सकती है या नहीं, इसे प्रखर वकील जानते होंगे. डॉक्टरों-दवा-कंपनियों-लैब्ज़ सरीखा प्रेम-बंधन वकीलों के धंधे में संभव है.
एक मित्र ने चुटकुला सुनाया था.- एक वकील दूसरे से,यार, बहुत प्रेशर है. तुम्हारी उस क्लायंट कंपनी पर गंभीर सवाल हैं. उठा दूँ?” दूसरा वकील,रुक जा. बात करने दे.बात होती है. कंपनी से कानूनी सलाह की फीस पहुँच जाती है. सवाल बैठ जाता है. न करप्शन, न फ़ालतू केस. शुद्ध मेहनत की कमाई.
(होश में हूँ. चुटकुले को चुटकुला और बाकी सभी पैराग्राफ़ को ब्लॉगर की बकबक समझा जाए, प्लीज़).
हरेक राजनीतिक दल के अपने प्रिय विशेषज्ञ वकील होते हैं. जो दल सत्ता में आता है वह अपने स्पष्टतः गैर-कानूनी और असंवैधानिक दिख रहे कार्यों पर अपने इन्हीं वकीलों से विशेषज्ञता भरी सलाह लेता है. एक सलाह की फीस आठ-दस लाख रुपए- ऑफ़ कोर्स पब्लिक के ख़ज़ाने से. कई बार मामले इतने टुच्चे होते हैं कि 12वीं पास डीलिंग क्लर्क मुस्कराता है- ले जा प्यारे!!!आजकल तेरा टाईम चल रहा है. सहमत-असहमत सी ब्यूरोक्रेसी अंग-संग है. संबंध पवित्रतः सरकारी है. इसमें करप्शन है, मैं नहीं जानता. वकील जाने या भगवान जाने.
बस इतना ही. अधिक लिख कर मरना है क्या!! 

Bharatiya Shudra Sangh (BSS) – भारतीय शूद्र संघ

भारत की दलित जातियाँ अपनी परंपरागत जाति पहचान से हटने के प्रयास करती रहीं हैं. इस बात को भारत का जातिगत पूर्वाग्रह भली-भाँति जानता है. मूलतः शूद्र के नाम से जानी जाती ये जातियाँ अपनी पहचान को लेकर बहुत कसमसाहट की स्थिति में हैं.

व्यक्ति जानता है कि यदि वह अपना कोई जातिनिरपेक्ष सेक्युलरसा नाम रख लेता है जैसे भारत भूषण या दशरथ कुमार या अर्जुन तो उसे हर दिन कोई न कोई व्यक्ति अवश्य पूछेगा कि भाई साहब आप अपना पूरा नाम बताएँगे? तो वह अपनी पहचान छिपाने के लिए दूसरी कोशिश करते हुए कहेगा, “भारत भूषण भारद्वाज. दूसरा व्यक्ति कहेगा, “यह तो ऋषि गोत्र हुआ. पूरा नाम…”. दो-चार सवालों के बाद उत्तर देने वाले व्यक्ति का स्वाभिमान आहत होने लगता है. वह जानता है कि उसकी जाति पहचान ढूँढने वाला व्यक्ति उसे हानि पहुँचाने वाला है.
अपनी पहचान के कारण संकट से गुज़र रही इन जातियों के सदस्यों ने अपने नाम के साथ सिंह, चौधरी, शर्मा, वर्मा, राजपूत, अग्रवाल, गुप्ता, मल्होत्रा, पंडित सब कुछ लगाया. लेकिन संकट टलता नज़र नहीं आता. मैंने अपने जीवन में इसका सरल हल निकाला कि नाम बताने के तुरत बाद मैं कह देता था कि मेरी जाति जुलाहा है, कश्मीरी जुलाहा (तर्ज़ वही रहती थी- My name is bond, James bond). :)) इससे पूछने वाले के प्रश्न शांत हो जाते थे और उसके मन को पढ़ने में मुझे भी आसानी हो जाती थी. इस तरीके से मुझे बहुत से बढ़िया इंसानों को पहचानने में मदद मिली.
अभी हाल ही में एक कार्यक्रम के दौरान भारतीय शूद्र संघके राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री प्रीतम सिंह कुलवंशी से बात हुई और उन्होंने एक पुस्तिका मुझे थमाते हुए कहा कि इसे देखिएगा. इसमें उल्लिखित बातों से बहुत-सी आशंकाओं का समाधान हो जाएगा. वह पुस्तिका मैंने ध्यान से पढ़ी है और उसका सार यहाँ लिख रहा हूँ.
भारतीय शूद्र संघ मिशन
इस पुस्तिका में स्पष्ट लिखा गया है कि भारतीय शूद्र संघ, संघ नहीं एक मिशन है. इसमें मोहन जोदड़ो और हड़प्पा सभ्यताओं से लेकर आधुनिक युग तक भारत के मूलनिवासियों का बहुत ही संक्षिप्त इतिहास दिया गया है जो बहुत प्रभावकारी है. इसी के दूसरे पक्ष के तौर पर शूद्र समाज के सदस्य व्यक्ति की अस्मिता (पहचान) की बात उठाई गई है. इस संस्था का मिशन यह है कि शूद्र समाज के हर बुद्धिजीवी को एकजुट होकर स्वाभिमान के लिए प्रयास और संघर्ष करना पड़ेगा. अन्य बातों के साथ-साथ इस मिशन का उद्देश्य इस बात का प्रचार करना भी है कि शूद्र समाज के व्यक्ति अपने नाम के पूरक के तौर पर इन नामों का प्रयोग करें- भारती, भारतीय, रवि, अंबेडकर, भागवत, वैष्णव, सूर्यवंशी, कुलवंशी, नागवंशी, रंजन, भास्कर इत्यादि. उल्लेखनीय है कि ये नाम दलितों के साथ पहले भी जुड़े हैं. शायद यह मिशन ऐसे नामों की शार्ट लिस्ट (छोटी सूची) तैयार करना चाहता है या स्पष्ट पहचान वाले शब्दों को बढ़ावा देना चाहता है.
मिशन द्वारा वितरित पुस्तिका में बहुत से बिंदु हैं जिन पर गंभीर विचार मंथन आवश्यक है. दलितों के कई समूह सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक संगठनों में बँट कर अलग-अलग कार्य कर रहे हैं. उनमें से कई बहुत बड़े स्तर पर सक्रिय हैं. उनका एक गठबंधन (confederation) तैयार करने की आवश्यकता है. सभी समूह अपना-अपना कार्य करें साथ ही अपना एक महासंघ गठित करें. इससे सुदृढ़ संगठन और एक साझा अनुशासन निर्मित होगा.
समाज के विभिन्न वर्गों में सदियों से चला आ रहा और घर-घर में फैला कर्मचारी-नियोक्ताका संबंध एक अविरल प्रक्रिया है. ऐसे सामाजिक संबंध का विकास तो होता है लेकिन यह अपना समय लेता है. यह मिशन इस तथ्य को स्पष्ट स्वीकारता है.