कई वर्ष पहले मैंने ‘मेघ’ शब्द इंटरनेट पर ढूँढा. मंशा थी कि बिरादरी के बारे में शायद कुछ जानकारी मिले. मगर कुछ नहीं मिला. ‘मेघ’ सरनेम वाले एक अमरीकन की वेबसाइट मिली. वह उद्योगपति था. लेकिन वह काफी गोरा था. हो सकता है वह हमारा ही बंदा आदमी हो :)) एक इटेलियन एक्ट्रेस मिली जिसके नाम के साथ मेघ(नेट) लगा था. शायद वह हमारी ही बंदी हो. ‘भगत’ ढूँढा तो कबीर और अन्य संतों के अलावा जालंधर के एक सज्जन श्री राजकुमार का एक ब्लॉग मिला जिसका नाम था ‘भगत शादी डॉट कॉम’. उनसे बात हुई और फिर…..आज आप ढूँढ कर देखिए दोनों शब्द, ‘मेघ-भगत’ बहुतायत से आपको इंटरनेट पर मिल जाएँगे.
कुछ वर्ष पहले तक इस बात की भी तकलीफ़ होती थी कि हम साहित्य में कहीं नही थे. एक दिन खोज करते हुए अचानक एक कहानी मिली ‘ज़ख़्मों के रास्ते से’ जिसे एक कथाकार देसराज काली ने लिखा था. इसमें मेघ भगत और भार्गव कैंप का स्पष्ट उल्लेख था. रूह को बहुत आराम आया कि चलो भई हम साहित्य में कहीं तो मिले.
इस बीच वियेना में हुई चमार समुदाय के गुरु की हत्या और जालंधर के पास गाँव तलहण की घटनाओं ने चमार समुदाय के स्वाभिमान को जगा दिया और वे कई सुंदर गीतों के साथ संगीत की धमक लेकर आ गए. ‘रविदासिया धर्म’ की स्थापना हो गई और ये गर्वीले सड़कों पर उतर कर कहने लगे – “गर्व से कहो हम चमार हैं”. इस बात से दिल पूछने लगा कि भई हम ‘मेघ भगत’ गीत-संगीत की धमक में कहाँ हैं.
तभी एक गीत सुनाई दिया- “मेघो कर लो एका, भगतो कर लो एका”. मज़ा आ गया. इसे रमेश कासिम ने गाया था…….और अभी हाल ही में एक गीत सुनने को मिला- “असीं भगताँ दे मुंडे, साडी वखरी ए टौर (हम भगतों के बेटे, हमारा अलग है स्टाइल)” जिसे अमित देव ने गाया है. वाह क्या बात है !!