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Dalit Community (Today’s Valmikis) were mislead – दलित समुदाय (आज के वाल्मीकियों) को गुमराह किया गया था

इसे पढ़ कर आपकी तीसरी आँख खुल जाएगी-

जब हम इतिहास का अवलोकन करते हैं, तो 1925 से पहले हमें वाल्मीकि शब्द नहीं मिलता. सफाई कर्मचारियों और चूह्डों को हिंदू फोल्ड में बनाये रखने के प्रयोजन से उन्हें वाल्मीकि से जोड़ने और वाल्मीकि नाम देने की योजना बीस के दशक में आर्यसमाज ने बनाई थी. इस काम को जिस आर्यसमाजी पंडित ने अंजाम दिया था, उसका नाम अमीचंद शर्मा था. यह वही समय था, जब पूरे देश में दलित मुक्ति के आन्दोलन चल रहे थे. महाराष्ट्र में डा. आंबेडकर का हिंदू व्यवस्था के खिलाफ सत्याग्रह, उत्तर भारत में स्वामी अछूतानन्द का आदि धर्म हिंदू आन्दोलन और पंजाब में मंगूराम मूंगोवालिया का आदधर्म आन्दोलन उस समय अपने चरम पर थे. पंजाब में दलित जातियाँ बहुत तेजी से आदधर्म स्वीकार कर रही थीं. आर्यसमाज ने इसी क्रांति को रोकने के लिए अमीचंद शर्मा को काम पर लगाया. योजना के तहत अमीचंद शर्मा ने सफाई कर्मचारियों के मोहल्लों में आना-जाना शुरू किया. उनकी कुछ समस्याओं को लेकर काम करना शुरू किया. शीघ्र ही वह उनके बीच घुल-मिल गया और उनका नेता बन गया. उसने उन्हें डा. आंबेडकर, अछूतानन्द और मंगूराम के आंदोलनों के खिलाफ भडकाना शुरू किया. वे अनपढ़ और गरीब लोग उसके जाल में फँस गए. 1925 में अमीचंद शर्मा ने श्री वाल्मीकि प्रकाशनाम की किताब लिखी, जिसमें उसने वाल्मीकि को उनका गुरु बताया और उन्हें वाल्मीकि का धर्म अपनाने को कहा. उसने उनके सामने वाल्मीकि धर्म की रूपरेखा भी रखी.

पूरा आलेख आप नीचे दिए लिंक से देख सकते हैं.

वाल्मीकि जयंती और दलितमुक्ति का प्रश्न

The myth of Arya – आर्य शब्द की भ्रांतियाँ


आर्य का अर्थ 
– साहित्यिक और शब्दकोशीय भ्रांतियाँ
कर्नल तिलक राज जी से कई बार फोन पर लंबी बातचीत होती है. पिछले दिनों ऐसी ही एक बातचीत के दौरान उन्होंने पूछ, भाई, यह बताओ कि आर्य शब्द का अर्थ क्या होता है” ? कर्नल साहब बहुत विद्वान व्यक्ति हैं. मैं तनिक होशियार हो कर बैठ गया. मैंने कहा, आर्य का अर्थ है जो बाहर से आकर आक्रमण करे.” कर्नल साहब की आवाज़ की उमंग छिपी नहीं रह सकी. वे तुरत बोले, बिल्कुल सही. यह शब्द अरि’ (शत्रुसे बना है.” फिर उन्होंने धातु के अनुसार इस शब्द की व्युत्पत्ति बताई. उन्होंने आर्यसमाज के संस्थापक दयानंद नामक ब्राह्मण द्वारा प्रचारित अर्थ का उल्लेख किया और फिर कहा कि वह आर्य शब्द का अर्थ श्रेष्ठ’ बताता है.

शब्दकोशों में जिस तरह से चमार शब्द के साथ घृणा जोड़ी गई ठीक वैसे ही आर्य शब्द को महिमामंडित करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी गई. इस पर मैंने अपने नोट्स नीचे दिए लिंक पर रखे हैं. यहीं स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि इस आलेख में किसी बात के होते हुए भी यह तथ्य है कि किसी भी कारण से क्यों न हो, मेघ भगतों की शिक्षा का पहला प्रबंध आर्यसमाज ने ही किया था और मेघों को ‘आर्य मेघ’ और ‘आर्य भगत’ कहा. 

अब दलितों के नाम के साथ ‘आर्य’ लगाने का फार्मूला अपनाया गया है. लक्ष्य है यह सिद्ध करना कि ब्राह्मण आर्य और दलित आर्य एक ही सभ्यता (सिंधुघाटी) की पैदाइश हैं. पिछले लगभग सवा सौ वर्षों से ब्राह्मण आर्यजन सारा ज़ोर इसी पर लगाते दिख रहे हैं जबकि ऐतिहासिक जानकारियाँ इससे मेल नहीं खातीं. वैसे भी ये समय-समय पर स्थिति देख कर साहित्य के साथ छेड़-छाड़ करते रहे हैं और बिना मतलब के ऐसा नहीं किया जाता. लेकिन अब समय बदल गया है. सत्य को स्वीकारना बेहतर है.  

The myth of Arya – आर्य शब्द की भ्रांतियाँ

आर्य का अर्थ साहित्यिक और शब्दकोशीय भ्रांतियाँ
 
कर्नल तिलक राज जी से कई बार फोन पर लंबी बातचीत होती है. पिछले दिनों ऐसी ही एक बातचीत के दौरान उन्होंने पूछ, भाई, यह बताओ कि आर्य शब्द का अर्थ क्या होता है” ? कर्नल साहब बहुत विद्वान व्यक्ति हैं. मैं तनिक होशियार हो कर बैठ गया. मैंने कहा, आर्य का अर्थ है जो बाहर से आकर आक्रमण करे.कर्नल साहब की आवाज़ की उमंग छिपी नहीं रह सकी. वे तुरत बोले, बिल्कुल सही. यह शब्द अरि’ (शत्रु) से बना है.फिर उन्होंने धातु के अनुसार इस शब्द की व्युत्पत्ति बताई. उन्होंने आर्यसमाज के संस्थापक दयानंद नामक ब्राह्मण द्वारा प्रचारित अर्थ का उल्लेख किया और फिर कहा कि वह आर्य शब्द का अर्थ श्रेष्ठबताता है.

शब्दकोशों में जिस तरह से चमार शब्द के साथ घृणा जोड़ी गई ठीक वैसे ही आर्य शब्द को महिमामंडित करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी गई. इस पर मैंने अपने नोट्स नीचे दिए लिंक पर रखे हैं. यहीं स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि इस आलेख में किसी बात के होते हुए भी यह तथ्य है कि किसी भी कारण से क्यों न हो, मेघ भगतों की शिक्षा का पहला प्रबंध आर्यसमाज ने ही किया था और मेघों को ‘आर्य मेघ’ और ‘आर्य भगत’ कहा. 

अब दलितों के नाम के साथ ‘आर्य’ लगाने का फार्मूला एक ही तरफ जाता दिखता है और लक्ष्य है यह सिद्ध करना कि ब्राहमण आर्य और दलित आर्य एक ही सभ्यता (सिंधुघाटी) की पैदाइश हैं. पिछले लगभग सवा सौ वर्षों से ब्राहमण आर्यजन सारा ज़ोर इसी पर लगाते दिख रहे हैं जबकि ऐतिहासिक जानकारियाँ इससे मेल नहीं खातीं. वैसे भी ये समय-समय पर स्थिति देख कर साहित्य के साथ छेड़-छाड़ करते रहे हैं और बिना मतलब के ऐसा नहीं किया जाता. लेकिन अब समय बदल गया है. सत्य को स्वीकारना बेहतर है.