Category Archives: राजा बली

Matriarchal Society and Mahabali, Maveli – राजा महाबली और मातृप्रधान समाज

इसका संदर्भ Maveli belongs to Meghvansh और ऐसे अन्य आलेखों से है. हाल ही में मुझे याद आया कि केरल में मातृप्रधान समाज है. इसी प्रकार उत्तर-पूर्व में भी मातृप्रधान समाज प्रचलित है. महाबली का राज्य दक्षिण और दक्षिणी-पश्चिमी क्षेत्रों में था. उसका बेटा बाण उत्तर-पूर्वी क्षेत्र का गवर्नर था. क्या यह हैरानगी की बात नहीं है कि इन दोनों क्षेत्रों में आज भी मातृप्रधान समाज है? क्या राजा महाबली ने समाज में महिलाओं का महत्व समझते हुए यह प्रणाली लागू की थी या महाबली से भी पहले सिंधु घाटी सभ्यता में यह प्रणाली पहले से चल रही थी? क्या देश के अन्य हिस्सों से मातृप्रधान समाज को क्रमबद्ध तरीके से समाप्त किया गया? मैं यह भी महसूस करता हूँ कि इन क्षेत्रों में संपत्ति महिलाओं के नाम में होती है लेकिन वे पुरुषों पर इक्कीस नहीं पड़ती हैं. वंश का नाम माता के नाम से चलता है. इन क्षेत्रों की महिलाएँ अपने अधिकारों के बारे में और घर की चारदीवारी से बाहर के संसार को तनिक बेहतर जानती हैं.

यह सच है कि सिंधु घाटी सभ्यता के मूल निवासियों के इतिहास को इतना नष्ट और भ्रष्ट कर दिया गया है कि उसे पहचानना और उसका पुनर्निर्माण करना कठिन है. लेकिन संकेतों और चिह्नों को एकत्र करना संभव है और मानवीय अनुभव से कुछ-न-कुछ निकाला भी जा सकता है. भारत के कायस्थों ने आख़िर 200 वर्षों के संघर्ष के बाद अपना इतिहास ठीक करने में सफलता पाई है. ऐसा शिक्षा, संगठन और जागरूकता से संभव हो पाया. महर्षि शिवब्रतलाल (ये संतमत/राधास्वामी मत में जाना माना नाम हैं और सुना है कि इन्होंने भारत में दूसरी टाकी फिल्म बनाई थी जिसका नाम ‘शाही लकड़हारा’ था) और मुंशी प्रेमचंद कायस्थ थे. मेघवंशियों के लिए ऐसा कर पाना और भी कठिन होगा. परंतु यह करने लायक कार्य है.

2 comments:

आशीष/ ਆਸ਼ੀਸ਼ / ASHISH said…

ज्ञानवर्धक! आशीष — प्रायश्चित

डॉ० डंडा लखनवी said…

मैने राजा की कथा कई बार पढ़ी। वे करुणा सागर और दानशील थे। ऐसी कथा प्रचलित है कि उनसे तीन पग जमीन मांगी गई। पहले पग में धरती, दूसरे में आकाश तथा तीसरे में उनके शरीर को नापने की बात प्रचारित की गई है। भारत के मूल निवासियों के साथ अनेक बार छल हुए हैं। खोज का विषय है कि इन तीनों पगों मे नापने का क्रम क्या था? कहीं पह्ले पग में उनके शरीर को और शेष दो पगों मे उनके राज्य को नाप लिया गया हो ? फलत: उनके वंशज कालांतर में राजनैतिक आर्थिक रूप से कमजोर पड़ गए हो? इस समाज में पुन: प्राण फूकने की आवश्यकता है। सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी

Maveli (राजा बली) is remembered by Meghvanshis in Kuchchh-Gujrat

This was the feedback I received from Gujrat (Kuchchh) as a comment on one of the articles. This deserved to be taken as proper input. :  

Thank you, Bharat Bhushan, for raising historical topic relating to identity of Meghwal identity. As far as western Gujarat (Kachchh) (erstwhile Sindh-Kachchh region) is concerned, we Maheshwari Meghwars have an interesting tradition to confirm much awaited return of Raja Bali’s rule. People from our community are following an unique tradition during Diwali i.e. on Kali Chaudas Day – Kids/youths will take a 3 feet sugarcane stick with cotton tied on it and after burning the same, they will go to each and every fellow community brother’s home and will say “HORI, DIYARI, MEGH RAJA JE GHARE MERIYO BARE”, which means – lights shall ignite in the house of Megh Raja on every Holi and Diwali”. In return, the householder will pour one spoon Ghee on the burning cotton. Eventually, after roaming almost all homes, all these Sugarcane stick (MERIYO) are kept at the outskirts. These MERIYAS when seen together gives a marvelous glimpse of unity of Meghwar community.
The basic idea behind all these traditions is to keep alive our craving for retaining our lost pride that we (Meghwars/Meghwals) are descendants of Great Ruler of ancient India. In our forefathers rule, we were happy and living a dignified life. As such, this tradition of remembering Bali Raja/Megh Raja is to keep alive our ambitions of restoring our lost rule and pride. I think so.
Thanks again for your cause of uniting entire Meghwals of India on one platform.
Navin K. Bhoiya
Kachchh-Gujarat
18 September 2010 17:57”

3 comments:

ZEAL said…

. @–क्या कबीर मंदिर या मेघ-भवन का विचार बुरा था? क्या उसके लिए संगठित प्रयास करने में बुराई थी?… पिछले लेख भी पढ़े । नयी जानकारी भी मिली । मुझे लगता है , बहुत से लोगों को आगे आना चाहिए और एक सामुदायिक प्रयास से ही इस सपने को साकार किया जा सकता है। इस महत्वपूर्ण जानकारी को हमारे साथ बांटने के लिए आपका आभार। .

डॉ० डंडा लखनवी said…

मैने राजा की कथा कई बार पढ़ी। वे करुणा सागर और दानशील थे। ऐसी कथा प्रचलित है कि उनसे तीन पग जमीन मांगी गई। पहले पग में धरती, दूसरे में आकाश तथा तीसरे में उनके शरीर को नापने की बात प्रचारित की गई है। भारत के मूल निवासियों के साथ अनेक बार छल हुए हैं। खोज का विषय है कि इन तीनों पगों मे नापने का क्रम क्या था। कहीं पह्ले पग में उनके शरीर को और शेष दो पगों मे उनके राज्य को नाप लिया गया हो ? फलत: उनके वंशज कालांतर में राजनैतिक आर्थिक रूप से कमजोर पड़ गए हो? इस समाज में पुन: प्राण फूकने की आवश्यकता है। सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी

Bhushan said…

अभी तक मिली जानकारी के अनुसार राजा बली (मावेली, Maveli) को धोखे से हरा कर उसे मार डाला गया. मरने से पूर्व उसने अपनी प्रजाओं के लिए सम्मानपूर्ण जीवन माँगा. उसके स्वप्न को और प्रजाओं को कालांतर में पूरी तरह तोड़ दिया गया. मावेली के वंशज शताब्दियों तक यात्नाएँ सहते हुए किसी प्रकार जीवित रहे. वे आज भी बहुत ग़रीबी की हालत में हैं. जातिगत पूर्वाग्रहों के कारण जहाँ भी ग़रीबी है वहाँ मेघवंशी या मावेली के वंशज अवश्य मिलेंगे.

Myth of Mahabali (Maveli बलि) – राजा महाबली का मिथ

राजा महाबली – चित्र विकिपीडिया के साभार
राजा बली को केरल में मावेली कहा जाता है. यह संस्कृत शब्द महाबली का तद्भव रूप है. इसे कालांतर में बलि लिखा गया जिसकी वर्तनी सही नहीं जान पड़ती.  राजा बली की कथा एक अनवरत कथा है जिसका जवाब नहीं. दो दिन पहले दीपावली के अवसर पर श्री आर.पी. सिंह ने शुभकामनाएँ देते हुए बताया कि दैनिक भास्कर में राजा बली के बारे में लेख छपा है और कि दीपावली का त्यौहार मनाने का एक कारण राजा बली की कथा में भी निहित है. राखी का त्योहार भी लक्ष्मी द्वारा महाबली को राखी बाँधने से जोड़ा गया है. इंटरनेट को धन्यवाद कि ज़रा खोज करने पर संदर्भ मिल गए जिन्हें आपसे साझा कर रहा हूँ. पहले स्पष्ट करना आवश्यक है कि पौराणिक कथाओं को कभी भी इतिहास नहीं माना गया है. अतः इन्हें हर कोई किसी भी तरह से व्याख्यायित करता है जैसा कि नीचे दी गई कथाओं से भी स्पष्ट है. पौराणिक पात्र संभव है कि संकेतात्मक रहे हों. संभव है किसी काल विशेष की कुछ वास्तविक घटनाओं के साथ उनका घालमेल किया गया हो. लोक में प्रचलित परंपराओं और किंवदंतियों को इन कथाओं के साथ मिला कर देखने से कई बार उनका एक विशेष अर्थ भी निकलने लगता है. देश भर में कई ऐसे समुदाय हैं जो राजा बली के राज्य में प्रजाओं की सुख-समृद्धि को स्मरण करते हैं और राजा बली के लौटने की कामना करते हैं. कुछ समुदाय राजा बली को अहंकारी आदि कहते हैं लेकिन उसके दानवीर, न्यायाप्रिय होने जैसे गुणों को स्वीकार भी करते हैं. कई स्थानों पर उल्लेख है कि केवल महाबली के प्रति ईर्ष्या के कारण ही उसे पाताल (दक्षिण) में धकेल दिया गया या क्रूरतापूर्वक मार डाला गया. हाँ उसके राज्य को दान में हथिया लेने की कथा खूब प्रचलित है. कई कथाओं में यह राजा महाबली (या मावेली) इंद्र और अन्य देवताओं पर इक्कीस पड़ता दिखाई पड़ता है तो अन्य कथाओं में विष्णु और वामन से वह अपनी दानी प्रकृति के कारण पराजित होता भी दिखता है. केरल में मनाया जाने वाला विश्वप्रसिद्ध ओणम त्योहार महाबली की स्मृति में मनाया जाता है. यहाँ यह बता देना ठीक रहेगा कि प्रसिद्ध पौराणिक पात्र वृत्र (प्रथम मेघ) के वंशज हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद था. प्रह्लाद के पुत्र विरोचन का पुत्र महाबली था. इनकी वंशावली की विस्तृत जानकारी मेघवाल आलेख से मिल सकती है. नीचे दी गई कथाओं को सभी ने अपने-अपने तरीके से लिखा है.

पहली कथा
दानवीर राजा बलि का प्रताप सभी लोकों में फैल गया. उन्होंने अपने कारागार में लक्ष्मीजी तथा अन्य देवी-देवताओं को कैद कर लिया. धन-संपत्ति और संसाधनों के अभाव में पृथ्वी पर हाहाकार मच गया. तब भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण किया और राजा बलि के पास दान प्राप्त करने पहुंचे. वामन ने तीन पग धरती मांगी.  बलि ने उन्हें तीन पग धरती नापने को कहा. तब वामन ने विराट रूप धारण कर लिया. उन्होंने अपने तीन पग में तीन लोकों को नाप लिया. बलि को पाताल लोक में स्थान मिला. लक्ष्मी और अन्य देवगण कारागार से मुक्त होकर क्षीरसागर पहुंचे और वहीं शयन किया. इसी उपलक्ष्य में दीपपर्व मनाया जाता है. पूरी कथा यहाँ पढ़ें- दैनिक भास्कर 04 नवंबर 2010
(साधारण अर्थ- तीन पग नापने का अर्थ यहाँ सब कुछ दान में ले लेना, छीनना या ठगना है.)

दूसरी कथा
भैयादूज व राजा बलि- जब राजा बलि को पाताल में भेजा था, तब वामन ने राजा बलि को वरदान दिया था कि वह पाताल में राजा बलि का पहरेदार बना कर रहेगा. अतः उसे भी पाताल जाना पड़ा. भैया दूज के दिन लक्ष्मी जी ने एक ग़रीब औरत का वेष बनाकर राजा बलि से भाई बनने का आग्रह किया. जिसे बलि ने स्वीकार कर लिया. लक्ष्मी जी ने बलि को तिलक लगाकर पूजा की और लक्ष्मी जी ने बलि से भगवान विष्णु को आज़ाद करने का वरदान मांगा. पूरी कथा यहाँ पढ़ें- दैनिक भास्कर अक्टूबर 19, 2009


तीसरी कथा
पौराणिक कथा में राजा बलि ने भगवान विष्णु से पाताल लोक को अपने राज्य के रूप में प्राप्त किया था. भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर राजा बलि से वर मांगने के लिए कहा. राजा बलि ने भगवान से अपने राज्य का रक्षक बनने की स्वीकृति प्राप्त की. बैकुंठ त्यागकर राजा बलि के पाताल लोक में विष्णु जी के नौकरी किए जाने से लक्ष्मीजी बेहद नाराज़ हुईं. कुछ समय पश्चात लक्ष्मीजी ने राजा बलि के यहां पहुंचकर उनका विश्वास प्राप्त किया. तत्पश्चात राजा बलि को रक्षासूत्र बांधकर लक्ष्मीजी ने बहन का पद प्राप्त किया और राजा बलि से भाई के सम्बंध स्थापित होने पर भगवान विष्णु की सेवानिवृत्ति तथा स्वतंत्रता को वापस ले लिया. पूरी कथा यहाँ पढ़ें-  दैनिक भास्कर 27 अगस्त, 2010
(साधारण अर्थ- राजा बली अपनी प्रजा की रक्षा चाहते थे.)

चौथी कथा
जब भगवान विष्णु ने महाबली से तीन पग धरती मांगकर तीनों लोकों को नाप लिया तो राजा बली ने उनसे प्रार्थना की कि आपने कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से लेकर अमावस्या की अवधि में मेरी संपूर्ण पृथ्वी नाप ली है, इसलिए जो व्यक्ति मेरे राज्य में चतुर्दशी के दिन यमराज के लिए दीपदान करे, उसे यम यातना नहीं होनी चाहिए और जो व्यक्ति इन तीन दिनों में दीपावली का पर्व मनाए, उनके घर को लक्ष्मीजी कभी न छोड़ें.
पूरी कथा यहाँ पढ़ें- दैनिक भास्कर 03 नवंबर, 2010
(साधारण अर्थ- कुछ रोचक और भयानक बिंब कथा में जोड़े गए हैं. इसका दूसरा अर्थ महाबली का अपनी प्रजा या संबंधियों को यात्नाओं से बचाना भी हो सकता है.)

पाँचवीं कथा
ब्राम्हण समाज दल्लीराजहरा के तत्वाधान में आयोजित 9 दिवसीय संगीतमय श्रीमद् भागवत महापुराण ज्ञान यज्ञ के छठवें दिन प्रवचनकर्ता पं. अखिलेश्वरानंद महाराज ने उपस्थित श्रद्धालुओं को भगवान वामन रूप और राजा बलि की कथा में बताया कि बलि इंद्रासन में बैठकर अपने आपको सबसे बड़ा दानी मानता था. भगवान ने उसकी दान वीरता के गर्व को हरण करने के लिए वामन रूप में बलि के यज्ञ में गए. राजा बलि ने कहा, आप कुछ दान ले लीजिए. वामन ने कहा, मुझे दान की आवश्यकता नहीं. इस पर बलि ने कुछ न कुछ भेंट लेने के लिए कहा. इस पर वामन ने तीन पग भूमि दान में मांगी. बलि भूमि देने के लिए तैयार हो गए.

वामन ने अपने शरीर का आकार बढ़ाया और एक ही पग में पूरी पृथ्वी को नाप ली, दूसरे पग में स्वर्ग. वामन ने कहा कि अब मैं तीसरा पग कहां रखूं, इस पर बलि ने कहा कि तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख लीजिए. बलि की ऐसी बातों को सुनकर वामन बहुत प्रसन्न हुए और कहा कि बलि वास्तव में तुम बहुत चतुर हो. मेरा पैर तुम्हारे सिर पर पड़ गया तो तुम्हारी सात्विक जीव मुक्त हो जाएगी. अब जबकि मेरे पैर तुम्हारे सिर पर पडेंगे तो तुम्हारा कल्याण हो जाएगा. पूरी कथा यहाँ पढ़ें- दैनिक भास्कर 24 फरवरी, 2010
(इस कथा के अनुसार महाबली (जिन्हें असुर, दैत्य, आदि भी कहा जाता है) यज्ञ करते थे. यह मेरे लिए नई बात है. इस कथा के कहने की शैली से स्पष्ट है कि मिथ को अपने अंदाज़ में रोचक बना कर कहने की कोशिश की गई है.)

छठी कथा
राजा बलि जब सौंवा अश्वमेध यज्ञ करने लगे तो इन्द्र सहित देवताओं ने भगवान की शरण ग्रहण करते हुए कहा कि भगवान राजा बलि स्वर्ग के इन्द्र सहित देवताओं को स्वर्ग से असमय च्युत करना चाहता है. हे देव आप ही रक्षा कर सकते हैं. श्रीहरि (विष्णु) वामन रूप धारण करके यज्ञस्थल पहुंचे तो गुरु शंकराचार्य (संभवतः यहाँ शुक्राचार्य होना चाहिए) ने राजा बली को बता दिया था कि तुम्हारे साथ धोखा हो रहा है.  परंतु राजा बली ने तीन कदम जमीन के दान का संकल्प कर दिया. वामन ने विशाल रूप बनाकर पूरा ब्रह्माण्ड दो कदम में नाप लिया. पूरी कथा यहाँ पढ़ें-  दैनिक भास्कर 23 मई, 2010
(यहाँ भी कथा को रोचक बनाने की कोशिश है. पौराणिक कथाओं में इसी प्रकार से परिवर्तन होते रहे हैं. संभव है उनका मूल रूप ही पूरी तरह से बदल दिया गया हो.)

अन्य समाचार जो दिखे
1. दानवीर राजा बलि के मंदिर पर एक शाम दानवीर राजा बलि के नाम भजन संध्या का आयोजन सरगरा समाज नवयुवक मंडल के तत्वावधान में आयोजित किया गया.  दैनिक भास्कर 26 सितंबर, 2010
2. सरगरा समाज के आराध्य देव राजा बलि के दर्शनार्थ कस्बे से दर्शनार्थियों का दल बुधवार को पीचियाक रवाना हुआ. दल में 35 से अधिक लोग शामिल हैं, जो पीचियाक पहुंचकर वहां राजा बलि के मंदिर में आयोजित धार्मिक समारोह में भाग लेंगे. रवानगी के अवसर पर वातावरण राजा बलि के जयकारों से गूंज उठा. दल के सदस्यों को ढोल-नगाड़ों के साथ रवाना किया गया. दैनिक भास्कर 23 सितंबर, 2010


मिथ से संबंधित बहुत सी जानकारी पढ़ी जा चुकी है. ऊपर दिए अन्य समाचारों के अंतर्गत नज़र आने वाले लोगों के बारे में यदि जानकारी न ली जाए तो बात अधूरी रह जाएगी. इसमें मेघवाल आलेख के संदर्भ, पौराणिक और ऐतिहासिक संकेत सहायक हो सकते हैं. मोटे तौर पर वृत्र या मेघ ऋषि के वंशजों को मेघवंशी कहा जाता हैं. मेघवाल आलेख में उल्लिखित संदर्भों के आधार पर इतना कहा जा सकता है कि पौराणिक कथाओं में जिन मानव समूहों को असुर, दैत्य, राक्षस, नाग, आदि कहा गया वे सिंधु घाटी सभ्यता के मूल निवासी थे और मेघवंशी थे. आर्यों और अन्य के साथ पृथ्वी (भूमि) पर अधिकार हेतु संघर्ष में वे पराजित हुए और सदियों तक दासता की अमानवीय स्थितियों में रहे. इनके कुचले हुए शरीर और मन स्पष्ट दिखाई देते हैं जिन्हें निम्न होने के लक्षण कहा जाता है. ये धन, अन्न, भूमि, शिक्षा आदि से सदियों वंचित रहे. आज इन्हें अनुसूचित जातियों, जन जातियों और पिछड़ी जातियों (SCs, STs and OBCs) के रूप में जाना जाता है. ये अपने अधिकारों के प्रति संघर्षशील न रहे हों ऐसा भी नहीं है. इनके घर और बस्तियाँ बार-बार तबाह की गईं. जब-जब इनके या इनके पक्ष के किसी साहित्य, इतिहास, धर्म आदि ने रूप ग्रहण किया उसे नष्ट कर दिया गया या भ्रष्ट कर दिया गया. आज इनका कोई इतिहास उपलब्ध नहीं क्योंकि इतिहास विजेता ही लिखवाता है.
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इनकी हालत कुछ सुधरी है. सामाजिक वातावरण बदला है. परंतु नई अर्थव्यवस्था में ये केवल अति सस्ता श्रम बन कर ही न रह जाएँ इसलिए इनकी शिक्षा का प्रबंध सरकार का सामाजिक दायित्व है.

एक विद्वान के अनुसार तीन कदमों से तीनों लोकों को नापने का एक अर्थ यह भी है कि राजा बली को धोखे से मार कर ब्राह्मणों ने शिक्षा, अर्थतंत्र और राजनीतिक सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया.

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Maveli (राजा बली) is remembered by Meghvanshis in Kuchchh-Gujrat

This was the feedback I received from Gujrat (Kuchchh) as a comment on one of the articles. This deserved to be taken as proper input.:
Thank you, Bharat Bhushan, for raising historical topic relating to identity of Meghwal identity. As far as western Gujarat (Kachchh) (erstwhile Sindh-Kachchh region) is concerned, we Maheshwari Meghwars have an interesting tradition to confirm much awaited return of Raja Bali’s rule. People from our community are following an unique tradition during Diwali i.e. on Kali Chaudas Day – Kids/youths will take a 3 feet sugarcane stick with cotton tied on it and after burning the same, they will go to each and every fellow community brother’s home and will say “HORI, DIYARI, MEGH RAJA JE GHARE MERIYO BARE”, which means – lights shall ignite in the house of Megh Raja on every Holi and Diwali”. In return, the householder will pour one spoon Ghee on the burning cotton. Eventually, after roaming almost all homes, all these Sugarcane stick (MERIYO) are kept at the outskirts. These MERIYAS when seen together gives a marvelous glimpse of unity of Meghwar community.

The basic idea behind all these traditions is to keep alive our craving for retaining our lost pride that we (Meghwars/Meghwals) are descendants of Great Ruler of ancient India. In our forefathers rule, we were happy and living a dignified life. As such, this tradition of remembering Bali Raja/Megh Raja is to keep alive our ambitions of restoring our lost rule and pride. I think so.

Thanks again for your cause of uniting entire Meghwals of India on one platform.

Navin K. Bhoiya
Kachchh-Gujarat
18 September 2010 17:57”

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Balijan Cultural Movement बलीजन सांस्कृतिक आंदोलन-2

मैंने शीर्षक में ही बलि को बली लिखा है. ऐसा मैंने जानबूझ कर किया है. विश्वस्त हूँ कि ऐसा करके ग़लती को ठीक कर रहा हूँ. क्योंकि बलि होना किसी का शौक या हॉबी नहीं हो सकती.

वर्ष जून 2010 में जम्मू में भगत महासभा द्वारा आयोजित कबीर के 612वें जयंती समारोह के अवसर पर जयपुर से पधारे श्री गोपाल डेनवाल (मेघवाल) ने अन्य साहित्य के साथ उक्त आंदोलन का घोषणापत्र मुझे दिया था. यह मेरे लिए एक नई चीज़ थी जिसे मैंने मेघ भगत पर प्रकाशित किया.

इस बीच इसकी जानकारी एकत्रित करने की कोशिश करता रहा. इस सिलसिले में दिल्ली के श्री दिनेश कुमार सांडिला से परिचय हुआ. फोन पर बात हुई. वे चंडीगढ़ पधारे. उनके साथ बातचीत में मेघ समुदाय के दो प्रतिष्ठित व्यक्ति भी शामिल हुए.

इस आंदोलन का घोषणापत्र अब हिंदी में प्राप्त हुआ है जिसे यहाँ पढ़ा जा सकता है बलीजन सांस्कृतिक आंदोलन. अभी तत्संबंधी साहित्य का अध्ययन कर रहा हूँ. संक्षेप में अभी इतना कहना पर्याप्त होगा कि इस आंदोलन का ईसाईयत की ओर झुकाव है. जातिवाद की शिकार अविकसित जातियों की उन्नति का जो मार्ग इसने चुना है उसमें अन्य पिछड़ी जातियों और अनुसूचित जातियो/जनजातियों को सम्मिलित रूप से लक्ष्य बनाया गया है और उन्हें अपनी विचारधारा के साथ जोड़ने का इनका मिशन है. यह मिशन धर्मपरिवर्तन नहीं कराने का दावा करता है.

जहाँ तक इस आंदोलन के नामकरण का सवाल है यह ठीक प्रतीत होता है. इस समूह के अस्तित्व में आने से पहले भी कई इतिहासकार और लेखक इस बात से सहमत हो चुके हैं कि पौराणिक कथाएँ वास्तव में इनके लेखन के समसामयिक भारतीय समाज को एक साँचे में ढालने के लिए एक समूह के द्वारा ख़ास तरीके से लिखी गई हैं जिससे उस समूह का हित लंबे समय तक सधता रहे. यह सफलता पूर्वक किया गया. परंतु अब शिक्षा के साथ कई व्यक्ति और जातिसमूह उन पौराणिक कथाओं की मानसिक गुलामी से निकल चुके हैं. हालाँकि यह बहुत कठिन काम था. उस शिक्षा के आधार पर अस्तिव में आए कई दर्शन और धर्म-संप्रदाय आदि समाप्त हो गए या कमज़ोर पड़ गए. संतमत ने इस दिशा में बहुत कार्य किया. राधास्वामी मत इस दिशा में सक्रिय है जिस पर आक्रमण होते आ रहे हैं.

प्रह्लाद का पोता राजा बली या महाबली (केरल में मावेली के नाम से प्रसिद्ध) एक ऐसा पौराणिक चित्र है जिसकी चमक भारतीय समाज में समांतर चल रही दो सभ्यताओं सुर (आर्य- मध्य एशिया से आई जनजाति) और अनार्य (असुर- सिंधु घाटी सभ्यता का विकास करने वाली जाति और वहाँ के मूल निवासी ) दोनों में बराबर दृष्टिगाचर होती है. वह एक नेक, न्यायी, महाबली, सुशासन देने वाला राजा था जिससे सुर जलते थे और उसे धोखे से पाताल लोक (केरल या अमेरिका) में भेज दिया गया या मार डाला गया. लोग उसे आज तक भूले नहीं. वे उसके लौटने की प्रतीक्षा करते हैं क्योंकि उसके राज्य में सभी सुखी थे. इसी मिथ के आधार पर बलीजन सामाजिक आंदोलन का नामकरण हुआ है. इस आंदोलन ने इसे ईसाई धर्म के न्यू टेस्टामेंट के साथ जोड़ा है. इसमें कुछ शब्दों की रूपसज्जा की गई है जो सुने हुए से प्रतीत होते हैं. यथा महादेव, यःशिवा आदि. अभी इसे थोड़ा ही पढ़ पाया हूँ.

श्री सांडिला जी कुछ और पुस्तकें भी दे गए हैं. जो कुछ मुझे प्रभावित करेगा उसे आपके साथ साझा करूँगा.

 
विशेष टिप्पणी: अंग्रेज़ों के शासन के दौरान ईसाई मिशनरियों ने अपने धर्म के प्रचार के लिए ब्राह्मणों को अपने साथ जोड़ा था. वे जुड़े भी. उनमें से कई ईसाई बने. वहाँ खूब पैसा था. जब मिशनरियों ने अविकसित जातियों में अपने धर्मप्रचार के लिए उनके समूहों में शिक्षा की मुहिम चलाई तब उसे धर्मपरिवर्तन या विश्वासपरिवर्तन कह कर कई तरह से बदनाम किया गया और उन जातियों में भय पैदा करके उन्हें पढ़ाई से दूर रखने की हर कोशिश की गई. आज भी उस कोशिश का अंत हुआ प्रतीत नहीं होता जबकि यह स्थिति आज से करीब डेढ़ सौ वर्ष पूर्व मुद्दा बन चुकी थीं. महात्मा फुले और डॉ. अंबेडकर का साहित्य इसकी गवाही देता है. लेकिन व्यापक रूप से शिक्षा से वंचित किए गए वर्गों तक इस साहित्य का संदेश पर्याप्त रूप से नहीं पहुँच सका, यह विडंबना रही.

संपन्न जातियों के बहुत से लोग विदेशों में जा बसे हैं, ईसाई बन चुके हैं या बिना अपना नाम बदले ईसाईयत को अंगीकार कर चुके हैं. उनके विरुद्ध भारत में कोई दुष्प्रचार नहीं किया जाता. जबकि अविकसित जातियों के विकास की जब भी कोई योजना ईसाई मिशनरी बनाते हैं तब गंदा धार्मिक प्रचार करके या धार्मिक घृणा फैला कर उसे रोकने का प्रयास किया जाता है (मुझे धर्म और घृणा पर्यायवाची से लगने लगे हैं). उद्देश्य केवल एक कि इन जातियों तक अच्छी शिक्षा, रोज़गार और संपन्नता बड़े स्तर पर न पहुँचे. आज शिक्षा का मँहगा होना और भारत सरकार की निर्धन बच्चों की शिक्षा के प्रति उपेक्षा उसी की कड़ी है. (ग़रीबों को बढ़िया और अच्छी शिक्षा देने का प्रबंध कौन करेगा? इन जातियों को शिक्षित बनाने की कारगर आयोजना क्या सरकार का काम नहीं है? अगर नहीं है तो जो भी संस्था यह कार्य करे लोग उसे समर्थन क्यों न दें.)

ब्लॉग लेखक के तौर पर अपना उत्तरदायित्व पूरा करना चाहता हूँ. माता-पिता धार्मिक कार्यों पर न्यूनतम खर्च करें, सामाजिक कार्यों पर फिज़ूलखर्ची बिल्कुल न करें और पैसा बच्चों की शिक्षा पर लगाएँ. सरकारी शिक्षण संस्थाओं/स्कूलों में शिक्षा के नाम पर हो रहे मज़ाक और फैले हुए भ्रष्टाचार  को चुनाव का मुद्दा बनाएँ. युवक-युवतियाँ रोज़गार के लिए किसी भी धर्म या भगवान पर भरोसा न करें, रोज़गार पकड़ें. पैसा सब कुछ न सही परंतु काफ़ी कुछ है. प्रथम आजीविका.


इस आंदोलन के घोषणा-पत्र का अंग्रेज़ी पाठ इस लिंक पर देखा जा सकता है–> Balijan

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Maveli (महाबली) and Matriarchal Society (मातृप्रधान समाज)

It refers to Maveli belongs to Meghvansh and other articles pertaining to this subject. Recently I remembered that Kerala has a matriarchal society. Likewise north-west region of India also has matriarchal system of society. Maveli ruled in Kerala and south-western parts of the country. His son Ban was governor of north-west. It is interesting that these parts of country have a matriarchal system of society? Did Maveli start this system in recognition of importance of women in society or was this system prevailing in Indus Valley Civilization before Maveli existed? Has the system of matriarchal society of this part of the globe been sytematically destroyed? At the same time I feel that women living in these regions also are not one up though property is in the name of women. Surname continues after the name of mother. However women in these areas are more conscious about their rights and know better about the life outside four walls of the house.

It is a fact that history of original inhabitants of Indus Valley Civilization has been corrupted or destroyed beyond recognition and it is very difficult to reconstruct it. However, it may be possible to collect traces and signs and extract something from human experience. Kayasthas of India got their history corrected after 200 years of struggle. It became possible through education, organization and awareness. Maharishi Shivbrat Lal Burman (ये संतमत/राधास्वामी मत में जाना माना नाम हैं और सुना है कि इन्होंने भारत में दूसरी टाकी फिल्म बनाई थी जिसका नाम ‘शाही लकड़हारा’ था) and Munshi Prem Chand belonged to Kayasthas. It will still be harder for Meghvanshis to do it. But it is worth doing it.    
 
राजा महाबली और मातृप्रधान समाज
इसका संदर्भ Maveli belongs to Meghvansh और ऐसे अन्य आलेखों से है. हाल ही में मुझे याद आया कि केरल में मातृप्रधान समाज है. इसी प्रकार उत्तर-पूर्व में भी मातृप्रधान समाज प्रचलित है. महाबली का राज्य दक्षिण और दक्षिणी-पश्चिमी क्षेत्रों में था. उसका बेटा बाण उत्तर-पूर्वी क्षेत्र का गवर्नर था. क्या यह हैरानगी की बात नहीं है कि इन दोनों क्षेत्रों में आज भी मातृप्रधान समाज है? क्या राजा महाबली ने समाज में महिलाओं का महत्व समझते हुए यह प्रणाली लागू की थी या महाबली से भी पहले सिंधु घाटी सभ्यता में यह प्रणाली पहले से चल रही थी? क्या देश के अन्य हिस्सों से मातृप्रधान समाज को क्रमबद्ध तरीके से समाप्त किया गया? मैं यह भी महसूस करता हूँ कि इन क्षेत्रों में संपत्ति महिलाओं के नाम में होती है लेकिन वे पुरुषों पर इक्कीस नहीं पड़ती हैं. वंश का नाम माता के नाम से चलता है. इन क्षेत्रों की महिलाएँ अपने अधिकारों के बारे में और घर की चारदीवारी से बाहर के संसार को बेहतर जानती हैं.

यह सच है कि सिंधु घाटी सभ्यता के मूल निवासियों के इतिहास को इतना नष्ट और भ्रष्ट कर दिया गया है कि उसे पहचानना और उसका पुनर्निर्माण करना कठिन है. लेकिन संकेतों और चिह्नों को एकत्र करना संभव है और मानवीय अनुभव से कुछ-न-कुछ निकाला भी जा सकता है. भारत के कायस्थों ने आख़िर 200 वर्षों के संघर्ष के बाद अपना इतिहास ठीक करने में सफलता पाई है. ऐसा शिक्षा, संगठन और जागरूकता से संभव हो पाया. महर्षि शिवब्रतलाल (ये संतमत/राधास्वामी मत में जाना माना नाम हैं और सुना है कि इन्होंने भारत में दूसरी टाकी फिल्म बनाई थी जिसका नाम ‘शाही लकड़हारा’ था) और मुंशी प्रेमचंद कायस्थ थे. मेघवंशियों के लिए ऐसा कर पाना और भी कठिन होगा. परंतु यह करने लायक कार्य है.


इस आलेख के नीचे टिप्पणीकार श्री पी.एन. सुब्रमणियन द्वारा दिया गया लिंक यहाँ जोड़ा गया है. (स्त्री सशक्तिकरण) सुब्रमणियन जी को कोटिशः धन्यवाद


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Meveli belongs to India and Meghvansh

I received few phone calls from N.Delhi, Indore, Jaipur and other places. None of the callers questioned relationship of Maveli and Meghvansh (Maveli belongs to Meghvansh) rather they were aware of it. The Balijan Cultural Movement retells the mythical story of King Mahabali. Mr. Mohan Devraj Thontyal, a research scholar from Pakistan who has done his research on Origins of Meghwars and Megh Rikh, observes that:-
“I am delighted to read the article Maveli or Mahabali and the subsequent article about the festival Onam. Perhaps one can agree with the historical point that one ancient tradition is often told by the people of different regions of India into the different versions for instance, the epics Ramayana and Mahabharata and their several versions. In case of Raja Bali, I found a tradition in the Meghwar origin story (Book Megh Mahayatamaya in Gujarati authored by Nathguru Jivannathji) where Raja Bali has been shown interacting with Rishi Shringya and Megh Dharu.
To my own opinion Vamansthali or the present Vanthali (a modern town in Gujarat state) should have been the royal seat of Raja Bali, where the Incarnation Waman is said to have pressed down the king into the earth, later the place came to be known after the name of Waman Dev. However the further research in this regard is yet to be done. The tradition of Raja Bali might have been received in the certain period of time by the South Indian region with more exhilaration. (15 September 2010 18:59)”
In this context we find King Mahabali’s presence in Gujrat region as well. The stories may differ as they have been distorted sometimes even beyond recognition. I asked all the callers whether they were inclined to celebrate Onam festival in respect of Mahabali. The response was positive. Then I suggested them an Onam festival which is without other symbolic items like Pulikali (lion dance) that has a non-contextual image of another distorted story. Secondly, on Onam, so far as possible, this can be ensured that only such goods and products are used which are produced by Meghvanshis especially the poor one. On this occasion we may use candles rather than electric lighting. It can do wonders. There is some activity in Balai community after this suggestion.

Bali Island may have a regard to King Bali (राजा बली)

An idea occurred to me whether Bali island of Indonesia had anything to do with King Bali. I wrote a post and asked my non responding readers to give a clue, if they had. After posting I had restless hours. I again got up and started searching on the net. Wikipedia is a wonderful reference aggregator. Soon I could see articles like Bali Island, Balinese mythology, Balinese people, Shiva, Bali aga, Takshaka leading to Kurukshetra, Hinduism in Indonesia and its subhead Hinduism in Bali. There were many other relevant links and inter-links and an article ‘Onam – a festival of Exuberance’. For the time being I have stopped my search. Many more investigations are required. Anyhow, you may read this article for the above point. à Onam – a festival of Exuberance


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Balijan (बलिजन) Cultural Movement

Recently I had written a post regarding Meveli and Onam. Now I got some additional information through further search.
Folk culture never dies. It forms basis for many religions, schools of thoughts, political thoughts etc. The myth of King Bali has survived with two images in two different cultures of Indian society. Both the cultures admit that he was a great king who is known for his humanism, justice, charity and egalitarian regime. His image is used by brahmins as well as non-brahmins, by shudras as well as non-shudras of course with opposite intentions. His name may not appear in the manifestos of political parties but the ground reality is that his present generations are divided in various castes and names. All political parties try to divide their votes for obvious benefit. So much so, their hutments are pulled down in order to rehabilitate them at a far off place where their vote becomes isolated and ineffective thus further reducing their political say.
I know nothing about the political ideology of Eklavya but he is curious about the present position of Balijan Cultural Movement. I learnt only from him that the manifesto of this movement was released in Osmania University in the year 2009. Recently (in the past two days) I have come to know that the movement is alive though moving slowly. It is active in New Delhi and other states. One periodical named ‘Balijan Samaj’ is being published from Indore. I hope to get a copy of it in near future.
The work of Mahatma Phule and Mr. Braj Ranjan Mani’s book form the basis of philosophy of this movement. We await other details and literature.

हाल ही में राजा बली और ओणम उत्सव पर आलेख दिया था. इसी सिलसिले में खोजबीन की तो कुछ और जानकारी मिली.
लोक संस्कृति कभी मरती नहीं है. लोक संस्कृति को आधार बना कर कई धर्म, विचार धाराएँ, राजनीतिक विचारधाराएँ आदि पनपती हैं. राजा बली का मिथ भारतीय समाज में दो संस्कृतियों में दो छवियों के साथ जीवित है. दोनों छवियों में राजा बली समानता, मानवधर्म, न्यायप्रियता, दानवीरता के कारण जाना जाता है.
उसकी छवि का प्रयोग ब्राह्मण भी करते हैं और अब्राह्मण भी, शूद्र भी करते हैं और अशूद्र भी. उसका नाम राजनीतिक पार्टियों के घोषणा पत्रों में भले ही न हो परंतु ज़मीन पर उसके वंशजों को विभिन्न जातियों और नामों में बाँट कर रखा गया है. सभी राजनीतिक पार्टियाँ उनके वोटों को आपस में बाँटने का प्रयास करती रहती हैं. यहाँ तक कि उनके घरों को गिरा दिया जाता है ताकि उन्हें कहीं और ऐसी जगह बसाया जा सके जहाँ उनके वोट अलग-थलग पड़ जाएँ, अप्रभावी हों जाएँ और उनकी राजनीतिक आवाज़ पहले से कम हो जाए.
मैं ठीक से नहीं जानता कि एकलव्य की विचार धारा क्या है परंतु उन्हें बलीजन सांस्कृतिक आंदोलन की आज की स्थिति की जानकारी चाहिए. मुझे उन्हीं से पता चला कि बलीजन सांस्कृतिक आंदोलन का घोषणा पत्र सन् 2009 में उस्मानिया विश्वविद्यालय से जारी किया गया था. पिछले दो दिनों में मेरी जानकारी में आया है कि यह आंदोलन चल रहा है चाहे धीमी गति से चल रहा है. यह नई दिल्ली और अन्य राज्यों में सक्रिय है. इंदौर से बलिजन समाज नाम से एक पत्रिका भी प्रकाशित हो रही है. शीघ्र ही उनसे एक प्रति मिलने की आशा है.

इस आंदोलन का दार्शनिक आधार महात्मा फुले और श्री ब्रज रंजन मणि की पुस्तक है. अन्य ब्यौरे और साहित्य की हमें प्रतीक्षा रहेगी.

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