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Yaksha Prashna-Yaksha Answer – यक्ष प्रश्न – यक्ष उत्तर

यक्ष के द्वारा पूछे गए प्रश्नों में एक प्रश्न था कि किसे त्याग देने से मनुष्य प्रिय बनता है. युधिष्ठिर ने इसका उत्तर दिया था कि अहं से पैदा हुए गर्व को त्यागने से मनुष्य प्रिय बनता है. तब से लेकर ज्ञान की गुम नदी….सरस्वती…..में काफी पानी बह चुका है. 

लेकिन समय और कथाओं के उस प्रवाह में……कलियुग तक आते-आते…..सभी प्रश्नों का उत्तर देने के बाद….सरोवर में चंद्र, तारागण आदि के झलमिलाते बिंबों को देखते हुए युधिष्ठिर ने यक्ष से कहा, मेरे मन में भी एक प्रश्न है. यक्ष ने सिर उठाया और पूछने की अनुमति दी. युधिष्ठिर ने कहा, पूरे ब्रह्मांड में एक से बढ़ कर एक वृहद् सूर्य हैं. उनके आकार से भी बढ़ कर ब्रह्मांड की महानता सूर्यों के बीच की दूरी में है. उन सूर्यों के बीच पृथ्वी का आकार सुई की नोक के बराबर भी नहीं है, पृथ्वी पर रहने वाले मनुष्य के आकार की न्यूनता का तो कहना ही क्या. हे यक्षराज! ब्रह्मांड की महानता से बढ़ कर क्या है?”

प्रश्न सुन कर यक्ष ने मुस्करा कर कहा, हे बुद्धिमानों में श्रेष्ठ युधिष्ठिर! मनुष्य ब्रह्मांड की महानता को जानता है लेकिन उसे सर्वोपरि नहीं मानता. मनुष्य का मस्तिष्क और उसके अहं से उत्पन्न गर्व ब्रह्मांड की महानता के ही समान है. ध्यानपूर्वक देखें तो समस्त ब्रह्मांड और मनुष्य का गर्व उसके अहं की परिधि में पड़े दो छोटे-छोटे बिंदु हैं जिनकी प्रतीति सरोवर में प्रतिबिंबित ब्रह्मांड के समान ही होती है.
उत्तर पा कर युधिष्ठिर ने मुस्करा कर कहा, “आपका ज्ञान धन्य है यक्षराज.” और दोनों परम ज्ञानी कथाओं की भाँति अपने-अपने रास्ते चल दिए.

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