Monthly Archives: June 2012
BJP and Megh – भाजपा और मेघ
Arjun Meghwal, BJP, Raj. |
Kailash Meghwal, BJP, Raj. |
Chuni Lal Bhagat, BJP, Punjab |
Achalaram Meghwal, BJP, Raj. |
Kimti Bhagat, BJP, Punjab |
Lost brother of Meghvanshis – Banjara (Gypsies, Roma) community – मेघवंशियों का गुमनाम बिरादर – बंजारा (जिप्सी, रोमा) समुदाय
ऐसे संकेत मिले हैं कि बंजारे और ख़ानाबदोश (Gypsies and Roma) सिंधुघाटी सभ्यता की ही मानव शाखाएँ हैं. बाहरी आक्रमणों के बाद ये लोग भारत के दक्षिण में भी फैले और यूरोप में स्पेन आदि देशों में भी गए. ऐसा प्रतीत होता है कि आक्रमणकारी आर्यों ने इन्हें पहचाना, इनका पीछा किया और इनके विरुद्ध विषैला प्रचार किया. स्पेन के नाटककार फेडेरिको गर्सिया लोर्का (Federico Garcia Lorca ) के नाटक ‘द हाऊस ऑफ बर्नार्डा आल्बा‘ (The House of Bernarda Alba) में इसका उदाहरण देखा जा सकता है जिसमें इनके बारे में नकारात्मक टिप्पणियाँ हैं.
Megh community felicitates Bhagat Chuni Lal – मेघ समुदाय ने भगत चूनी लाल का नागरिक अभिनंदन किया
ऑल इंडिया मेघ सभा की ओर से बोलते हुए श्री इंद्रजीत मेघ ने मुख्य अतिथि श्री चूनी लाल को इस संस्था के एक पुराने और महत्वपूर्ण सपने ‘कबीर मंदिर’ की याद दिलाई जिसे ‘मेघ भवन’ के नाम से भी जाना जाता है. भगत जी को बताया गया कि इसके लिए कई प्रयास किए गए हैं लेकिन ज़मीन की कीमतों और राजनीतिक समर्थन के अभाव में यह सपना अभी पूरा नहीं हुआ है. अपने भाषण के दौरान भगत जी ने इस बात को नोट किया और आश्वासन दिया कि इस सपने को हक़ीक़त में बदलने के लिए शीघ्र ही प्रयास शुरू करेंगे. इस माँग को भगत जी के दाहिने हाथ कहे जाने वाले श्री महेंद्र भगत ने भरपूर हामी दी और कहा कि यह सपना पूरा हो कर रहेगा.
A homoeopathic success story via Dr. Dinesh Sahajpal – एक होमियोपैथिक सफलता की कहानी बाज़रिया डॉ. दिनेश सहजपाल
पूरा परिवार होमियोपैथों का था. कोई डिग्रीधरी, कोई आरएमपी और कोई उनका अधीनस्थ. फिर भी होनी यह हुई कि 30 वर्ष पहले उनकी एक बहु को हिस्टीरिया हो गया. कड़वी ज़बान उग आई, सनकी हो गई और बेशर्मी की हरक़तें करने लगी. आस-पास कोई बैठा है इसका भी ध्यान उसे न होता (typically Hyoscyamus). घर के होमियोपैथों ने उसके मामले को सँभाला. काफी वर्ष तक गुज़ारा ठीक-ठाक चला हालाँकि सौ फीसदी आराम नहीं आया.
एलोपैथ अवश्य झल्लाया होगा, “आईएमए के होते हुए यह क्या हो रहा है.” 😦
(किसी पत्रिका में पढ़ा था कि एम. के. गाँधी, फिल्म एक्टर अशोक कुमार और मनोज कुमार होम्योपैथी के बड़े फैनों में से रहे हैं. लता मंगेशकर अपने गले के लिए अशोक कुमार से दवा लिया करती थी).
Raag Darbari – राग दरबारी
इस जीवन-राग को लेकर कई अंतर्विरोध मेरे ज़ेहन में हैं. मैंने ख़ुद से रागदरबारी कभी नहीं गाया. संभव है इसमें निबद्ध कोई फिल्मी गीत मुँह से निकल गया हो.
नौकरी के दौरान राजनीतिज्ञों या बड़े अफ़सरों के सामने कोई महत्वपूर्ण रागदरबारी ‘जोगन बन जाऊँ रे…..‘ नहीं गाया (सम्राट अक़बर और मियाँ तानसेन इस पर हैरानगी प्रकट कर सकते हैं कि कमाल है भाई, अगर नहीं गाया). बैंक में नौकरी थी सो कभी-कभी सायं चार बजे चपरासियों, लिपिकों को यह राग सुनाना पड़ता था- ‘महाराज जितना संभव हो, कार्य कर जाना, इख़्लाक़ बुलंद रहे, चलता रहे बैंक घराना’. यहाँ राग का गायन समय अत्यंत लोचशील है, प्रातः से सायं तक, कभी भी.
घर के दरबार में मेरी राजा-सी हैसियत कभी नहीं रही सो रानी (नारी) स्वर में रागदरबारी सुनने को नहीं मिला. लेकिन इस क्षेत्र में मेरी गायकी के कुछ व्यंगात्मक किस्से मुझ तक लौटे कि ‘भई खूब गाते हो रागदरबारी, क्या बात है!!’ किस्सा सुनाने वालों की तान (दाँत) तोड़ने की तमन्ना दिल में ही रह गई.
दिल्ली के रास्ते में कई ढाबे आते हैं. चाचे का ढाबा, राणा ढाबा, पप्पू ढाबा, रॉकी वैष्णो ढाबा, पहलवान ढाबा. ये हिंसक नाम हैं. देसी पुलिस के लिए सीधा संदेश- ‘जब चाहे आओ, ठंडा-वंडा पीओ और मसाला भाषा में देसी गाने सुनो. बस, पंगा नहीं लेना’. जानने योग्य है कि हमारी नौकरशाही संगीत के नाम पर केवल इसी शास्त्रीय राग को आराम से गा पाती है. यह इस राग की विशेषता है.
सड़क किनारे महाराजा पान शॉप पर अनजाने कलाकार की यह कलाकृति दिखी. फोटू खींच ली. इसमें एक तबलची, एक सारंगी मास्टर है और राजसी ठाठ में रागदरबारी है. कलात्मक वस्तुएँ महलों से निकल कर कहाँ-कहाँ पहुँचीं, भई वाह!! विश्वास हो गया कि पनवाड़ियों, दरबारियों और राज घराने में कभी खूब छनती थी.
आप पूछ सकते हैं कि पुराने अंदाज़ के दरबार तो समाप्त हो गए, आजकल रागदरबारी कहाँ और कैसे गाया जाता है. येस-येस, इसकी प्रस्तुति का वेन्यू अब राजनीतिक पार्टियों की हाई कमान के यहाँ होता है लेकिन सुर वही हैं, शैली वही है और ठाठ वही है.
ऊपर की पेंटिंग से मिलता जुलता एक चित्र फेसबुक पर आज (09-01-2014 को) मिला है जिसे नीचे चिपका रहा हूँ-
614th Anniversary of Sant Satguru Kabir – संत सत्गुरु कबीर का 614वाँ प्रकाशोत्सव
यह देख कर खुशी होती है कि भगत महासभा, जम्मू के कार्यकर्ता युवा हैं. जम्मू क्षेत्र में डॉ. राजेश भगत के नेतृत्व में एक बहुत बढ़िया टीम मेघों की सामाजिक और धार्मिक एकता के लिए सक्रिय है. यह लग़ातार काम कर रही है. सभी कार्यवाहियाँ टीम की भावना के साथ पूरी की जाती हैं. मेरी जानकारी के अनुसार, मेघों के किसी भी अन्य सामाजिक संगठन की अपेक्षा भगत महासभा का यह यूनिट अधिक कार्य कर पाया है और गाँव-गाँव में जा कर, लोगों से रूबरू हो कर एक वर्ष में बीसियों कार्यक्रम करने में सफल हुआ है. इसका मिशन मेघ भगतों को एक मज़बूत मंच देना है. प्राप्त अनुभव के साथ-साथ स्पष्ट दृष्टिकोण से यह टीम अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर है.
कई बातें शब्दों से बेहतर चित्र कहते हैं. इसलिए चित्रों से सुनिए :-
All India Satguru Kabir Sabha (1958) – आल इंडिया सत्गुरु कबीर सभा – (1958)
कल 03-08-2012 को आर्य समाज मंदिर, सैक्टर-16, चंडीगढ़ में श्रीमती तारा देवी की रस्म क्रिया के बाद भगत प्रेम चंद जी ने एक स्मारिका (Souvenir/सुवेनेयर – 2012-13) मुझे दी.