अरविंद केजरीवाल आदमी ने एंटी-रिज़र्वेशन एक्टिविस्ट के तौर पर अपना करियर एसएसएस नेटवर्क से शुरू किया था और उसी की नींव पर अपना एनजीओ साम्राज्य खड़ा किया. आज उनकी राजनीतिक पार्टी में भी वही लोग जुड़े हैं जो ‘यूथ फॉर इक्वेलिटी’ वाले (एंटी रेज़रवेशनिस्ट) हैं. अपनी पृष्ठभूमि के आधार पर इन्होंने अन्ना हज़ारे को टाँक लिया.
आगे चल कर अन्ना सँभल गए. जनलोकपाल को लेकर चलाए गए इनके आंदोलन, जिसे मनुवादी भाषा में तांडव कहा जाता है, का सफल प्रयोग इन्होंने संसद को हिला कर रख देने के लिए किया. पार्लियामेंट में यादव नेताओं ने इस बात को समझा और उनके प्रतिरोध, जिसमें अन्य पार्टियाँ भी शामिल थीं, के कारण इनकी मंशा पूरी नहीं हो सकी.
काफी संशोधनों के साथ हाल ही में जनलोकपाल बिल पास हुआ है. इसका विरोध केजरीवाल ने किया है जबकि अन्ना और किरण बेदी ने इसे स्वीकार किया है. इस विभाजन का अर्थ आप समझ सकते हैं. केजरीवाल को अराजक कहना अतिश्योक्ति नहीं है. इन्हें संविधान के साथ खिलवाड़ करने के लिए खुला नहीं छोड़ा जा सकता. CM हो कर भी धारा 144 का उल्लंघन करना क्या प्रमाणित करता है?
मीडिया, और यह खुद भी, अपनी बदतमीज़ी को अराजकता कह रहे हैं.
Cough up for you have to pay to the society