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Religious and Caste Riots – धार्मिक और जातीय दंगे

मुलायम सिंह ने कहा कि मुज़फ़्फ़रपुर में हुए दंगे धार्मिक नहीं जातीय थे. कुछ सवाल मन में उठे हैं :-

1. क्या जातीय दंगे कहने से उनकी गंभीरता कम हो जाती है?
2. 90
प्रतिशत मुसलमान जातिवाद से तंग आकर धर्मांतरण करके मुसलमान बने हैं. उनके विरुद्ध दंगे क्या केवल धार्मिक दंगे हैं?
3.
यदि मुसलमान और दलित अपना एक वोट बैंक मज़बूत करके कांग्रेस, बीजेपी और एसपी के खिलाफ वोट डालें तो क्या यह बेहतर नहीं होगा?

अब तक 47 लोग काट डाले गए हैं. वैसे यह प्रश्न भी पीछा नहीं छोड़ता कि अचानक गलीकूचों में इतने हथियार कहाँ से निकल आते हैं! सरकार जी, आपने हथियार जब्त करने का कानून बनाया हुआ है न? बना के कहाँ रख दिया हुजूर? Civil War कराने का इरादा है क्या?

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BAMCEF-2 – बामसेफ-2



कल 21-10-2012 को बामसेफ चंडीगढ़ यूनिट ने कॉमनवेल्थ यूथ प्रोग्राम, एशिया सेंटर, सैक्टर-12 के हाल में एक दिवसीय इतिहासात्मक और विचारधारात्मक प्रशिक्षण काडर कैंप (Historical and Ideological Training Cadre Camp) का आयोजन किया. इसमें भाग लेने का मौका मिला. इस प्रशिक्षण कैंप में मुख्य प्रशिक्षक और वक्ता मान्यवर अशोक बशोत्रा, सीनियर एडवोकेट (Mr. Ashok Bashotra, Sr. AdvocateHigh Court J&K) थे जो जम्मू से पधारे थे.

उनके अभिभाषण में बहुतसी जानकारी थी. जिसमें से मैं दो बातों का यहाँ विशेष उल्लेख करना चाहता हूँ:-
1. किसी भी मनुष्य के लिए तीन चीज़ें बहुत महत्वपूर्ण होती हैं. ‘ज्ञान’- जिससे मनुष्य अपने समग्र जीवन को बेहतर बनाता है, ‘हथियार’- जिससे वह अपने प्राणों की रक्षा करता है और ‘संपत्ति’- जो उसके जीवन को गुणवत्ता प्रदान करती है. मनुस्मृति के प्रावधानों के द्वारा देश के मूलनिवासियों (SC/ST/OBC) से यह तीनों अधिकार छीन लिए गए.
2. तक्षशिला, नालंदा, उज्जैन और विक्रमशिला उस समय (सम्राट अशोक से लेकर बृहद्रथ तक) के विश्व विख्यात विश्वविद्यालय थे. सोते हुए बृहद्रथ की हत्या पुष्यमित्र शुंग नामक ब्राह्मण ने कर दी और सत्ता संभालने के बाद मूलनिवासियों की महान परंपराओं को समाप्त करने करने के लिए उसने चारों विश्वविद्यालयों और वहाँ सुरक्षित साहित्य को नष्ट करने के आदेश दे दिए. डेढ़ माह तक विश्वविद्यालय जलते रहे. छह माह तक वहाँ के पुस्तकालयों को जलाया गया. साठ हज़ार बौध प्राध्यापकों की हत्या की गई जो वहाँ सुरक्षित विज्ञान, दर्शन, धर्म, इतिहास, साहित्य आदि के परमविद्वान थे.
यही कारण है कि कभी मातृत्वप्रधान समाज रहे भारत की स्त्री जाति, शूद्र और दलित अपने जिस इतिहास को ढूँढते फिरते हैं वह नहीं मिलता.