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Life after death. Really? – मृत्यु के बाद का जीवन. सच में?
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कल 18-05-2013 को रात लगभग 10.00 बजे Zee News चैनल पर मौत से पहले के आखिरी तीन मिनट केबारे में चिकित्साशास्त्र का मत दिखाया जा रहा था. उसके संदर्भ में कई बातें ज़ेहन में उतर रही हैं. मैं इस कार्यक्रम से काफी प्रभावित हुआ हूँ. इसमें दिखाई गई कुछ बातें मेरे कुछ अनुभवों से मेल खाती हैं.
कई वर्ष पूर्व एक पुस्तक पढ़ी थी जिसका शीर्षक था – ‘Life After Death’. इसी विषय पर एक अन्य पुस्तक भी पढ़ी थी. इसमें लोगों के उन अनुभवों को दर्ज किया गया था जिन्होंने दावा किया था कि मर कर उन्हें क्या देखा और वे कैसे पुनः जीवन में लौट आए. अस्पताल के आईसीयू में चार दिन के बाद मैं यह दावा तो नहीं करता कि मैं मर कर लौटा हूँ लेकिन होश आने पर अहसास हुआ कि मुझे एक डिब्बे में सुरक्षित रखा गया है. उसके बाद दृष्यों का ताँता था जिसमें वह देखा जो कभी हुआ ही नहीं. उन दृष्यों के बारे में मैंने जिज्ञासावश बेटे और अन्य संबंधियों से प्रश्न पूछे. सभी ने कहा कि ऐसा तो कुछ नहीं हुआ. लेकिन मेरेलिए वे दृष्य इतने प्रत्यक्ष, ठोस और पुख़्ता थे कि उनका प्रभाव आज भी आता है. पता नहीं यह शब्द उपयुक्त है या नहीं, मैं उन्हें विभ्रम/मतिभ्रम (Hallucinations) कहता हूँ. उस बेहोशी या कौमा में जाने का रास्ता तो पतानहीं चला लेकिन वापसी धीमी और विभ्रम भरी थी. विभ्रम में भी स्वर्ग-नरक नहीं दिखे और न ही इस जन्म की रील दिखी. अगला या पिछला जन्म भी नहीं दिखा.
विभ्रम में जो देखा वह ऊलजुलूल और अस्पताल के चारों ओर बुना हुआ था. कभी वह सच लगता था कभी माया प्रतीत होता था. एक तरह का कंफ़्यूज़न मेरी भाषा, व्यवहार और स्मृति को प्रभावित किए था.
इसी संदर्भ में दो अन्य टर्म्स मैंने पढ़ रखी थीं. “Near Death Experience” और “Out of Body Feeling”.
उक्त टीवी कार्यक्रम में “Near Death Experience” के कुछ उदाहरण दिए गए थे.
दिमाग़ ऑक्सीजन की कमी से मरना शुरू हो जाए तो उसे “Near Death Experience” कहा जा सकता है. ऐसे कई मामलों में ऑक्सीजन दे कर डॉक्टर मरीज़ को होश में (जीवन में) ले आते हैं. संभावित दुर्घटना से पहले कई बार व्यक्ति को लगता है कि वह अपना शरीर छोड़ कर वाहन में से उड़ भागा है. हवा में उड़ते जहाज़ में अचानक लालबत्ती जल उठे और वह हिचकोले खाने लगे, तब भी इसका अनुभव हो सकता है. इसका कारण मृत्यु भय होता है जिससे दिमाग़ में एक तरह का कंफ़्यूज़न आ जाता है कि- ‘अब क्या किया जाए‘. अन्य शब्दों में दिमाग़ में शार्ट सर्कट की तैयारी शुरू हो जाती है. एक उदाहरण काफी होगा कि जब हम अचानक ठोकर खा कर गिर जाते हैं या दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं तब दिमाग़ में रोशनी भर जाती है. यदि होश में आँखें खुली रह जाएँ तो नज़र आने वाली चीज़ों का दृष्य अधिक प्रकाशमय हो जाता है. संभवतः इसे ही स्नायुप्रणाली का शार्ट सर्कट कहा जाता है.
विश्व में जहाँ कहीं भी योग पद्धति है उसमेंप्रकाश को देखने की परंपरा है. यह एक सचेत या चैतन्य प्रयास होता है जो संभवतः “Near Death Experience” में ले जाता है. मुझे इसका कोई अनुभव नहीं.
जो व्यक्ति मृत्यु जैसी हालत से लौट कर अपना अनुभव बताता है उसके बारे मेंकहा जा सकता है कि वह जीवन में हुए अनुभव की बात कर रहा है. जो मृत्यु को प्राप्त हो गया उसे लौट कर मृत्यु के बाद का अनुभव कहते आज तक नहीं देखागया. अतः ‘Life After Death’ ग़लत अभिव्यक्ति है और ‘Near Death Experience वास्तविक एवं अधिक विश्वसनीय. दूसरे शब्दों में जो मरा ही नहीं, होश में आ गया, वह वास्तव में जीवन के दायरे से बाहर गया ही नहीं. जीवन की सीमा में ही था. कहने को मैं भी कह सकता हूँ कि मैं भगवान के घर हो आया हूँ जहाँ पूर्ण शांति थी. लेकिन यह मेरा कहा हुआ सूक्ष्मतम झूठ होगा क्यों कि जो मैंने देखा या अनुभव किया वह जीवन के दायरे में ही आता है चाहे वह शब्द हो, शब्द चित्र हो अथवा रूप, रंग या रेखाएँ हों.
मरने के बाद रूप-रंग-रेखाओं और अनुभवों कास्टोर रूम – दिमाग़ – या तो धरती में गाड़ दिया जाता है या अग्नि में जलादिया जाता है जो कुछ समय में नष्ट हो जाता है या नष्ट हो चुका होता है.
Zee News चैनल के उक्त कार्यक्रम में यह भी कहा गया कि दिमाग़ की मौत होने में तीन मिनट का समय लगता है और उन तीन मिनटों में व्यक्ति अपने जीवन की सभीघटनाएँ फिल्म की तरह देख जाता है. स्वप्न संसार में हुए अनुभवों के आधार पर बुद्धि इस बात को मान लेती है लेकिन तीन मिनट के बाद दिमाग़ की मृत्यु हो जाने के बादयदि किसी को कोई अनुभव हुआ है तो उसका कोई रिकार्ड उपलब्ध नहीं है. हाँ, रोचक और भयानक कहानियाँ समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, धार्मिक या अन्य पुस्तकों में लिखी मिल जाती हैं.
चिकित्सा विज्ञान ने ‘मृत्यु के बाद के जीवन‘ के विषय में यदि कुछ कहा है तो वह मेरी जानकारी में नहीं है. लेकिन मैं जानना चाहूँगा.